देशभाषा की उन्नति से ही देशोन्नति होती है। - सुधाकर द्विवेदी।
 
होली | 25 मार्च 2022
   
 

होली भारत का प्रमुख त्योहार है। होली वसंत ऋतु में मनाया जाने वाला एक प्रमुख भारतीय त्योहार है। यह पर्व हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। होली जहाँ एक ओर सामाजिक एवं धार्मिक है, वहीं रंगों का भी त्योहार है।

होली एक रंगबिरंगा मस्ती भरा पर्व है। इसमें जातिभेद-वर्णभेद का कोई स्थान नहीं होता। सभी इसे बड़े उत्साह से मनाते हैं। इस दिन सारे लोग अपने पुराने गिले-शिकवे भूल कर गले लगते हैं और एक दूजे को गुलाल लगाते हैं।

आप सभी को होली की शुभ-कामनाएं।

भारत-दर्शन का पिछला होली-विशेषांक (2017) पढ़ें या प्रमुख रचनाएं पढ़ें जिनमें सम्मिलित हैं--

'होली की पौराणिक-कथाएं, मीरा के होली पद, मीरा भजन, 'श्याम सखा मोरी रंग दे चुनरिया' व 'होरी खेलत हैं गिरधारी', 'घासीराम के होली पद', 'सूरदास के पद', 'ॠतु फागुनी नियरानी हो' (कबीर), 'रसखान के फाग सवैय्ये' पढ़िए।

फणीश्वरनाथ रेणु की पहली कविता, 'साजन होली आई है', भारतेंदु की ग़ज़ल, 'गले मुझको लगा लो ए दिलदार होली में', निराला की कविता, 'खून की होली' व 'वसंत आया', , जयशंकर प्रसाद की कविता, 'होली की रात', प्रेमचंद की कहानी, 'होली की छुट्टी', यशपाल की कहानी, 'होली का मज़ाक', गोपालसिंह नेपाली की कविता, 'बरस-बरस पर आती होली', ललितकुमारसिंह 'नटवर' का होली गीत, 'आज की होली', जैमिनी हरियाणवी की हास्य कविता, 'प्यार भरी बोली', आलेखों में - डा जगदीश गांधी का, 'आपसी प्रेम एवं एकता का प्रतीक है होली', अशोक भाटिया का आलेख 'होली आई रे', 'लोकगीतों में झलकती संस्कृति का प्रीतक : होली' (आलेख), 'होली के विविध रंग' (आलेख), 'सबकी 'होली' एक दिन, अपनी 'होली' सब दिन' (आलेख), रंगों के त्यौहार में तुमने (कविता), तुझ संग रंग लगाऊं कैसे (कविता), अरी भागो री भागो री गोरी भागो, कल कहाँ थे कन्हाई (गीत), होली बाद नमाज़ (कहानी), अजब हवा (गीत), आओ होली (कविता), होली के दोहे, रंगो के त्यौहार में तुमने (कविता), रंग की वो फुहार दे होली (कविता), हास्य रस में 'काव्य मंच पर होली' भी पढ़ें ।

 

 
होली गीत
जब फागुन रंग झमकते हों तब देख बहारें होली की,
और डफ के शोर खड़कते हों तब देख बहारें होली की,
परियों के रंग दमकते हों तब देख बहारें होली की,
खुम, शीशे जाम छलकते हों तब देख बहारें होली की,
महबूब नशे में छकते हों तब देख बहारें होली की।

प्रहलाद - होलिका की कथा | होली पौराणिक कथाएं
होली को लेकर हिरण्यकश्यप और उसकी बहन होलिका की कथा  अत्यधिक प्रचलित है। प्राचीन काल में अत्याचारी राक्षसराज हिरण्यकश्यप ने तपस्या करके ब्रह्मा से वरदान पा लिया कि संसार का कोई भी जीव-जन्तु, देवी-देवता, राक्षस या मनुष्य उसे न मार सके। न ही वह रात में मरे, न दिन में, न पृथ्वी पर, न आकाश में, न घर में, न बाहर। यहां तक कि कोई शस्त्र भी उसे न मार पाए। ऐसा वरदान पाकर वह अत्यंत निरंकुश बन बैठा।

हिरण्यकश्यप के यहां प्रहलाद जैसा परमात्मा में अटूट विश्वास करने वाला भक्त पुत्र पैदा हुआ। प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था और उस पर भगवान विष्णु की कृपा-दृष्टि थी। हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को आदेश दिया कि वह उसके अतिरिक्त किसी अन्य की स्तुति न करे। प्रह्लाद के न मानने पर हिरण्यकश्यप उसे जान से मारने पर उतारू हो गया। उसने प्रह्लाद को मारने के अनेक उपाय किए लेकिन व प्रभु-कृपा से बचता रहा।

हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को अग्नि से बचने का वरदान था। उसको वरदान में एक ऐसी चादर मिली हुई थी जो आग में नहीं जलती थी। हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका की सहायता से प्रहलाद को आग में जलाकर मारने की योजना बनाई। होलिका बालक प्रहलाद को गोद में उठा जलाकर मारने के उद्देश्य से वरदान वाली चादर ओढ़ धूं-धू करती आग में  जा बैठी। प्रभु-कृपा से वह चादर वायु के वेग से उड़कर बालक  प्रह्लाद पर जा पड़ी और चादर न होने पर होलिका जल कर वहीं भस्म हो गई।  इस प्रकार प्रह्लाद को मारने के प्रयास में  होलिका की मृत्यु हो गई। तभी से होली का त्योहार मनाया जाने लगा।  तत्पश्चात् हिरण्यकश्यप को मारने के लिए भगवान विष्णु नरंसिंह अवतार में  खंभे से निकल कर गोधूली समय (सुबह और शाम के समय का संधिकाल) में दरवाजे की चौखट पर बैठकर अत्याचारी हिरण्यकश्यप को मार डाला। तभी से होली का त्योहार मनाया जाने लगा।

संकलन-भारत-दर्शन

शिव पार्वती कथा | होली पौराणिक कथाएं
एक अन्य पौराणिक कथा शिव और पार्वती से संबद्ध है। हिमालय पुत्री पार्वती चाहती थीं कि उनका विवाह भगवान शिव से हो जाए पर शिवजी अपनी तपस्या में लीन थे। कामदेव पार्वती की सहायता को आए व उन्होंने अपना पुष्प बाण चलाया। भगवान शिव की तपस्या भंग हो गयी। शिव को बड़ा क्रोध आया और उन्होंने अपनी तीसरी आँख खोल दी। उनके क्रोध की ज्वाला में कामदेव का भस्म हो गए। तदुपरान्तर शिवजी ने पार्वती को देखा और पार्वती की आराधना सफल हुई। शिवजी ने उन्हें अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार कर लिया। इस प्रकार इस कथा के आधार पर होली की अग्नि में वासनात्मक आकर्षण को प्रतीकत्मक रूप से जला कर सच्चे प्रेम की विजय का उत्सव मनाया जाता है।

कृष्ण-पूतना की कथा | होली पौराणिक कथाएं
एक आकाशवाणी हुई कि कंस को मारने वाला गोकुल में जन्म ले चुका है। अत: कंस ने इस दिन गोकुल में जन्म लेने वाले हर शिशु की हत्या कर देने का आदेश दे दिया। इसी आकाशवाणी से भयभीत कंस ने अपने भांजे कृष्ण को भी मारने की योजना बनाई और इसके लिए पूतना नामक राक्षसी का सहारा लिया। पूतना मनचाहा रूप धारण कर सकती थी। उसने सुंदर रूप धारण कर अनेक शिशुओं को अपना विषाक्त स्तनपान करा मौत के घाट उतार दिया। फिर वह बाल कृष्ण के पास जा पहुंची किंतु कृष्ण उसकी सच्चाई को जानते थे और उन्होंने पूतना का वध कर दिया। यह फाल्गुन पूर्णिमा का दिन था अतः पूतनावध के उपलक्ष में होली मनाई जाने लगी।

होलिका-दहन | पृथ्वीराज चौहान का प्रश्न
एक समय राजा पृथ्वीराज चौहान ने अपने दरबार के राज-कवि चन्द से कहा कि हम लोगों में जो होली के त्योहार का प्रचार है, वह क्या है? हम सभ्य आर्य लोगों में ऐसे अनार्य महोत्सव का प्रचार क्योंकर हुआ कि आबाल-वृद्ध सभी उस दिन पागल-से होकर वीभत्स-रूप धारण करते तथा अनर्गल और कुत्सित वचनों को निर्लज्जता-पूर्वक उच्चारण करते है । यह सुनकर कवि बोला- ''राजन्! इस महोत्सव की उत्पत्ति का विधान होली की पूजा-विधि में पाया जाता है । फाल्गुन मास की पूर्णिमा में होली का पूजन कहा गया है । उसमें लकड़ी और घास-फूस का बड़ा भारी ढेर लगाकर वेद-मंत्रो से विस्तार के साथ होलिका-दहन किया जाता है । इसी दिन हर महीने की पूर्णिमा के हिसाब से इष्टि ( छोटा-सा यज्ञ) भी होता है । इस कारण भद्रा रहित समय मे होलिका-दहन होकर इष्टि यज्ञ भी हो जाता है । पूजन के बाद होली की भस्म शरीर पर लगाई जाती है ।

 
 
 

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