अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।
तर्ज़ बदलिए (काव्य)    Print  
Author:कृष्णा सोबती
 

गुमशुदा घोड़े पर सवार
हमारी सरकारें
नागरिकों की तानाशाही से
लामबंदी क्यूं करती हैं
और दौलतमंदों की
सलामबंदी क्यूं करती हैं
सरकारें क्यूं भूल जाती हैं
कि हमारा राष्ट्र एक लोकतंत्र है
और यहाँ का नागरिक
गुलाम दास नहीं
वो लोकतांत्रिक राष्ट्र
भारत महादेश का
स्वाभिमानी नागरिक है
सियासत की यह
तर्ज़ बदलिए।

- कृष्णा सोबती

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