यह संदेह निर्मूल है कि हिंदीवाले उर्दू का नाश चाहते हैं। - राजेन्द्र प्रसाद।

रामनरेश त्रिपाठी

रामनरेश त्रिपाठी कोइरीपुर जिला जौनपुर के रहने वाले थे। आपका जन्म 4 मार्च, 1889 (संवत् १९४६ विक्रमी) को जौनपुर में हुआ था। आप सिद्धहस्त लेखक थे।

'मिलन' 'पथिक' 'स्वप्न' आदि काव्यों से कवि-समाज में आपको अच्छा मान मिला है।

आपकी कविता भावमयी होती है। शैली बड़ी मनोहर है। आपने गद्य में भी कई पुस्तकें लिखकर बाल-साहित्य को उन्नत किया है।

 

विधाएँ: 
उपन्यास, नाटक, आलोचना, गीत, बालोपयोगी पुस्तकें। 
आपके ही सम्पादकत्व में ‘कविता-कौमुदी' जैसा अनेक भाग वाला उत्कृष्ट ग्रन्थ प्रकाशित हुआ । इससे हमारे हिन्दी-साहित्य को अनुपम सहायता मिली है ।


मुख्य कृतियाँ: 
मिलन, पथिक, स्वप्न, मानसी, अंवेषण, हे प्रभो आनन्ददाता

सम्मान:
हिंदुस्तान अकादमी पुरस्कार

निधन:
16 जनवरी, 1962 को प्रयाग मे आपका निधन हो गया।

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अन्वेषण

मैं ढूंढता तुझे था, जब कुंज और वन में।
तू खोजता मुझे था, तब दीन के सदन में॥

तू 'आह' बन किसी की, मुझको पुकारता था।
मैं था तुझे बुलाता, संगीत में भजन में॥

मेरे लिए खडा था, दुखियों के द्वार पर तू।
मैं बाट जोहता था, तेरी किसी चमन में॥

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रामनरेश त्रिपाठी के नीति के दोहे

विद्या, साहस, धैर्य, बल, पटुता और चरित्र।
बुद्धिमान के ये छवौ, है स्वाभाविक मित्र ।।

नारिकेल सम हैं सुजन, अंतर, दयानिधान ।
बाहर मृदु भीतर कठिन, शठ हैं बेर समान ॥

आकृति, लोधन, वचन, मुख, इंगित, चेष्टा, चाल ।
बतला देते हैं यही, भीतर की सब हाल ।।

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पूत पूत, चुप चुप

मेरे मकान के पिछवाड़े एक झुरमुट में महोख नाम के पक्षी का एक जोड़ा रहता हैं । महोख की आँखें तेज़ रोशनी को नहीं सह सकतीं, इससे यह पक्षी ज्यादातर रात में और शाम को या सबेरे जब रोशनी की चमक धीमी रहती है, अपने खाने की खोज में निकलता है। चुगते-चुगते जब नर और मादा दूर-दूर पड़ जाते हैं, तब एक खास तरह की बोली बोलकर जो पूत पूत ! या चुप चुप ! जैसी लगती है, एक दूसरे को अपना पता देते हैं, या बुलाते हैं। इनकी बोली की एक बहुत ही सुन्दर कहानी गांवों में प्रचलित हैं। वह यह है--

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चतुर चित्रकार

चित्रकार सुनसान जगह में बना रहा था चित्र।
इतने ही में वहाँ आ गया यम राजा का मित्र॥

उसे देखकर चित्रकार के तुरंत उड़ गये होश।
नदी, पहाड़, पेड़, पत्तों का, रह न गया कुछ जोश॥ 

फिर उसको कुछ हिम्मत आई, देख उसे चुपचाप।
बोला--सुन्दर चित्र बना दूं, बैठ जाइये आप॥

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