Author's Collection
Total Number Of Record :7शस्य श्यामलां
एक पत्थर फेंका गया मेरे घर में
फ़ेंकना चाहती थी
मैं भी उसे किसी शीश महल में
पर आ किसी ने हाथ रोक लिए
मंदिर में सजा दिया उसे
अब हो व्याकुल
कहीं नमी देखते ही
बो देना चाहती हूँ
आस्था विश्वास के बीज
लहलहा उठे फसलें
...
जवाब
दोहराता रहेगा इतिहास
भी युगों-युगों तक यह
दुर्योधन - दुशासन की
कुटिल राजनीति की
बिसात पर खेली गयी
द्रौपदी चीर-हरण जैसी
प्रवासी मजदूरों की
अनोखी कहानी,
जब पूरी सभा रही मौन
और मानवता - सिसकती
व कराहती हुई
...
मेरा दिल मोम सा | कविता
खिड़की दरवाजे लोहे के बना
बोल्ट कर लिए हैं मैंने
कोई कण धूल-सा आंखों में
ना चुभ जाए कहींl
मेरा दिल मोम सा
पिघल न जाए कहींl
बिस्तर पर भी चप्पल
उतारने से कतराती हूँ मैं
कोई फूल कांटा बनकर
ना चुभ जाए कहींl
...
बस...या ख़ुदा | कविता
खिड़की दरवाजे लोहे के बना
बोल्ट कर लिए हैं मैंने
कोई कण धूल-सा आंखों में
ना चुभ जाए कहींl
मेरा दिल मोम सा
पिघल न जाए कहींl
बिस्तर पर भी चप्पल
उतारने से कतराती हूँ मैं
कोई फूल कांटा बनकर
ना चुभ जाए कहींl
...
सुनीता शर्मा के हाइकु
भाव ही भाव
आजकल आ-भा-व
है कहीं कहां
नजरों से यूँ
होता कत्ले आम
अब आम है
हरसिंगार
से चेहरे मेरे मोती
उसके फूल
नेता तेरे ही
नाम -चोरी- घोटाला
भ्रष्टाचार
चांदनी रात
निस्तब्ध- सोए -ओढे
मौत - कफन
बादल कहें
...
प्रवासी भारतीय तू... | कविता
प्रवासी भारतीय तू
अपनी पैतृक जड़ों से यूं जुड़ तू
भेड़ बकरी की तरह
मत कर अंधानुकरण यूँ..
अदम्य साहस, समर्पण, धैर्य से
लिख अपनी नई दास्तां तू..
प्रवासी भारतीय तू...
किसी भौगोलिक सीमा में
न बंध यूँ
नई चेतना, नई प्रेरणा, नया संकल्प
...
दीवानी सी | कविता
एक औरत जो दफन बरसों से
उसने न जाने कैसे
सांसों के आरोह-अवरोह में
कहीं सपने चुनने-बुनने
आरंभ कर दिए...!
यूँ तो प्रकृति कहीं मरुस्थल-सी..
पर स्वेद-जल-समुद्र-से
पाकर प्रेम-ऊष्मा-ताप यूँ ही ..
बरसी-रिमझिम-पगलाई-सी..
भीगी कमली-सी
...