यदि पक्षपात की दृष्टि से न देखा जाये तो उर्दू भी हिंदी का ही एक रूप है। - शिवनंदन सहाय।
 
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जयंती | 4 अक्टूबर
   
 

4 अक्टूबर को आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की जयंती है। रामचन्द्र शुक्ल जी का जन्म 4 अक्टूबर 1884 को बस्ती अगोना गाँव, ज़िला बस्ती, उत्तरप्रदेश में हुआ था। 1898 में आपने मिडिल की परीक्षा उत्तीर्ण की व 1901 में मिर्ज़ापुर से एंट्रेंस की। आपकी एफ० ए० व मुख़्तारी की पढ़ाई पूरी ने हो सकी। आपने अपनी पहली नौकरी 1904 में मिशन स्कूल में ड्रांइग मास्टर के रूप में की। आपने आनंद कादंबनी का संपादन भी लिया। 1908 में आप नागरी प्रचारणी सभा के हिंदी कोश के लिए सहायक संपादक के रूप में काशी गए।

1919 में आप हिन्दू विश्वविद्यालय में अध्यापन करने लगे व 1937 में हिन्दी विभागाध्यक्ष बने।

आप बीसवीं शताब्दी के हिन्दी के प्रमुख साहित्यकार हैं। आप एक समीक्षक, निबन्ध लेखक एवं साहित्यिक इतिहासकार के रूप में जाने जाते हैं।

शुक्लजी ने हिन्दी साहित्य का इतिहास लिखा, जिसमें काव्य प्रवृत्तियों एवं कवियों के परिचय के अतिरिक्त समीक्षा भी दी गई है।

दर्शन के क्षेत्र में भी आपकी 'विश्व प्रपंच' उपलब्ध है। यह पुस्तक 'रिडल ऑफ़ दि यूनिवर्स' का अनुवाद है परंतु इसकी विस्तृत भूमिका आपका मौलिक लेखन है।

बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष के पद पर रहते हुए ही 1941 में हृदय गति रूकने से आपकी मृत्यु हो गई।

 

आपकी प्रमुख कृतियाँ: 

हिंदी साहित्य को 'हिंदी साहित्य का इतिहास', 'चिंतामणि' जैसी कृतियां दीं और 'हिंदी शब्द सागर' व 'नागरी प्रचारिणी पत्रिका' का सफल संपादन। चिंतामणि निस्संदेह शुक्ल जी का हिंदी साहित्य को एक दुर्लभ एवम् संग्रहणीय उपहार है।

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की जीवनी और साहित्य।  

भारत-दर्शन पर आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की कविता पढ़ें।

 

 
 
 
 

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