यह संदेह निर्मूल है कि हिंदीवाले उर्दू का नाश चाहते हैं। - राजेन्द्र प्रसाद।
 
मैं तटनी तरल तरंगा, मीठे जल की निर्मल गंगा (काव्य)       
Author:शारदा मोंगा | न्यूजीलैंड

मैं तटनी तरल तरंगा
मीठे जल की निर्मल गंगा

पर्वत की मैं बिटिया
नदी की निर्मल धारा

उद्गम स्थल की शिशुबाला,
सखी-धाराओं संग मिल

क्रीडा करती, खिलखिलाती,
गाती, इठलाती, इतराती,

बलखाती, तीव्र गति से
मुड जाती,गिर गिर पड़ती,

आगे बढ़ती, पत्थरों से टकराती,
दुग्ध फेनिल झाग से नहाती,

कभी दौड़ दौड़, कभी सरक सरक
कभी चंचल तो कभी शांत शांत

आयी अब मैदानों में
खेतों औ खलियानों में

खेतों को जल दान दिया
फसलों को बल प्रदान किया

खेतों में आयी तरुनाई
जीव जगत की प्यास बुझायी

मैं तटनी तरल तरंगा
मीठे जल की निर्मल गंगा

 

Back
 
 
Post Comment
 
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश