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Total Number Of Record :7दिन अच्छे आने वाले हैं
जब दुख पर दुख हों झेल रहे, बैरी हों पापड़ बेल रहे,
हों दिन ज्यों-त्यों कर ढेल रहे, बाकी न किसी से मेल रहे,
तो अपने जी में यह समझो,
दिन अच्छे आने वाले हैं ।
जब पड़ा विपद का डेरा हो, दुर्घटनाओं ने घेरा हो,
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हम स्वेदश के प्राण
प्रिय स्वदेश है प्राण हमारा,
हम स्वदेश के प्राण।
आँखों में प्रतिपल रहता है,
ह्रदयों में अविचल रहता है
यह है सबल, सबल हैं हम भी
इसके बल से बल रहता है,
और सबल इसको करना है,
करके नव निर्माण।
हम स्वदेश के प्राण।
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सुभाषचन्द्र
तूफान जुल्मों जब्र का सर से गुज़र लिया
कि शक्ति-भक्ति और अमरता का बर लिया ।
खादिम लिया न साथ कोई हमसफर लिया,
परवा न की किसी की हथेली पर सर लिया ।
आया न फिर क़फ़स में चमन से निकल गया ।
दिल में वतन बसा के वतन से निकल गया ।।
बाहर निकल के देश के घर-घर में बस गया;
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सदुपदेश | दोहे
बात सँभारे बोलिए, समुझि सुठाँव-कुठाँव ।
वातै हाथी पाइए, वातै हाथा-पाँव ॥१॥
निकले फिर पलटत नहीं, रहते अन्त पर्यन्त ।
सत्पुरुषों के वर-वचन, गजराजों के दन्त ।।२।।
सेवा किये कृतघ्न की, जात सबै मिलि धूल ।।
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हिन्दी
अच्छी हिन्दी ! प्यारी हिन्दी !
हम तुझ पर बलिहारी ! हिन्दी !!
सुन्दर स्वच्छ सँवारी हिन्दी ।
सरल सुबोध सुधारी हिन्दी ।
हिन्दी की हितकारी हिन्दी ।
जीवन-ज्योति हमारी हिन्दी ।
अच्छी हिन्दी ! प्यारी हिन्दी !
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हैं खाने को कौन
कुछ को मोहन भोग बैठ कर हो खाने को
कुछ सोयें अधपेट तरस दाने-दाने को
कुछ तो लें अवतार स्वर्ग का सुख पाने को
कुछ आयें बस नरक भोग कर मर जाने को
श्रम किसका है, मगर कौन हैं मौज उड़ाते
हैं खाने को कौन, कौन उपजा कर लाते?
- त्रिशूल [पं. गयाप्रसाद शुक्ल 'सनेही']
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स्वदेश
वह हृदय नहीं है पत्थर है,
जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।
जो जीवित जोश जगा न सका,
उस जीवन में कुछ सार नहीं।
जो चल न सका संसार-संग,
उसका होता संसार नहीं॥
जिसने साहस को छोड़ दिया,
वह पहुँच सकेगा पार नहीं।
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