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Total Number Of Record :3वीरांगना
मैंने उसको
जब-जब देखा,
लोहा देखा।
लोहे जैसा
तपते देखा, गलते देखा, ढलते देखा
मैंने उसको
गोली जैसा चलते देखा।
- केदारनाथ अग्रवाल
टूटें न तार
टूटें न तार तने जीवन-सितार के।
ऐसा बजाओ इन्हें प्रतिभा की ताल से
किरनों से कुंकुम से सेंदुर-गुलाल से
लज्जित हो युग का अँधेरा निहार के !
ऐसा बजाओ इन्हें ममता की ज्वाल से
फूलों की उँगली के कोमल प्रवाल से
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महाकवि रवीन्द्रनाथ के प्रति
महाकवि रवीन्द्रनाथ के प्रति
कवि! वह कविता जिसे छोड़ कर
चले गए तुम, अब वह सरिता
काट रही है प्रान्त-प्रान्त की
दुर्दम कुण्ठा--जड़ मति-कारा
मुक्त देश के नवोन्मेष के
जनमानस की होकर धारा।
काल जहाँ तक प्रवहमान है
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