अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।
 
मोहन राकेश जयंती | 8 जनवरी
   
 

मोहन राकेश (Mohan Rakesh) का जन्म 8 जनवरी, 1925 को अमृतसर में हुआ था। आप 'नई कहानी आन्दोलन' के साहित्यकार थे।

पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम. ए किया। जीविकोपार्जन के लिये अध्यापन किया। कुछ वर्षो तक 'सारिका' के संपादक भी रहे।

3 जनवरी, 1972 को दिल्ली में आपका देहांत हो गया।

 

 
मलबे का मालिक | मोहन राकेश की कहानी
साढ़े सात साल के बाद वे लोग लाहौर से अमृतसर आये थे। हॉकी का मैच देखने का तो बहाना ही था, उन्हें ज़्यादा चाव उन घरों और बाज़ारों को फिर से देखने का था जो साढ़े सात साल पहले उनके लिए पराये हो गये थे। हर सडक़ पर मुसलमानों की कोई-न-कोई टोली घूमती नज़र आ जाती थी। उनकी आँखें इस आग्रह के साथ वहाँ की हर चीज़ को देख रही थीं जैसे वह शहर साधारण शहर न होकर एक अच्छा-ख़ासा आकर्षण-केन्द्र हो।

मिस पाल - मोहन राकेश | कहानी
वह दूर से दिखाई देती आकृति मिस पाल ही हो सकती थी।
फिर भी विश्वास करने के लिए मैंने अपना चश्मा ठीक किया। निःसन्देह, वह मिस पाल ही थी। यह तो खैर मुझे पता था कि वह उन दिनों कुल्लू में रहती हैं, पर इस तरह अचानक उनसे भेंट हो जाएगी, यह नहीं सोचा था। और उसे सामने देखकर भी मुझे विश्वास नहीं हुआ कि वह स्थायी रूप से कुल्लू और मनाली के बीच उस छोटे से गांव में रही होगी। वह दिल्ली से नौकरी छोड़कर आई थी, तो लोगों ने उसके बारे में क्या-क्या नहीं सोचा था !

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