Author's Collection
Total Number Of Record :7नन्दा
नन्दा तीन दिन से भूखा था; पेट की ज्वाला से अधमरा!
देखा, सेठ रामलाल मीठे पूड़ों का थाल भरे, देवीकुण्ड पर बन्दर जिमाने जा रहे हैं। गिड़गिड़ाकर उसने कहा-
"सेठजी, मैं तीन दिन से भूखा हूँ, जान निकली जा रही है। कुछ पूड़े मुझे भी दीजिए।"
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पहचान | लघु-कथा
'मैं अपना काम ठीक-ठाक करुंगा और उसका पूरा-पूरा फल पाऊंगा!' यह एक ने कहा।
'मैं अपना काम ठीक-ठाक करुंगा और निश्चय ही भगवान उसका पूरा फल मुझे देंगे!' यह दूसरे ने कहा।
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जैसी करनी वैसी भरनी | बोध -कथा
एक हवेली के तीन हिस्सों में तीन परिवार रहते थे। एक तरफ कुन्दनलाल, बीच में रहमानी, दूसरी तरफ जसवन्त सिंह।
उस दिन रात में कोई बारह बजे रहमानी के मुन्ने पप्पू के पेट में जाने क्या हुआ कि वह दोहरा हो गया और जोर-जोर से रोने लगा। माँ ने बहलाया, बाप ने कन्धों लिया, आपा ने सहलाया, पर वह चुप न हुआ।
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ग़नीमत हुई | बोध -कथा
राधारमण हिंदी के यशस्वी लेखक हैं। पत्रों में उनके लेख सम्मान पाते हैं और सम्मेलनों में उनकी रचनाओं पर चर्चा चलती है। रात उनके घर चोरी हो गई। न जाने चोर कब घुसा और उनका एक ट्रंक उठा ले गया - शायद जाग हो गई और उसे बीच में ही भागना पड़ा।
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सेठजी | लघु-कथा
''महात्मा गान्धी आ रहे हैं, उनकी 'पर्स' के लिए कुछ आप भी दीजिये सेठजी!''
"बाबूजी, आपके पीछे हर समय खुफिया लगी रहती है, कोई हमारी रिपोर्ट कर देगा, इसलिए हम इस झगड़े में नही पड़ते!''
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आहुति | लघु-कथा
अंगार ने ऋषि की आहुतियों का घी पिया और हव्य के रस चाटे। कुछ देर बाद वह ठंडा होकर राख हो गया और कूड़े की ढेरी पर फेंक दिया गया।
ऋषि ने जब दूसरे दिन नये अंगार पर आहुति अर्पित की तो राख ने पुकारा, "क्या आज मुझसे रुष्ट हो, महाराज?"
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तीन दृष्टियाँ | लघु-कथा
चंपू, गोकुल और वंशी एक महोत्सव में गये।
वहाँ तब तक कोई न आया था। वे आगे की कुर्सियों पर बैठ गये। दर्शन आते गये, बैत्रे गये, पंडाल भर गया।
उत्सव आरंभ हुआ। संयोजक ने सबका स्वागत किया।
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