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काव्य |
जब ह्रदय अहं की भावना का परित्याग करके विशुद्ध अनुभूति मात्र रह जाता है, तब वह मुक्त हृदय हो जाता है। हृदय की इस मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द विधान करती आई है उसे काव्य कहते हैं। कविता मनुष्य को स्वार्थ सम्बन्धों के संकुचित घेरे से ऊपर उठाती है और शेष सृष्टि से रागात्मक संबंध जोड़ने में सहायक होती है। काव्य की अनेक परिभाषाएं दी गई हैं। ये परिभाषाएं आधुनिक हिंदी काव्य के लिए भी सही सिद्ध होती हैं। काव्य सिद्ध चित्त को अलौकिक आनंदानुभूति कराता है तो हृदय के तार झंकृत हो उठते हैं। काव्य में सत्यं शिवं सुंदरम् की भावना भी निहित होती है। जिस काव्य में यह सब कुछ पाया जाता है वह उत्तम काव्य माना जाता है। |
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अश़आर - मुन्नवर राना |
माँ | मुन्नवर राना के अश़आर |
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माँ - दिविक रमेश |
रोज़ सुबह, मुँह-अंधेरे |
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दो ग़ज़लें - विनीता तिवारी |
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माँ | ग़ज़ल - निदा फ़ाज़ली |
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मैं और कुछ नहीं कर सकता था - विष्णु नागर |
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सबको लड़ने ही पड़े : दोहे - ज़हीर कुरैशी |
बहुत बुरों के बीच से, करना पड़ा चुनाव । |
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नीति के दोहे - कबीर, तुलसी व रहीम |
कबीर के नीति दोहे
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सवाल - विष्णु नागर |
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माँ कह एक कहानी - मैथिलीशरण गुप्त |
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श्रम का वंदन | जन-गीत - गिरीश पंकज |
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कलम इतनी घिसो, पुर तेज़--- | ग़ज़ल - संध्या नायर | ऑस्ट्रेलिया |
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सरकार कहते हैं - गोपालप्रसाद व्यास | Gopal Prasad Vyas |
बुढ़ापे में जो हो जाए उसे हम प्यार कहते हैं, |
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माँ - डॉ. जगदीश व्योम |
माँ कबीर की साखी जैसी |
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दुनिया मतलब की - द्यानतराय |
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मुहब्बत की जगह--- | ग़ज़ल - संध्या नायर | ऑस्ट्रेलिया |
मुहब्बत की जगह, जुमला चला कर देख लेते हैं |
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अजब हैरान हूँ भगवन् - अज्ञात |
अजब हैरान हूँ भगवन्, तुम्हें क्योकर रिझाऊं मैं। |
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तुम्हारी फ़ाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है | ग़ज़ल - अदम गोंडवी |
तुम्हारी फ़ाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है |
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सत्ता - गोपालप्रसाद व्यास | Gopal Prasad Vyas |
सत्ता अंधी है |
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देश-विदेश के हिंदी हाइकु - भारत-दर्शन संकलन |
रस झरता |
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तू, मत फिर मारा मारा - रबीन्द्रनाथ टैगोर | Rabindranath Tagore |
निविड़ निशा के अन्धकार में |
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संकल्प-गीत - उदयभानु हंस | Uday Bhanu Hans |
हम तरंगों से उलझकर पार जाना चाहते हैं। |
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अशेष दान - रबीन्द्रनाथ टैगोर | Rabindranath Tagore |
किया है तुमने मुझे अशेष, तुम्हारी लीला यह भगवान! |
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नन्ही सचाई - अशोक चक्रधर | Ashok Chakradhar |
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दर्द के बोल - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड |
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पाँच क्षणिकाएँ - नवल बीकानेरी |
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अकेला चल | रबीन्द्रनाथ टैगोर की कविता - रबीन्द्रनाथ टैगोर | Rabindranath Tagore |
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है मुश्किलों का दौर - शांती स्वरुप मिश्र |
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सोचो - राजीव कुमार सिंह |
लाचारी का लाभ उठाने को लालायित रहते हैं। |
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महाकवि रवीन्द्रनाथ के प्रति - केदारनाथ अग्रवाल | Kedarnath Agarwal |
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माँ की याद बहुत आती है ! - डॉ शम्भुनाथ तिवारी |
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इस महामारी में - डॉ. मनीष कुमार मिश्रा |
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चाह - श्रीमन्नारायण अग्रवाल |
चाह नहीं मुझको सुनने की, |
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कहाँ तक बचाऊँ ये-- | ग़ज़ल - ममता मिश्रा |
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वो बचा रहा है गिरा के जो - निज़ाम-फतेहपुरी |
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