देशभाषा की उन्नति से ही देशोन्नति होती है। - सुधाकर द्विवेदी।
 
दु:ख की भेंट - भारत दर्शन संकलन    
 
दु:ख की भेंट
   Author:  भारत दर्शन संकलन

बचपन में लुकमान एक धनी सेठ के यहां नौकरी किया करते थे।

एक दिन की बात है। गर्मी का मौसम था। सेठ ने ककड़ी खाई। संयोग से ककड़ी कड़ुवी निकली। सेठ ने मजाक में उसे लुकमान को खाने के लिए दे दिया। उसे विश्वास था कि लुकमान ककड़ी खायेंगे नहीं, चल कर फेंक देंगे। किन्तु हुआ इससे उलटा। लुकमान ने ककड़ी खा ली।

सेठ को बड़ा आश्चर्य हुआ वह बोला, "क्यों, तुम्हें ककड़ी कड़वी नहीं लगी?"

लुकमान ने कहा, "सेठजी ककड़ी कड़वी तो जरुर लगी, लेकिन मैंने सोचा कि जिन हाथों से मुझे सालों मीठा-ही-मीठा खाने को मिला है, अगर उनसे आज कड़वी चीज मिली तो घबराना नहीं चाहिए, बल्कि उसमें उतनी ही मिठास अनुभव करनी चाहिए।"

लुकमान का मानना था कि कुदरत के हाथों अधिकतर सुख का पुरस्कार मिलता है। यदि कभी दु:ख की भेंट मिले तो उसकी भी अभ्यर्थना करनी चाहिए।

सेठ लुकमान के इस उत्तर से बड़ा प्रभावित हुआ। अपने किए पर उसे बड़ी लज्जा आई।

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प्रस्तुति - आदित्य प्रचण्डिय 'दीति'
साभार - बड़ों की बड़ी बातें

 

 
 

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