भारत की परंपरागत राष्ट्रभाषा हिंदी है। - नलिनविलोचन शर्मा।
 
गाँधी राष्ट्र-पिता...?
 
 

कुछ समय से यह मुद्दा बड़ा चर्चा में है, 'गाँधी को राष्ट्रपिता की उपाधि किसने दी?

जब से सूचना का अधिकार आया है कई बार बड़ी विकट परिस्थितियों से सामना हो जाता है और कई बार तो परिस्थितियाँ हास्यास्पद हो जाती हैं। 

आजकल बहुत से निरर्थक प्रश्न पूछे जाने का प्रचलन भी बढ़ रहा है। गाँधी ही क्यों, आप चाहें तो कई व्यक्तित्वों पर सवाल उठा सकते हैं, जैसे:

सुभाषचंद्र बोस को नेताजी क्यों कहा जाता है? उन्हें यह उपाधि सरकार ने दी थी या नहीं?
भगतसिंह को क्या 'शहीदे आज़म' की उपाधि दी गई थी?
नेहरू को 'चाचा' की उपाधि किसने दी थी?
देवीलाल को 'ताऊ' क्यों कहा जाता है?
चितरंजन दास 'देशबंधु' क्यों कहलाते है?
लाला लाजपतराय को 'पंजाब केसरी' क्यों है?
बाल गंगाधर तिलक के नाम के आगे 'लोकमान्य' कैसे लगता है?
पंडित मदन मोहन मालवीय को 'महामना' क्यों कहा जाता है?
खान अब्दुल गफ्फार खान को 'सीमांत गाँधी' या 'सरहदी गाँधी' क्यों कहा जाता है?

यह उपाधि उपाधियाँ उन्हें किसने दीं?

इसका सरल सा उत्तर है - ये 'उपाधियां' नहीं 'संबोधन' हैं।

ये 'संबोधन' उस समय की जनता ने दिए थे।  हमारे पुरखों ने दिए थे इन सभी को वे 'संबोधन'।  बात 'उपाधि' की नहीं, श्रद्धा और प्रेम की होती है। हर दिन इस तरह के निरर्थक प्रश्न पूछने वालों से यदि यह पूछा जाए कि क्या सरकार या संस्थाएँ जो उपाधियां देती है वही प्रमाणिक मान ली जानी चाहिए?  अच्छा हो, प्रश्न पूछने से पहले उसपर कुछ अनुसंधान कर लिया जाए और विषय के बारे में जान लिया जाए। वैसे यदि आप गाँधी को 'राष्ट्रपिता, बापू या महात्मा' नहीं कहना चाहते तो उससे गाँधी के व्यक्तित्व को कितनी हानि हो जाती है? 

और...किसी के सिर पर तलवार नहीं लटक रही -आप चाहें तो गांधीजी को अपनी मन चाही पदवी दे! आप स्वतंत्र भारत के नागरिक हैं और आप को अपने मौलिक अधिकारों का उपयोग करने की पूर्ण स्वतंत्रता है। यह अलग बात है कि हम अपने अधिकारो का सदुपयोग कम और दुरुपयोग अधिक करने के आदी हैं। 

सुनता हूँ अँग्रेज़ हुकूमत के समय बहुत से ऐसे भारतीयों को पदवी और उपाधियां दी गई थी जो उनकी चाटुकारिता या उन्हें क्रांतिकारियों की रणनीतियों के भेद बताया करते थे! दूसरी ओर, जनता अपनी इच्छा अनुसार संबोधन करती थी। हर बात के लिए वैधानिकता या सरकारी मोहर की आवश्यकता नहीं होती। आप पड़ोसी को 'चाचाजी, ताऊजी, अंकलजी, आंटीजी इत्यादि' संबोधित कर सकते हैं उसमें आपको कोई त्रुटि दिखती है? क्या वे सचमुच आपके रिश्तेदार हैं या बन जाते हैं? एक भाव है, एक लहजा होता है संबोधन के लिए! उस वक्त जनता को गाँधी बापू, महात्मा या राष्ट्र-पिता लगे तो वैसे ही संबोधित किया। आज आपकी इच्छा नहीं तो आप स्वतंत्र हैं!

जिस गाँधी को आज बहुतेरे कोसते नहीं थकते उसी गाँधी को शान्ति और अहिंसा के लिए पूरा विश्व याद करता है। गाँधी के शान्ति सिद्धांतों के बलबूते किंग मार्टिन लूथर, दलाई लामा, नेल्सन मंडेला और आन-सां-सु जैसे लोग प्रेरित हुए हैं। गाँधी को केवल कोसकर कोई बहुत ऊँचा हो गया ऐसा कोई समाचार अभी तक प्रकाश में नहीं आया। लेकिन आप चाहें तो किसी को भी कोस सकते हैं। और..अपने यहाँ तो इसका रिवाज है ही।

समय परिवर्तित हो गया है। अब तो अपने बहन-भाई को बहनजी व भाईसाहब की जगह 'सिस और ब्रो' कहने लगे हैं। मित्रों को जहाँ भाई तुल्य संबोधित किया जाता था वे भी कब के 'डुड और मेट' हो चुके हैं फिर 'राष्ट्र-पिता' को कौन राष्ट्र-पिता कहना चाहेगा। अपने देश के तो देहातों में भी पिताजी की जगह कब से 'डैड' हो गई है। कुछ बेचारे पिताजी या बाबूजी कहते भी हों तो उन्हें 'बैकवर्ड' बताया जाता है।

तो भाई...आज की जो परिस्थिति और चलन है उसे देखकर लगता है ऐसे राष्ट्र जिसमें लगातार भ्रष्टाचार बढ़ रहा हो, जहां नारी असुरक्षित हो और जहाँ का नेता 'हाथी दाँत वाला' हो उस देश का 'राष्ट्र-पिता बनकर किसे प्रसन्नता होगी? आज के नेताओं के कारनामें देखकर तो शायद सुभाषचंद्र बोस भी 'नेताजी' न कहलाना चाहेंगे और इस देश पर शहीद होने वाले बिस्मिल, आज़ाद और भगतसिंह भी 'स्वतंत्र भारत' की तस्वीर देख कर जाने क्या सोचते होंगे!

 

राष्ट्रपिता पर कुछ तथ्य:

यह सत्य है कि भारत सरकार ने गांधीजी को कभी 'राष्ट्रपिता' जैसी कोई उपाधि नहीं दी गई है। भारत का केंद्रीय गृह मंत्रालय इसपर स्पष्टीकरण दे चुका है कि देश का संविधान शैक्षिक और सैन्य उपाधि के अलावा कोई और उपाधि देने की इजाजत नहीं देता। संविधान के अनुच्छेद 8(1) शैक्षिक और सैन्य खिताब के अलावा कोई और उपाधि देने का सरकार को अधिकार नहीं है।

महात्मा गांधी को पहली बार सुभाष चंद्र बोस ने राष्ट्रपिता कहकर संबोधित किया था। 4 जून व 6 जून 1944 को सिंगापुर रेडियो से एक संदेश प्रसारित करते हुए 'राष्ट्रपिता' महात्मा गांधी कहा था।

30 जनवरी, 1948 को गांधी जी की हत्या होने के बाद प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने रेडियो पर राष्ट्र को संबोधित किया और कहा कि ‘राष्ट्रपिता अब नहीं रहे।'


-रोहित कुमार 'हैप्पी'

#

 
 
 
 
Post Comment
 
Name:
Email:
Content:
Type a word in English and press SPACE to transliterate.
Press CTRL+G to switch between English and the Hindi language.
 
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश