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Total Number Of Record :6कुंती की याचना
मित्रता का बोझ
किसी पहाड़-सा टिका था कर्ण के कंधों पर
पर उसने स्वीकार कर लिया था उसे
किसी भारी कवच की तरह
हाँ, कवच ही तो, जिसने उसे बचाया था
हस्तिनापुर की जनता की नज़रों के वार से
जिसने शांत कर दिया था
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जानकी के लिए
मर चुका है रावण का शरीर
स्तब्ध है सारी लंका
सुनसान है किले का परकोटा
कहीं कोई उत्साह नहीं
किसी घर में नहीं जल रहा है दिया
विभीषण के घर को छोड़ कर।
सागर के किनारे बैठे हैं विजयी राम
विभीषण को लंका का राज्य सौंपते हुए
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उर्मिला
टिमटिमाते दियों से
जगमगा रही है अयोध्या
सरयू में हो रहा है दीप-दान
संगीत और नृत्य के सम्मोहन में हैं
सारे नगरवासी
हर तरफ जयघोष है ----
अयोध्या में लौट आए हैं राम!
अंधेरे में डूबा है उर्मिला का कक्ष
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ओम ह्रीं श्री लक्ष्म्यै नमः
हमारे घर में पुस्तकें ही पुस्तकें थीं
चर्चा होती थी वेदों, पुराणों और शास्त्रों की
राम चरित मानस के साथ पढ़ी जाती थी
चरक संहिता और लघु पाराशरी
हम उन ग्रंथों को सम्भालने में ही लगे रहते थे!
घर में अक्सर खाली रहता था
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एक पगले नास्तिक की प्रार्थना
मुझे क्षमा करना ईश्वर
मुझे नहीं मालूम कि तुम हो या नहीं
कितने ही धर्मग्रंथों में
कितनी ही आकृतियों और वेशभूषाओं में
नज़र आते हो तुम
यहाँ तक कि कुछ का कहना है
नहीं है तुम्हारा शरीर
अब मैं तुम्हें कैसे समझाऊँ ईश्वर
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कृतज्ञ हूँ महामाया
अपनी कक्षाओं में घूम रहे हैं
असंख्य ग्रह और उपग्रह
जुगनुओं की तरह चमक रहे हैं तारे
आकाश गंगा के बीच
तुम्हें खोजता चला जा रहा हूँ मैं
जैसे कोई साधक जाता है
देवालय अपने आराध्य की अर्चना के लिए!
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