अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।
अपनी भाषा (बाल-साहित्य )    Print  
Author:मैथिलीशरण गुप्त | Mathilishran Gupt
 

करो अपनी भाषा पर प्यार।
जिसके बिना मूक रहते तुम, रुकते सब व्यवहार।।

जिसमें पुत्र पिता कहता है, पत्नी प्राणाधार,
और प्रकट करते हो जिसमें तुम निज निखिल विचार।
बढ़ाओ बस उसका विस्तार।
करो अपनी भाषा पर प्यार।।

भाषा बिना व्यर्थ ही जाता ईश्वरीय भी ज्ञान,
सब दानों से बहुत बड़ा है ईश्वर का यह दान।
असंख्यक हैं इसके उपकार।
करो अपनी भाषा पर प्यार।।

यही पूर्वजों का देती है तुमको ज्ञान-प्रसाद,
और तुम्हारा भी भविष्य को देगी शुभ संवाद।
बनाओ इसे गले का हार।
करो अपनी भाषा पर प्यार।।

-मैथिलीशरण गुप्त

 

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