यह संदेह निर्मूल है कि हिंदीवाले उर्दू का नाश चाहते हैं। - राजेन्द्र प्रसाद।
 
हंसों के वंशज | गीत (काव्य)       
Author:राजगोपाल सिंह

हंसों के वंशज हैं लेकिन
कव्वों की कर रहे ग़ुलामी
यूँ अनमोल लम्हों की प्रतिदिन
होती देख रहे नीलामी
दर्पण जैसे निर्मल मन को
क्यों पत्थर के नाम कर दिया

पाने का लालच क्या जागा
गाँव की गठरी भी खो बैठे
स्वाभिमान, सम्मान सम्पदा
गिरवी रख कँगले हो बैठे
हरा-भरा संसार न जाने
क्यों पतझर के नाम कर दिया

-राजगोपाल सिंह

 

Back
 
 
Post Comment
 
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश