जब से हमने अपनी भाषा का समादर करना छोड़ा तभी से हमारा अपमान और अवनति होने लगी। - (राजा) राधिकारमण प्रसाद सिंह।
लेन-देन (काव्य)    Print  
Author:शैल चतुर्वेदी | Shail Chaturwedi
 

एक महानुभाव हमारे घर आए
उनका हाल पूछा
तो आँसू भर लाए,
बोले--
"रिश्वत लेते पकड़े गए हैं
बहुत मनाया, नहीं माने
भ्रष्टाचार समिति वाले
अकड़ गए हैं।
सच कहता हूँ
मैनें नहीं माँगी थी
देने वाला ख़ुद दे रहा था
और पकड़ने वाले समझे
मैं ले रहा था।
अब आप ही बताइए
घर आई लक्ष्मी को
कौन ठुकराता है
क्या लेन-देन भी
रिश्वत कहलाता है?
मैनें भी उसका
एक काम किया था
एक सरकारी ठेका
उसके नाम किया था
उसका और हमारा लेन-देन
बरसों से है
और ये भ्रष्टाचार समिति तो
परसों से है।"

- शैल चतुर्वेदी
[ बाज़ार का ये हाल है, श्री हिन्दी साहित्य संसार ]

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