देशभाषा की उन्नति से ही देशोन्नति होती है। - सुधाकर द्विवेदी।
 
गुरु महिमा | पद  (काव्य)       
Author:सहजो बाई

राम तजूँ पै गुरु न बिसारूँ, गुरु के सम हरि कूँ न निहारूँ ।।
हरि ने जन्म दियो जग माहीं। गुरु ने आवा गमन छुटाहीं ।।
हरि ने पाँच चोर दिये साथा। गुरु ने लई छुटाय अनाथा ।।
हरि ने रोग भोग उरझायो। गुरु जोगी करि सबै छुटायो ।।
हरि ने कर्म मर्म भरमायो। गुरु ने आतम रूप लखायो ।।
फिरि हरि वध मुक्ति गति लाये। गुरु ने सब ही भर्म मिटाये ।।
चरन दास पर तन-मन वारूँ। गुरु न तजूँ हरि को तजि डारूँ ।।

- सहजोबाई

 

Back
 
 
Post Comment
 
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश