जब से हमने अपनी भाषा का समादर करना छोड़ा तभी से हमारा अपमान और अवनति होने लगी। - (राजा) राधिकारमण प्रसाद सिंह।

कन्हैयालाल नंदन (Kanhaiya Lal Nandan )

कन्हैयालाल नंदन का जन्म 1 जुलाई, 1933 में उत्तर प्रदेश के फतेहपुर ज़िले के परसदेपुर गांव में हुआ था। आप खोजी पत्रकारिता और नए प्रयोगों के पक्षधर थे। आपने अपने पत्रकारिता जीवन का आरंभ 'धर्मयुग' पत्रिका से किया। पत्रकारिता से पूर्व आप अध्यापन से जुड़े हुए थे।

कन्हैयालाल नंदन ने डी.ए.वी. कॉलेज, कानपुर से बी.ए, प्रयाग विश्वविद्यालय ( इलाहाबाद) से एम.ए और भावनगर विश्वविद्यालय से पीएच.डी. की।

चार वर्षों तक बंबई विश्वविद्यालय के अंतर्गत आने वाले कॉलेजों में हिन्दी-अध्यापन के पश्चात 1961 से 1972 तक 'टाइम्स ऑफ़ इंडिया प्रकाशन समूह' के ‘धर्मयुग' में सहायक संपादक रहे। 1972 से दिल्ली में क्रमश: 'पराग', 'सारिका' और दिनमान के संपादक रहे। तीन वर्ष 'दैनिक नवभारत टाइम्स' में फीचर सम्पादन किया। 6 वर्ष तक हिंदी ‘संडे मेल' में प्रधान संपादक रहे।

सत्तर के दशक से अस्सी के दशक के शुरू के काल में बचपन व्यतीत करने वाले ऐसे करोड़ों हिंदी भाषी होंगे जिन्होंने अपने बचपन में नंदन जी के सम्पादन में प्रकाशित होने वाली बाल-पत्रिका 'पराग' के द्वारा बाल-साहित्य के मायावी, कल्पनात्मक और ज्ञानवर्धक संसार में गोते लगाकर गंभीर और श्रेष्ठ साहित्य पढ़ने की आरम्भिक शिक्षा दीक्षा प्राप्त की। इसी पीढ़ी ने थोड़ा बड़े होकर नंदन जी के सम्पादन में प्रकाशित होने वाली पत्रिकाओं 'सारिका' और 'दिनमान' के माध्यम से देश-विदेश का साहित्य पढ़ने और सम-सामयिक विषयों को समझने की समझ विकसित की।

मुख्य कृतियाँ :
लुकुआ का शाहनामा, घाट-घाट का पानी, अंतरंग नाट्या परिवेश, आग के रंग, अमृता शेरगिल, समय की दहलीज, बंजर धरती पर इंद्रधनुष, गुजरा कहाँ-कहाँ से

'गुज़रा कहाँ कहाँ' से आपकी प्रसिद्ध कृति है।

निधन :
कन्हैयालाल नंदन का 25 सितंबर, 2010 को दिल्ली में निधन हो गया।

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याचना | कविता

मैंने पहाड़ से माँगा :
अपनी स्थिरता का थोड़ा-सा अंश मुझे दे दो
पहाड़ का मन न डोला ।

मैंने झरने से कहा :
दे दो थोड़ी-सी अपनी गति मुझे भी
झरना अपने नाद में मस्त रहा
कुछ न बोला।

मैंने दूब से माँगी थोड़ी-सी पवित्रता व
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अर्जुन उवाच

तुमने कहा मारो
और मैं
मारने लगा
तुम
चक्र सुदर्शन लिए बैठे ही रहे और मैं
हारने लगा !

माना कि तुम मेरे योग और क्षेम' का
भरपूर वहन करोगे
लेकिन ऐसा परलोक सुधार कर
मैं क्या पाऊँगा
मैं तो तुम्हारे इस बेहूदा संसार में
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