अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।
अगर कहीं मैं पैसा होता ?  (बाल-साहित्य )    Print  
Author:सोहनलाल द्विवेदी | Sohanlal Dwivedi
 

पढ़े-लिखों से रखता नाता,
मैं मूर्खों के पास न जाता,

दुनिया के सब संकट खोता !
अगर कहीं मैं पैसा होता ?

जो करते दिन रात परिश्रम,
उनके पास नहीं होता कम,

बहता रहती सुख का सोता !
अगर कहीं मैं पैसा होता ?

रहता दुष्ट जनों से न्यारा,
मैं बनता सुजनों का प्यारा,

सारा पाप जगत से धोता !
अगर कहीं मैं पैसा होता है।

व्यर्थ विदेश नहीं मैं जाता,
नित स्वदेश ही में मँडराता,

भारत आज न ऐसे रोता !
अगर कहीं मैं पैसा होता ?

- सोहनलाल द्विवेदी

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