देशभाषा की उन्नति से ही देशोन्नति होती है। - सुधाकर द्विवेदी।
आलेख
प्रतिनिधि निबंधों व समालोचनाओं का संकलन आलेख, लेख और निबंध.

Articles Under this Category

रजकुसुम कहानी संग्रह की समीक्षाएं  - डॉ. मधु भारद्वाज एवं नरेश गुलाटी

Rita Kaushal Ke Kahani Sangrah Ki Samiksha
...

गणतंत्र की ऐतिहासिक कहानी - भारत-दर्शन संकलन

भारत 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र हुआ तथा 26 जनवरी 1950 को इसका संविधान प्रभावी हुआ। इस संविधान के अनुसार भारत देश एक लोकतांत्रिक, संप्रभु तथा गणतंत्र देश घोषित किया गया।
...

‘हम कौन थे, क्या हो गए---!’ - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

किसी समय हिंदी पत्रकारिता आदर्श और नैतिक मूल्यों से बंधी हुई थी। पत्रकारिता को व्यवसाय नहीं, ‘धर्म' समझा जाता था। कभी इस देश में महावीर प्रसाद द्विवेदी, गणेशशंकर विद्यार्थी, माखनलाल चतुर्वेदी, महात्मा गांधी, प्रेमचंद और बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन' जैसे लोग पत्रकारिता से जुड़े हुए थे। प्रभाष जोशी सरीखे पत्रकार तो अभी हाल ही तक पत्रकारिता का धर्म निभाते रहे हैं। कई पत्रकारों के सम्मान में कवियों ने यहाँ तक लिखा है--
...

गणतंत्र दिवस आयोजन - भारत-दर्शन संकलन

हर वर्ष गणतंत्र दिवस पूरे देश में बड़े उत्‍साह के साथ मनाया जाता है। राजधानी नई दिल्‍ली में राष्‍ट्र‍पति भवन के समीप रायसीना पहाड़ी से राजपथ पर गुजरते हुए इंडिया गेट तक और बाद में ऐतिहासिक लाल किले तक भव्य परेड का आयोजन किया जाता है।
...

गणतंत्र की पृष्ठभूमि - भारत-दर्शन संकलन

भारतीय राष्‍ट्रीय कांग्रेस का लाहौर सत्र
...

भारत का राष्ट्र-गान - भारत-दर्शन संकलन

राष्ट्र-गान (National Anthem) संवैधानिक तौर पर मान्य होता है और इसे संवैधानिक विशेषाधिकार प्राप्त होते हैं। रबींद्रनाथ टैगोर द्वारा रचित, 'जन-गण-मन' हमारे देश भारत का राष्ट्र-गान है। किसी भी देश में राष्ट्र-गान का गाया जाना अनिवार्य हो सकता है और उसके असम्मान या अवहेलना पर दंड का विधान भी हो सकता है। भारत के सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार यदि कोई व्यक्ति राष्ट्र गान के अवसर पर इसमें सम्मिलित न होकर, केवल आदरपूर्वक मौन खड़ा रहता है तो उसे अवहेलना नहीं कहा जा सकता। भारत में धर्म इत्यादि के आधार पर लोगों को ऐसी छूट दी गई है।
...

भारत का राष्ट्रीय गीत | National Song - बंकिम चन्द्र चटर्जी

वंदे मातरम्, वंदे मातरम्!
सुजलाम्, सुफलाम्, मलयज शीतलाम्,
शस्यश्यामलाम्, मातरम्!
वंदे मातरम्!
शुभ्रज्योत्सनाम् पुलकितयामिनीम्,
फुल्लकुसुमित द्रुमदल शोभिनीम्,
सुहासिनीम् सुमधुर भाषिणीम्,
सुखदाम् वरदाम्, मातरम्!
वंदे मातरम्, वंदे मातरम्॥

...

प्रथम राष्ट्रपति का संदेश - भारत-दर्शन संकलन

गणतंत्र के गठन पर भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद का देशवासियों को संदेश:
...

न्यूज़ीलैंड के साहित्यकार और उनकी रचनाएं - रोहित कुमार हैप्पी

यहाँ न्यूज़ीलैंड के हिंदी लेखकों व कवियों की रचनाएँ जिनमें उनकी कविताएं, कहानियाँ व लघुकथाएँ सम्मिलित हैं, संकलित की गई हैं।
...

दुनिया के दर पर एक और कैलेंडर वर्ष--2021  - डॉ साकेत सहाय

दुनिया न किसी के लिए रुकती है न थकती है। समय के साथ चलती है। समय के साथ कदम-ताल करती है क्योंकि समय ही सब कुछ है। जीवन बिना समय के निर्मूल है। दुनिया की गति-प्रगति इसी के इर्द-गिर्द घूमती है। चाहे अदना हो या खास सभी का जीवन घंटा, मिनट, सेकंड, पहर, दोपहर, क्षण, प्रतिक्षण, दिन, सप्ताह, माह, साल इन सभी शब्दों से हर पल प्रभावित होता है। परंतु क्या हमने कभी सोचा है कि एक आम आदमी के जीवन में समय की इतनी बड़ी भूमिका को भला कौन प्रतिबिंबित करता है? सोचिए मत! ना ही दिमाग पर जोर डालिए। समय का यह दूत हम सभी के घरों की दिवारों पर, टेबुलों पर, अलमारियों पर, दराजों पर, खिड़कियों पर रखे या टंगे अक्सर दिख जाते है। कहने को तो हमारे विज्ञान की परिभाषा में ये निर्जीव हैं। लेकिन समय के ये दूत हम सभी के जीवन में एक सजीव से भी अधिक प्रभाव डालते है। अब तक हममें से अधिकांश समझ गए होंगे कि समय के यह दूत और कोई नहीं कैलेंडर है। जिसकी प्रतीक्षा हम सभी को प्रत्येक वर्ष के आरंभ पर रहती है।
...

नव-वर्ष! स्वागत है तुम्हारा - डॉ० शिबन कृष्ण रैणा

नव-वर्ष यानी नया साल! जो था सो बीत गया और जो काल के गर्भ में है,वह हर पल,हर क्षण प्रस्फुटित होने वाला है। यों देखा जाए तो परिवर्तन प्रकृति का आधारभूत नियम है। तभी तो दार्शनिकों ने इसे एक चिरंतन सत्य की संज्ञा दी है। इसी नियम के अधीन काल-रूपी पाखी के पंख लग जाते हैं और वह स्वयं तो विलीन हो जाता है किन्तु अपने पीछे छोड जाता है काल के सांचे में ढली विविधायामी आकृतियां। कुछ अच्छी तो कुछ बुरी। कुछ रुपहली तो कुछ कुरूप। काल का यह खेल या अनुशासन अनन्त समय से चला आ रहा है। तभी तो काल को महाकाल या महाबली भी कहा गया है। उसकी थाह पाना कठिन है। उस अनादि-अनन्त महाकाल को दिन,मास और वर्ष की गणनाओं में विभाजित करने का प्रयास हमारे गणितज्ञ एवं ज्योतिषी लाखों वर्षों से करते आ रहे हैं। उसी काल गणना का एक वर्ष देखते-ही-देखते हमारे हाथों से फिसल कर इतिहास का पृष्ठ बन गया और हम बाहें पसारे पूरे उत्साह के साथ अब नए वर्ष का स्वागत करने को तैयार हैं।
...

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें