भारत की परंपरागत राष्ट्रभाषा हिंदी है। - नलिनविलोचन शर्मा।
मार्टिन लूथर किंग का अविस्मरणीय भाषण | 28 अगस्त
 
 

‘आई हैव ए ड्रीम' - मार्टिन लूथर किंग

28 अगस्त 1963 को वाशिंगटन में मार्टिन लूथर किंग द्वारा दिया हुआ भाषण अविस्मरणीय है जिसमें उन्होंने अमेरिका के लिए अपने सपने की बात की।

‘आई हैव ए ड्रीम' के नाम से प्रसिद्ध उनके इस सुप्रसिद्ध भाषण के अंश इस प्रकार थे:

‘‘मेरा एक सपना है कि एक दिन यह देश खड़ा होगा और अपने सिद्धांत के सच्चे मायनों को जिएगा। मेरा एक सपना है कि मेरे चार बच्चे एक दिन ऐसे देश में रहेंगे जहां उनके बारे में कोई फैसला उनकी त्वचा के रंग के आधार पर नहीं बल्कि उनके चरित्र के आधार पर होगा। आज मैं यह स्वप्र देखता हूं।''

अमेरिकी मानवाधिकार कार्यकर्ता और इतिहास के सबसे अच्छे वक्ताओं में शामिल मार्टिन लूथर किंग की ये पंक्तियां पूरी दुनिया में हजारों बार दोहराई जा चुकी हैं। इसके बावजूद इन पंक्तियों की ताकत कम नहीं हुई है। ये पंक्तियां आज भी जनमानस के मन में आग भर सकती हैं।

जिस अमेरिका का ख्वाब मार्टिन लूथर किंग ने देखा, उसमें श्वेत और अश्वेत दोनों को बराबर मौके मिलने चाहिएं। उस अमेरिका में अन्याय के लिए कोई जगह नहीं होगी। वह अमेरिका पूरी दुनिया के लिए एक आदर्श होगा और यह ख्वाब देखने की प्रेरणा किंग को गांधी से मिली।

करिश्माई व्यक्तित्व वाले मार्टिन लूथर किंग ने अपना मशहूर भाषण 34 साल की उम्र में दिया था लेकिन उससे कुछ साल पहले ही वह भारत की यात्रा कर चुके थे। 1959 में अपनी इस भारत यात्रा को उन्होंने तीर्थयात्रा सरीखा बताया था। उन्होंने बार-बार कहा कि महात्मा गांधी के हिंसा के सिद्धांत को वह आंखें खोल देने वाली अवधारणा मानते हैं। किंग के मार्गदर्शक हॉवर्ड ट्रूमैन के महात्मा गांधी से नजदीकी संबंध थे। ट्रूमैन ने गांधी को अमेरिका आने का न्यौता भी दिया था।

रोजा पार्क्स का मामला
1955 में अलाबामा में 42 साल की रोजा पार्क्स को इसलिए गिरफ्तार कर लिया गया क्योंकि उन्होंने बस में एक गोरे यात्री के लिए सीट खाली करने से इंकार कर दिया। मार्टिन लूथर किंग जूनियर तब सिर्फ 26 साल के थे। उन्हें यह फैसला नागवार गुजरा और उन्होंने इसके खिलाफ तूफान खड़ा कर दिया। नतीजा हुआ कि अगले 383 दिन तक मंटमरी के अश्वेतों ने स्थानीय बसों का बहिष्कार किया। आखिरकार सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ा और रंग के आधार पर बंटवारे को असंवैधानिक करार दे दिया गया। किंग का निडर और धैर्यपूर्वक संघर्ष जीत गया, एक नए नायक का जन्म हुआ। अच्छे वक्ता और आकर्षक व्यक्तित्व के किंग किसी को भी आकर्षित कर सकते थे। अश्वेत युवकों और महिलाओं के लिए तो वह जल्दी ही एक प्रतीक और बेहतर भविष्य की उम्मीद बन गए।

किंग की लोकप्रियता
1958 में किंग पर हमला हुआ लेकिन वह बच गए। लेकिन इसका असर उनके समर्थकों पर हुआ। उनका किंग में विश्वास और गहरा हो गया। इसके बाद किंग मीडिया के भी चहेते हो गए। गांधी की तरह किंग ने भी अपने विश्वास और सहानुभूति, सत्य और दूसरों के लिए जीने के अपने नियमों से ही ताकत जुटाई। कई बार जब उन्हें जेल जाना पड़ा तब ईश्वर में उनके विश्वास से उनको ताकत मिली।


1963 में उन्होंने वाशिंगटन के अपने मार्च को अंजाम दिया जो लिंकन मैमोरियल में भाषण के साथ पूरा हुआ। किंग ने फिर महात्मा गांधी को मिसाल माना। 1930 में गांधी जी और उनके समर्थकों ने नमक सत्याग्रह में ऐसा ही दांडी मार्च किया था। गांधी और किंग दोनों के ही साथ चलते हजारों लोगों ने राजनेताओं को दिखा दिया कि उनकी ताकत क्या है।


1964 में सिर्फ 35 साल की उम्र में किंग को शांति का नोबेल पुरस्कार दिया गया। यह पुरस्कार पाने वाले इतिहास के सबसे कम उम्र के इंसान बन गए। सिर्फ चार साल बाद 1968 में किंग की हत्या कर दी गई। मार्टिन लूथर किंग की लोकप्रियता के बिना आज एक अश्वेत अमेरिका का राष्ट्रपति नहीं होता। ओबामा की सफलता और लोकप्रियता तब संभव नहीं थी और महात्मा गांधी की प्रेरणा के बिना किंग कुछ न होते।

 
 

Comment using facebook

 
 
Post Comment
 
Name:
Email:
Content:
 
 
  Type a word in English and press SPACE to transliterate.
Press CTRL+G to switch between English and the Hindi language.

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश