अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।
कथा-कहानी
अंतरजाल पर हिंदी कहानियां व हिंदी साहित्य निशुल्क पढ़ें। कथा-कहानी के अंतर्गत यहां आप हिंदी कहानियां, कथाएं, लोक-कथाएं व लघु-कथाएं पढ़ पाएंगे। पढ़िए मुंशी प्रेमचंद,रबीन्द्रनाथ टैगोर, भीष्म साहनी, मोहन राकेश, चंद्रधर शर्मा गुलेरी, फणीश्वरनाथ रेणु, सुदर्शन, कमलेश्वर, विष्णु प्रभाकर, कृष्णा सोबती, यशपाल, अज्ञेय, निराला, महादेवी वर्मालियो टोल्स्टोय की कहानियां

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मालवीय जी - रोहित कुमार 'हैप्पी'

महामना मालवीय जी को एक विद्वान ने कहा-- "महाराज!  आप मुझे 100 गालियां देकर देख ले,  मुझे क्रोध नहीं आएगा।"
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गधे से सीख  - लोक साहित्य

एक शाम की बात है। मुल्ला नसरुद्दीन अपने घर की छत पर चढ़े और चारों ओर का नज़ारा देखा। उनको लगा कि इतनी ख़ूबसूरत शाम है, तो क्यों न अपने गधे को भी छत पर ले आया जाए। इन नज़ारों का लुत्फ़ बेचारा गधा भी ले ले।
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मनीऑर्डर - डॉ रमेश पोखरियाल निशंक

'सुन्दरू के पिता का मनीऑर्डर नहीं आया, इस बार न जाने क्यों इतनी देर हो गयी? वैसे महीने की दस से पन्द्रह तारीख के बीच उनके रुपये आ ही जाते थे। उनकी ड्यूटी आजकल लेह में है। पिछले महीने तक बे सुदूर आईजॉल मिजोरम में तैनात थे, तब भी पैसे समय पर आ गये थे, किन्तु इस बार तो हद हो गयी थी। आज महीने की सत्ताईस तारीख हो गयी और सुन्दरू के पिता के रुपये तो दूर, लेह लदाख जाने के बाद से कोई चिट्ठी तक नहीं आयी। समझ में नहीं आता कि कहाँ से बच्चों की फीस व घर की राशन पानी के लिए पैसों का इन्तजाम करूँगी?'
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अमावस्या की रात्रि - मुंशी प्रेमचंद | Munshi Premchand

दीवाली की संध्या थी। श्रीनगर के घूरों और खँडहरों के भी भाग्य चमक उठे थे। कस्बे के लड़के और लड़कियाँ श्वेत थालियों में दीपक लिये मंदिर की ओर जा रही थीं। दीपों से उनके मुखारविंद प्रकाशमान थे। प्रत्येक गृह रोशनी से जगमगा रहा था। केवल पंडित देवदत्त का सतधारा भवन काली घटा के अंधकार में गंभीर और भयंकर रूप में खड़ा था। गंभीर इसलिए कि उसे अपनी उन्नति के दिन भूले न थे भयंकर इसलिए कि यह जगमगाहट मानो उसे चिढ़ा रही थी। एक समय वह था जबकि ईर्ष्या भी उसे देख-देखकर हाथ मलती थी और एक समय यह है जबकि घृणा भी उस पर कटाक्ष करती है। द्वार पर द्वारपाल की जगह अब मदार और एरंड के वृक्ष खड़े थे। दीवानखाने में एक मतंग साँड़ अकड़ता था। ऊपर के घरों में जहाँ सुन्दर रमणियाँ मनोहर संगीत गाती थीं वहाँ आज जंगली कबूतरों के मधुर स्वर सुनायी देते थे। किसी अँग्रेजी मदरसे के विद्यार्थी के आचरण की भाँति उसकी जड़ें हिल गयी थीं और उसकी दीवारें किसी विधवा स्त्री के हृदय की भाँति विदीर्ण हो रही थीं पर समय को हम कुछ नहीं कह सकते। समय की निंदा व्यर्थ और भूल है यह मूर्खता और अदूरदर्शिता का फल था।
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खिचड़ी भाषा - भारत-दर्शन संकलन

एक बार एक विद्यार्थी ने पंडित नेहरू से 'आटोग्राफ ' मांगा । पंडित जी ने अंग्रेजी में हस्ताक्षर करके उसे पुस्तिका लौटा दी । फिर विद्यार्थी ने पुस्तिका पर एक शुभकामना संदेश लिखने के लिए प्रार्थना की तो चाचा नेहरू ने वह भी पूरीकर दी ।
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दिल - सुनील कुमार शर्मा

सागर में काफ़ी दूर जाने के बाद, मगर अपनी पीठ पर बैठे बन्दर से बोला, "मुझे क्षमा करना मित्र! मैंने तुमसे झूठ बोला था। असल मे मेरी मगरी ने तेरे दिल का भक्षण करना है; इसलिए मैं तुझे अपने घर ले जा रहा हूँ।"
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चूहे की कहानी - भारत-दर्शन संकलन | Collections

एक विशाल घने जंगल में एक महात्मा की कुटिया थी और उसमें एक चूहा रहा करता था। महात्मा उसे बहुत प्यार करते थे। जब पूजा से निवृत हो वे अपनी मृगछाला पर आ बैठते तो चूहा दौड़ता हुआ उनके पास आ पहुँचता। कभी उनकी टाँगो पर दौड़ता, कभी कूद कर उनके कंधों पर चढ़ बैठता। महात्मा सारे वक्त हँसते रहते। धीरे-धीरे उन्होंने चूहे को मनुष्यों की तरह बोलना भी सिखा दिया ।
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शुभ दीपावली  - अनिल चन्द्रा | Anil Chandra

जितेन्द्र राणा को जब टेलीफोन पर बताया गया कि उसका बेटा गुवाहाटी में बीमार है ओर उसके जीने की कोई आशा नहीं तो उसकी समझ में नहीं आया कि वह कहाँ से इतना पैसा जुटाए कि वह और उसकी पली वहाँ जा सके। जितेन्द्र राणा ने जीवन-भर ट्रक ड्राइवर के रूप में काम किया था, लेकिन वह कभी कोई बचत नहीं कर पाया था। अपने अहंकार को वश में करते हुए उसने अपने कुछ निकटतम सम्बंधियों को सहायता के लिए कहा, लेकिन उनकी भी हालत उससे कुछ अच्छी नहीं थी। सो लज्जित और निराश होकर जितेन्द्र राणा अपने घर से एक किलोमीटर दूर एक टेलीफोन बूथ पर गया और उसने मालिक से कहा, ''मेरा बेटा काफी बीमार है और मेरे पास नकद देने के लिए पैसा नहीं है। क्या आप मुझ पर भरोसा करके मुझे गुवाहाटी फोन करने देंगे? मैं इसके पैसे बाद में दे दूंगा।''
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जैसा राम वैसी सीता | कहानी - सपना मांगलिक

आज फिर स्कूल जाते वक्त बिन्दिया दिखाई पड गयी । ना जाने क्यों यह विन्दिया जब तब मेरे सामने आ ही जाती है । शायद 'लॉ ऑफ़ रिवर्स इफेक्ट' मनुष्यों पर कुछ ज्यादा लागू होता है जिस आदमी से हम कन्नी काटना चाहते हैं या जिसे देखने मात्र से मन ख़राब हो जाता है वही अकसर आपके सामने आकर खड़ा हो जाता है । हालाँकि बिंदिया ने कभी मेरे साथ कुछ गलत नहीं किया है बल्कि सामने पड़ते ही हमेशा नमस्ते मास्टरजी कहकर मेरा अभिवादन ही करती है । फिर भी उसकी दिलफेंक अदा, द्विअर्थी बातें और पुरुषों के साथ उन्मुक्त हास परिहास नारीत्व की गरिमा के अनुरूप कतई नहीं कहा जा सकता । मोहल्ले के लोग उसे चरित्रहीन ही समझते थे और वही विचार मेरा भी था । हालांकि मेरे अन्दर का शिक्षक और दार्शनिक मानव को उसूलों और रिवाजों की कसौटी पर मापने के लिए मुझे धिक्कारता था मगर दिमाग की प्रोग्रामिंग तो बचपन से डाले गए संस्कारों से हो गयी थी । जैसे कम्प्यूटर को प्रोग्राम किया जाता है वह वैसे ही निर्देशों का पालन करता है ठीक उसी प्रकार मानव मस्तिष्क है ।
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दीवाली किसे कहते हैं? - रोहित कुमार 'हैप्पी'

"बापू परसों दीवाली है, ना? बापू, दीवाली किसे कहते हैं?" सड़क के किनारे फुटपाथ पर दीये बेच रहे एक कुम्हार के फटेहाल नन्हे से बच्चे ने अपने बाप से सवाल किया।
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