भारत की परंपरागत राष्ट्रभाषा हिंदी है। - नलिनविलोचन शर्मा।
सदुपदेश | दोहे  (काव्य)    Print  
Author:गयाप्रसाद शुक्ल सनेही
 

बात सँभारे बोलिए, समुझि सुठाँव-कुठाँव ।
वातै हाथी पाइए, वातै हाथा-पाँव ॥१॥

निकले फिर पलटत नहीं, रहते अन्त पर्यन्त ।
सत्पुरुषों के वर-वचन, गजराजों के दन्त ।।२।।

सेवा किये कृतघ्न की, जात सबै मिलि धूल ।।
सुधा-धार हू सींचिये, सुफल न देत बबूल ।।३।।

काहू की मुसकानि पर, करियो जनि विश्वास ।
है समर्थ संसार मे, विज्जुलता को हास ।।४।।

चारि जने हिलि मिलि रहे, तबही होत सरङ्ग ।
खैर सुपारी चून ज्यों, मिलत पान के सङ्ग ।।५।।


- गयाप्रसाद शुक्ल 'सनेही'
  [ कुसुमाञ्जलि ]

 

Back
 
 
Post Comment
 
  Captcha
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश