Important Links
गीत |
गीतों में प्राय: श्रृंगार-रस, वीर-रस व करुण-रस की प्रधानता देखने को मिलती है। इन्हीं रसों को आधारमूल रखते हुए अधिकतर गीतों ने अपनी भाव-भूमि का चयन किया है। गीत अभिव्यक्ति के लिए विशेष मायने रखते हैं जिसे समझने के लिए स्वर्गीय पं नरेन्द्र शर्मा के शब्द उचित होंगे, "गद्य जब असमर्थ हो जाता है तो कविता जन्म लेती है। कविता जब असमर्थ हो जाती है तो गीत जन्म लेता है।" आइए, विभिन्न रसों में पिरोए हुए गीतों का मिलके आनंद लें। |
Articles Under this Category |
श्रम का वंदन | जन-गीत - गिरीश पंकज |
जिस समाज में श्रम का वंदन, केवल वही हमारा है। |
more... |
तू, मत फिर मारा मारा - रबीन्द्रनाथ टैगोर | Rabindranath Tagore |
निविड़ निशा के अन्धकार में |
more... |
संकल्प-गीत - उदयभानु हंस | Uday Bhanu Hans |
हम तरंगों से उलझकर पार जाना चाहते हैं। |
more... |
दर्द के बोल - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड |
उसको मन की क्या कहता मैं? |
more... |
सोचो - राजीव कुमार सिंह |
लाचारी का लाभ उठाने को लालायित रहते हैं। |
more... |
माँ की याद बहुत आती है ! - डॉ शम्भुनाथ तिवारी |
माँ की याद बहुत आती है ! |
more... |