अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।
छोटा बांस, बड़ा बांस (बाल-साहित्य )    Print  
Author:भारत-दर्शन संकलन | Collections
 

एक दिन बीरबल बादशाह अकबर के साथ बाग में सैर कर रहे थे। बीरबल साथ चलते-चलते लतीफा सुना रहे थे और अकबर उसका आनंद ले रहे थे। तभी बादशाह अकबर को घास पर पड़ा एक बांस का एक टुकड़ा दिखाई दिया। बस उन्हें बीरबल की परीक्षा लेने की सूझ गई। बीरबल को बांस का वह टुकड़ा दिखाते हुए बादशाह अकबर बोले, ‘‘बीरबल! क्या तुम इस बांस के टुकड़े को बिना काटे छोटा कर सकते हो ?''

बीरबल लतीफा सुनाते-सुनाते रुक गए और अकबर की आँखों में झांक कर उनकी मंशा पढ़ने का प्रयास किया।

अकबर कुटिलता से मुस्कराए। बीरबल समझ गया कि बादशाह सलामत उनकी परीक्षा लेना चाहते हैं।

बीरबल ने इधर-उधर देखा। तभी उन्हें एक माली हाथ में लंबा बांस लेकर जाता दिखा। बीरबल ने उस माली के पास जाकर वह बांस उससे लिया। फिर बादशाह के दिखाए घास पर पड़े उस बांस के टुकड़े की बगल में माली से लिया वह लंबा बांस रख दिया।

बीरबल बोले, ‘‘हुजूर, अब देखिए! बिना काटे ही आपका दिखाया बांस छोटा हो गया।''

बड़े बांस के सामने अब वह टुकड़ा सचमुच छोटा दिखाई पड़ता था।

बादशाह अकबर निरुत्तर हो गए। फिर बीरबल की चतुराई पर मुस्करा उठे।

[भारत-दर्शन]

 

Back
 
 
Post Comment
 
  Captcha
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश