ग़ज़लें
ग़ज़ल क्या है? यह आलेख उनके लिये विशेष रूप से सहायक होगा जिनका ग़ज़ल से परिचय सिर्फ पढ़ने सुनने तक ही रहा है, इसकी विधा से नहीं। इस आधार आलेख में जो शब्‍द आपको नये लगें उनके लिये आप ई-मेल अथवा टिप्‍पणी के माध्‍यम से पृथक से प्रश्‍न कर सकते हैं लेकिन उचित होगा कि उसके पहले पूरा आलेख पढ़ लें; अधिकाँश उत्‍तर यहीं मिल जायेंगे। एक अच्‍छी परिपूर्ण ग़ज़ल कहने के लिये ग़ज़ल की कुछ आधार बातें समझना जरूरी है। जो संक्षिप्‍त में निम्‍नानुसार हैं: ग़ज़ल- एक पूर्ण ग़ज़ल में मत्‍ला, मक्‍ता और 5 से 11 शेर (बहुवचन अशआर) प्रचलन में ही हैं। यहॉं यह भी समझ लेना जरूरी है कि यदि किसी ग़ज़ल में सभी शेर एक ही विषय की निरंतरता रखते हों तो एक विशेष प्रकार की ग़ज़ल बनती है जिसे मुसल्‍सल ग़ज़ल कहते हैं हालॉंकि प्रचलन गैर-मुसल्‍सल ग़ज़ल का ही अधिक है जिसमें हर शेर स्‍वतंत्र विषय पर होता है। ग़ज़ल का एक वर्गीकरण और होता है मुरद्दफ़ या गैर मुरद्दफ़। जिस ग़ज़ल में रदीफ़ हो उसे मुरद्दफ़ ग़ज़ल कहते हैं अन्‍यथा गैर मुरद्दफ़।

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अश़आर - मुन्नवर राना

माँ | मुन्नवर राना के अश़आर
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दो ग़ज़लें  - विनीता तिवारी

बसर ज़िंदगी यूँ किये जा रहे हैं
न सपने न अपने, जिये जा रहे हैं
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माँ | ग़ज़ल - निदा फ़ाज़ली

बेसन की सोंधी रोटी पर, खट्टी चटनी जैसी माँ
याद आती है चौका, बासन, चिमटा, फूंकनी जैसी माँ
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कलम इतनी घिसो, पुर तेज़--- | ग़ज़ल - संध्या नायर | ऑस्ट्रेलिया

कलम इतनी घिसो, पुर तेज़, उस पर धार आ जाए
करो हमला, कि शायद होश में, सरकार आ जाए
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मुहब्बत की जगह--- | ग़ज़ल - संध्या नायर | ऑस्ट्रेलिया

मुहब्बत की जगह, जुमला चला कर देख लेते हैं
ज़माने के लिए, रिश्ता चला कर देख लेते हैं
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तुम्हारी फ़ाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है | ग़ज़ल - अदम गोंडवी

तुम्हारी फ़ाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है
मगर ये आँकड़ें झूठे हैं ये दावा किताबी है
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है मुश्किलों का दौर - शांती स्वरुप मिश्र

है मुश्किलों का दौर, तो क्या हँसना हँसाना छोड़ दूँ?
क्या तन्हाइयों में बैठ कर, मिलना मिलाना छोड़ दूँ?
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कहाँ तक बचाऊँ ये-- | ग़ज़ल - ममता मिश्रा

कहाँ तक बचाऊँ ये हिम्मत कहो तुम
रही ना किसी में वो ताक़त कहो तुम
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वो बचा रहा है गिरा के जो - निज़ाम-फतेहपुरी

वो बचा रहा है गिरा के जो, वो अज़ीज़ है या रक़ीब है
न समझ सका उसे आज तक, कि वो कौन है जो अजीब है
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ज़हन में गर्द जमी है--- - ज़फ़रुद्दीन ज़फ़र

तुम बहुत सो चुके हो जगिए भी तो सही,
ज़िंदा हो अगर ज़िंदा लगिए भी तो सही।
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