अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।
विकसित करो हमारा अंतर | गीतांजलि
 
 

विकसित करो हमारा अंतर
           अंतरतर हे !

उज्ज्वल करो, करो निर्मल, कर दो सुन्दर हे !
जाग्रत करो, करो उद्यत, निर्भय कर दो हे !
मंगल करो, करो निरलस, निसंशय कर हे !

     विकसित करो हमारा अंतर
                   अंतरतर हे !

युक्त करो हे सबसे मुझको, बाधामुक्त करो,
सकल कर्म में सौम्य शांतिमय अपने छंद भरो
चरण-कमल में इस चित को दो निस्पंदित कर हे !
नंदित करो, करो प्रभु नंदित, दो नंदित कर हे !

           विकसित करो हमारा अंतर
                        अंतरतर हे !

-रवीन्द्रनाथ टैगोर

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साभार - गीतांजलि, भारती भाषा प्रकाशन (1979 संस्करण), दिल्ली
अनुवादक - हंसकुमार तिवारी


Geetanjli by Rabindranath Tagore

 

 

 
 
 
 
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