अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।
हिन्दी (काव्य)    Print  
Author:गयाप्रसाद शुक्ल सनेही
 

अच्छी हिन्दी ! प्यारी हिन्दी !
हम तुझ पर बलिहारी ! हिन्दी !!

सुन्दर स्वच्छ सँवारी हिन्दी ।
सरल सुबोध सुधारी हिन्दी ।
हिन्दी की हितकारी हिन्दी ।
जीवन-ज्योति हमारी हिन्दी ।
अच्छी हिन्दी ! प्यारी हिन्दी !
हम तुझ पर बलिहारी हिन्दी !!

तुलसी सूर कबीर बनाये
भारतेन्दु तूने उपजाये,
महावीर तेरे मन भाये,
राष्ट्र-भाव-भूषण पहनाये ।
अच्छी हिन्दी ! प्यारी हिन्दी !
हम तुझ पर बलिहारी हिन्दी !!

महा मधुर है, मधु-सानी हैं,
नहीं सरलता में सानी है,
तू ही हमें देव-बानी है,
तू भाषाओं की रानी है।
अच्छी हिन्दी ! प्यारी हिन्दी !
हम तुझ पर बलिहारी हिन्दी !!

- गयाप्रसाद शुक्ल 'सनेही'
[ सम्मेलन पत्रिका ]

 

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