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मेरा नया बचपन
बार-बार आती है मुझको
मधुर याद बचपन तेरी।
गया, ले गया तू जीवन की
सबसे मस्त खुशी मेरी।।
चिंता-रहित खेलना-खाना
वह फिरना निर्भय स्वच्छंद।
कैसे भूला जा सकता है
बचपन का अतुलित आनंद?
ऊँच-नीच का ज्ञान नहीं था
...
विजयादशमी
विजये ! तूने तो देखा है,
वह विजयी श्री राम सखी !
धर्म-भीरु सात्विक निश्छ्ल मन
वह करुणा का धाम सखी !!
बनवासी असहाय और फिर
हुआ विधाता वाम सखी !
हरी गई सहचरी जानकी
वह व्याकुल घनश्याम सखी !।
कैसे जीत सका रावण को
...
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