अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।
 
हिन्दी-भक्त  (काव्य)       
Author:काका हाथरसी | Kaka Hathrasi

सुनो एक कविगोष्ठी का, अद्भुत सम्वाद ।
कलाकार द्वय भिडे गए, चलने लगा विवाद ।।
चलने लगी विवाद, एक थे कविवर 'घायल' ।
दूजे श्री 'तलवार', नई कविता के कायल ।।
कह 'काका' कवि, पर्त काव्य के खोल रहे थे।
कविता और अकविता को, वे तोल रहे थे ।।

शुरू हुई जब वार्ता, बोले हिन्दी शुद्ध ।
साहित्यिक विद्वान् थे, परम प्रचण्ड प्रबुद्ध ।।
परम प्रचण्ड प्रबुद्ध, तर्क में आई तेजी ।
दोनो की जिह्वा पर, चढ़ बैठी अगरेज़ी ॥
कह 'काका' घनघोर, चली इंगलिश में गाली ।
संयोजक जी ने गोष्ठी, 'डिसमिस' कर डाली ।।

- काका हाथरसी

Back
 
 
Post Comment
 
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश