यह संदेह निर्मूल है कि हिंदीवाले उर्दू का नाश चाहते हैं। - राजेन्द्र प्रसाद।
 
अनिल जोशी | Anil Joshi

अनिल कुमार शर्मा ‘जोशी' (साहित्यिक नाम : अनिल जोशी) को शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल के उपाध्यक्ष हैं।

अनिल कुमार शर्मा गृह मंत्रालय एवं तदुपरांत विदेश मंत्रालय, भारत सरकार के उच्चाधिकारी के रूप में विश्व के विभिन्न देशों में सेवारत रह चुके हैं। आपने लगभग 9 वर्षों तक ब्रिटेन तथा फीजी में राजनयिक के रूप में कार्य करते हुए हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार एवं विकास के क्षेत्र में असाधारण उपलब्धियां प्राप्त की हैं। भारतीय राजनय एवं विदेश नीति के अधिकारी विद्वान और प्रवासी साहित्य के गम्भीर अध्येता के रूप में आपकी पहचान सुस्थापित है। हिंदी अनुवाद, निबंध, लेख, नाटक, कविता समीक्षा, ब्लॉग लेखन आदि क्षेत्रों में भी आपका उल्लेखनीय कार्य रहा है। अनिल शर्मा ने केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो, राजभाषा विभाग आदि संस्थाओं में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।

‘मोर्चे पर', ‘नींद कहां है' और ‘धरती एक पुल' (संपादन - ब्रिटेन के कवियों का संकलन) आपके चर्चित कविता संग्रह हैं। इनके अतिरिक्त ‘प्रवासी लेखन : नयी जमीन, नया आसमान' प्रवासी साहित्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय कृति है।

 

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हैरान परेशान, ये हिन्दोस्तान है

हैरान परेशान, ये हिन्दोस्तान है
ये होंठ तो अपने हैं, पर किसकी जुबान है

जुगनू मना रहे हैं जश्न, आप देखिए
पर सोचिए सूरज यहां क्यों बेजुबान है

तुलसी, कबीर, मीरा भी, जब से हुए हैं 'कौन'
पूछा किए कि क्या यही हिन्दोस्तान है

बौने से शख्स ने कहा यूं आसमान से
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क्या तुमने उसको देखा है

वो भटक रहा था यहाँ - वहाँ
ढूंढा ना जाने कहाँ - कहाँ
जग चादर तान के सोता था
पर उन आँखों में नींद कहाँ

तीरथ जल का भी पान किया
पोथी-पुस्तक सब छान लिया
उन सबसे मिला जो कहते थे
हमने ईश्वर को जान लिया

दिल में जिज्ञासा का बवाल
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भटका हुआ भविष्य

उसने मुझे जब हिन्दी में बात करते हुए सुना,
तो गौर से देखा
और अपने मित्र से कहा--
'माई लेट ग्रैंडपा यूज्ड टु स्पीक इन दिस लैंग्वेज'
इस भाषा के साथ
मैं उसके लिए
संग्रहालय की वस्तु की तरह विचित्र था
जैसे
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घर

शाम होते ही
वो कौन-से रास्ते हैं, जिन पर मैं चल पड़ता हूँ
वो किसके पैरों के निशान हैं, जिनका मैं पीछा करता हूँ
इन रास्तों पर कौन सी मादा महक है
किन बिल्लियों की चीख की कोलाहल की प्रतिध्वनियां
गूंजती है कानों में
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रणनीति

छुपा लेता हूँ
अपने आक्रोश को नाखून में
छुपा लेता हूँ
अपने विरोध को दांतों में
बदल देता हूँ
अपमान को हँसी में
आत्मसम्मान पर होने वाले हर प्रहार से
सींचता हूँ जिजीविषा को
नहीं! ना पोस्टर, ना नारे, ना इंकलाब
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बेटी को उसके अठाहरवें जन्मदिन पर पत्र

आशा है तुम सकुशल होगी
शुभकामनाएं और
तुम्हारी भावी यात्रा के बारे में कुछ राय

सुनो तुम्हें क्या पता है कि
तुम यहाँ से एक गंध लेकर गई थी
अनचाही गंध

गंध तुम्हारी मां के मसालों की
उसकी झिड़कियों
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जीवन से बाजी में, समय देखो जीत गया

जीवन से बाजी में, समय देखो जीत गया

आयु का अमृत घट, पल-पल कर रीत गया
जीवन से बाजी में, समय देखो जीत गया

प्रश्नों के जंगल में , गुम-सा खड़ा हूँ मैं
मौन के कुहासे में, घायल पड़ा हूँ मैं
शब्द कहाँ, अर्थ कहाँ, गीत कहाँ, लय कहाँ
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जैसे मेरे हैं...

जैसे मेरे हैं, वैसे सबके हों प्रभु
उसने सिर्फ आँखें नहीं दी,
दृष्टि भी दी,
चारों तरफ अंधकार हुआ,
दे दिया ,
ह्रदय में मणि का प्रकाश,
सुरंग थी, खाईयां थी और अंधेरी सर्पीली घाटियां,
तो मन में दे दिया,
अनंत आकाश।

इधर थी बाधाएं, चुनौतियाँ
...

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