यह संदेह निर्मूल है कि हिंदीवाले उर्दू का नाश चाहते हैं। - राजेन्द्र प्रसाद।
मानसिकता | लघु-कथा
 
 

वे एक प्राइवेट स्कूल में काम करते थे और उनका बेटा रवि भी उसी स्कूल में पढ़ता था। वे बहुत परिश्रमी और  आदर्श शिक्षक थे। प्राइवेट स्कूल और सरकारी स्कूल में मिलने वाली सुविधाओं और वेतन में जमीन-आसमान का अंतर रहता है जो सर्वविदित है। वे भी बरसों से प्रयास कर रहे थे कि उन्हें सरकारी स्कूल में नौकरी मिल जाए।

बहुत परिश्रम और भाग-दौड़ के बाद उन्हें एक सरकारी स्कूल में नौकरी मिल गई थी। अब तो वे भी सब सरकारी सुविधाएं और भत्तों का भरपूर आनंद उठाया करेंगे। सब रिश्तेदार, परिचित और मित्र उन्हें बधाई दे रहे थे।

"'कब से ज्वाइन कर रहे हैं?" मैंने बधाई देते हुए कहा।

"बस, अगले सप्ताह ही!"

"'तो..रवि भी स्कूल छोड़ रहा है?" मैंने पूछा।

"'नहीं, नहीं...रवि..तो वहीं पढ़ेगा!"

"'अरे, सरकारी स्कूल में कहाँ पढ़ाई होती है?" एक अन्य मित्र ने वार्तालाप आगे बढ़ाया।

हर शिक्षक नौकरी तो सरकारी विद्यालय में करना चाहता है लेकिन अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल में पढ़ाना चाहता है!  अवश्य ही उन्हें सरकारी सुविधाएं आकर्षित करती होंगी अन्यथा वे नौकरी भी प्राइवेट स्कूलों में ही करते! ...लेकिन क्या पढ़ाई का स्तर और सुविधाएं छात्रों को नहीं दी जा सकती ताकि 'सरकारी स्कूल में पढ़ाई कहाँ होती है?' वाली मानसिकता परिवर्तित हो जाए!

- रोहित कुमार 'हैप्पी'

#

 
 
 
 
Post Comment
 
Name:
Email:
Content:
Type a word in English and press SPACE to transliterate.
Press CTRL+G to switch between English and the Hindi language.
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश