अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।
नवरात्र उत्सव व नवरात्रि की कथाएं
 
 

वर्ष में दो बार अश्विन और चैत्र मास में नौ दिन के लिए उत्तर से दक्षिण भारत में नवरात्र उत्सव मनाया जाता है। कहा जाता है कि यदि संपूर्ण दुर्गा सप्तशती पाठ न भी कर सकें तो निम्नलिखित श्लोकों को पढ़ने से सम्पूर्ण दुर्गा सप्तशती और नवदुर्गाओं के पूजन का फल प्राप्त हो जाता है।

सर्वमंगलमंगलये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्रयम्बके गौरि नारायणि नमोऽतु ते।।
शरणांगतदीन आर्त परित्राण परायणे
सर्वस्यार्तिहरे देवी नारायणि नमोऽस्तु ते।।
सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते।
भयेभ्यारत्नाहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते।।

यूं तो दुर्गा माँ के 108 नाम गिनाये जाते हैं लेकिन नवरात्रों में उनके स्थूल रूप को ध्यान में रखते हुए नौ दुर्गाओं की स्तुति और पूजा पाठ करने का गुप्त मंत्र ब्रह्मा जी ने अपने पौत्र मार्कण्डेय ऋषि को दिया था। इसको देवीकवच भी कहते हैं। देवीकवच का पूरा पाठ दुर्गा सप्तशती के 56 श्लोकों के अन्दर मिलता है। नौ दुर्गाओं के स्वरूप का वर्णन संक्षेप में ब्रह्मा जी ने इस प्रकार से किया है।

प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रहमचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम।
पंचमं स्क्न्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः।

अर्थात पहला शैलपुत्री, दूसरा ब्रह्माचारिणी, तीसरा चन्द्रघन्टा, चौथा कूष्माण्डा, पाँचवा स्कन्द माता, छठा कात्यायिनी, सातवाँ कालरात्रि, आठवाँ महागौरी, नौवां सिद्धिदात्री।

 

नवरात्रि की कथाएं

नवरात्रि में मां दुर्गा ने महिषासुर नामक राक्षस का वध करके देवताओं को उसके कष्टों से मुक्त किया था।

महिषासुर ने भगवान शिव की आराधना करके अद्वितीय शक्तियां प्राप्त कर ली थीं और तीनों देव अर्थात ब्रह्मा, विष्णु व महेश भी उसे हराने में असमर्थ थे। महिषासुर राक्षस के आंतक से सभी देवता भयभीत थे।

उस समय सभी देवताओं ने अपनी-अपनी शक्तियों को मिलाकर दुर्गा को अवतरि‍त किया। अनेक शक्तियों के तेज से जन्मीं माता दुर्गा ने महिषासुर का वध कर सबके कष्टों को दूर किया।

 

दूसरी कथा

एक नगर में एक ब्राह्माण रहता था। वह मां भगवती दुर्गा का परम भक्त था। उसकी एक कन्या थी। ब्राह्मण नियम पूर्वक प्रतिदिन दुर्गा की पूजा और यज्ञ किया करता था।

सुमति अर्थात ब्राह्माण की बेटी भी प्रतिदिन इस पूजा में भाग लिया करती थी। एक दिन सुमति खेलने में व्यस्त होने के कारण भगवती पूजा में शामिल नहीं हो सकी।

यह देख उसके पिता को क्रोध आ गया और क्रोधवश उसके पिता ने कहा कि वह उसका विवाह किसी दरिद्र और कोढ़ी से करेगा।

पिता की बातें सुनकर बेटी को बड़ा दुख हुआ, और उसने पिता के द्वारा क्रोध में कही गई बातों को सहर्ष स्वीकार कर लिया। कई बार प्रयास करने से भी भाग्य का लिखा नहीं बदलता है।

अपनी बात के अनुसार उसके पिता ने अपनी कन्या का विवाह एक कोढ़ी के साथ कर दिया। सुमति अपने पति के साथ विवाह कर चली गई। उसके पति का घर न होने के कारण उसे वन में घास के आसन पर रात बड़े कष्ट में बितानी पड़ी

गरीब कन्या की यह दशा देखकर माता भगवती उसके द्वारा पिछले जन्म में की गई उसके पुण्य प्रभाव से प्रकट हुईं और सुमति से बोलीं 'हे कन्या मैं तुमपर प्रसन्न हूं' मैं तुम्हें कुछ देना चाहती हूं, मांगों क्या मांगती हों।

इस पर सुमति ने उनसे पूछा कि आप मेरी किस बात पर प्रसन्न हैं? कन्या की यह बात सुनकर देवी कहने लगी- मैं तुम पर पूर्व जन्म के तुम्हारे पुण्य के प्रभाव से प्रसन्न हूं, तुम पूर्व जन्म में भील की पतिव्रता स्त्री थी।

एक दिन तुम्हारे पति भील द्वारा चोरी करने के कारण तुम दोनों को सिपाहियों ने पकड़ कर जेलखाने में कैद कर दिया था। उन लोगों ने तुम्हें और तुम्हारे पति को भोजन भी नहीं दिया था। इस प्रकार नवरात्र के दिनों में तुमने न तो कुछ खाया और न ही जल पिया इसलिए नौ दिन तक नवरात्र व्रत का फल तुम्हें प्राप्त हुआ।

हे ब्राह्मणी, उन दिनों अनजाने में जो व्रत हुआ, उस व्रत के प्रभाव से प्रसन्न होकर आज मैं तुम्हें मनोवांछित वरदान दे रही हूं। कन्या बोली कि अगर आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो कृ्पा करके मेरे पति का कोढ़ दुर कर दीजिये। माता ने कन्या की यह इच्छा शीघ्र पूरी कर दी। उसके पति का शरीर माता भगवती की कृपा से रोगहीन हो गया।

 

नवरात्रि की तीसरी कथा

रामायण के अनुसार भगवान श्री राम, लक्ष्मण, हनुमान व समस्त वानर सेना द्वारा आश्चिन शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक नौ दिनों तक माता शक्ति की उपासना कर दशमी तिथि को लंका पर आक्रमण प्राप्त किया था।

इस तरह नवरात्रों में माता दुर्गा की पूजा करने की प्रथा के पीछे कई कथाएं प्रचलित हैं जिसके बाद से नवरात्रि का पर्व आरंभ हुआ और माता दुर्गा की पूजा होने लगी।

[भारत-दर्शन संकलन]

 
 
 
 
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