भारत की परंपरागत राष्ट्रभाषा हिंदी है। - नलिनविलोचन शर्मा।

श्रीकृष्ण सरल

श्रीकृष्ण 'सरल' का जन्म 1 जनवरी 1919 को मध्य प्रदेश के गुना जिले के अशोकनगर में हुआ था। उनके पिता का नाम
पं. भगवती प्रसाद बिरथरे और माता का नाम यमुनादेवी था। श्री सरल के पूर्वज स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहे, उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ते हुए बलिदान दिया था।

सरलजी जब 5 वर्ष के थे, तभी उनकी माता का देहांत हो गया था। आपने लगभग 10 वर्ष की उम्र में काव्य लेखन प्रारंभ कर दिया था। आपकी रुचि राष्ट्रीय लेखन एवं क्रांतिकारियों के जीवन में रही।

श्री सरल द्वारा रचित क्रांतिकारी साहित्य की अनूठी बेजोड़ कृतियां एक देशभक्त की राष्ट्र अर्चना कही जा सकती हैं। "जीवित शहीद' की उपाधि से सम्मानित श्री सरल को सच्ची श्रद्धाञ्जलि यही होगी कि ऐसे प्रयास किए जाएं ताकि उनका कार्य जन-जन तक पहुंचे।

श्री सरल ने राजर्षि पुरुषोत्तमदास टण्डन के कहने पर युवाओं को संदेश देने के उद्देश्य से क्रांतिकारियों के जीवन पर महाकाव्य का लेखन शुरू किया।

भगतसिंह पर जब महाकाव्य लिखा तो भगतसिंह की माता विद्यावती देवी ने उन्हें चन्द्रशेखर पर भी महाकाव्य लिखने को कहा। इन काव्यों के सृजन में प्रामाणिकता लाने के उद्देश्य से उन्होंने पूरा जीवन यायावरी में बिताया।

सुभाष चन्द्र बोस पर महाकाव्य लिखने से पूर्व उन्होंने 10 देशों की यात्रा कर दुर्लभ संस्मरण एवं छायाचित्र एकत्रित किए, जो भारतीय इतिहास के अनूठे दस्तावेज हैं।

15 महाकाव्यों का लेखन करने वाले इस महान कवि ने अपने निजी व्यय से 125 पुस्तकें, 45 काव्य ग्रंथ, 4 खंड काव्य, 31 काव्य संकलन व 8 उपन्यासों का प्रकाशन किया।

निधन : 2 सितम्बर 2000 को आपका निधन हो गया।

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मैं अमर शहीदों का चारण

मैं अमर शहीदों का चारण
उनके गुण गाया करता हूँ
जो कर्ज राष्ट्र ने खाया है,
मैं उसे चुकाया करता हूँ।

यह सच है, याद शहीदों की हम लोगों ने दफनाई है
यह सच है, उनकी लाशों पर चलकर आज़ादी आई है,
यह सच है, हिन्दुस्तान आज जिन्दा उनकी कुर्बानी से
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भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के बलिदान

आज लग रहा कैसा जी को कैसी आज घुटन है
दिल बैठा सा जाता है, हर साँस आज उन्मन है
बुझे बुझे मन पर ये कैसी बोझिलता भारी है
क्या वीरों की आज कूच करने की तैयारी है?

हाँ सचमुच ही तैयारी यह, आज कूच की बेला
माँ के तीन लाल जाएँगे, भगत न एक अकेला
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शहीद

देते प्राणों का दान देश के हित शहीद
पूजा की सच्ची विधि वे ही अपनाते हैं,
हम पूजा के हित थाल सजाते फूलों का
वे अपने हाथों, अपने शीष चढ़ाते हैं।

जो हैं शहीद, सम्मान देश का होते वे
उत्प्रेरक होतीं उनसे कई पीढ़ियाँ हैं,
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काँटे अनियारे लिखता हूँ

अपने गीतों से गंध बिखेरूँ मैं कैसे
मैं फूल नहीं काँटे अनियारे लिखता हूँ।
मैं लिखता हूँ मँझधार, भँवर, तूफान प्रबल
मैं नहीं कभी निश्चेष्ट किनारे लिखता हूँ।

मैं लिखता उनकी बात, रहे जो औघड़ ही
जो जीवन-पथ पर लीक छोड़कर चले सदा,
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कहो नहीं करके दिखलाओ

कहो नहीं करके दिखलाओ
उपदेशों से काम न होगा
जो उपदिष्ट वही अपनाओ
कहो नहीं, करके दिखलाओ।

अंधकार है! अंधकार है!
क्या होगा कहते रहने से,
दूर न होगा अंधकार वह
निष्क्रिय रहने से सहने से
अंधकार यदि दूर भगाना
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आत्म-दर्शन

चन्द्रशेखर नाम, सूरज का प्रखर उत्ताप हूँ मैं,
फूटते ज्वाला-मुखी-सा, क्रांति का उद्घोष हूँ मैं।
कोश जख्मों का, लगे इतिहास के जो वक्ष पर है,
चीखते प्रतिरोध का जलता हुआ आक्रोश हूँ मैं।

विवश अधरों पर सुलगता गीत हूँ विद्रोह का मैं,
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