यह संदेह निर्मूल है कि हिंदीवाले उर्दू का नाश चाहते हैं। - राजेन्द्र प्रसाद।
काव्य
जब ह्रदय अहं की भावना का परित्याग करके विशुद्ध अनुभूति मात्र रह जाता है, तब वह मुक्त हृदय हो जाता है। हृदय की इस मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द विधान करती आई है उसे काव्य कहते हैं। कविता मनुष्य को स्वार्थ सम्बन्धों के संकुचित घेरे से ऊपर उठाती है और शेष सृष्टि से रागात्मक संबंध जोड़ने में सहायक होती है। काव्य की अनेक परिभाषाएं दी गई हैं। ये परिभाषाएं आधुनिक हिंदी काव्य के लिए भी सही सिद्ध होती हैं। काव्य सिद्ध चित्त को अलौकिक आनंदानुभूति कराता है तो हृदय के तार झंकृत हो उठते हैं। काव्य में सत्यं शिवं सुंदरम् की भावना भी निहित होती है। जिस काव्य में यह सब कुछ पाया जाता है वह उत्तम काव्य माना जाता है।

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गुरु महिमा दोहे - भारत-दर्शन संकलन

गुरू महिमा पर दोहे
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हिन्दी दिवस - खाक बनारसी

अपने को आता है
बस इसमें ही रस
वर्ष में मना लेते
एक दिन हिंदी दिवस
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हम स्वेदश के प्राण - गयाप्रसाद शुक्ल सनेही

प्रिय स्वदेश है प्राण हमारा,
हम स्वदेश के प्राण।

आँखों में प्रतिपल रहता है,
ह्रदयों में अविचल रहता है
यह है सबल, सबल हैं हम भी
इसके बल से बल रहता है,

और सबल इसको करना है,
करके नव निर्माण।
हम स्वदेश के प्राण।

यहीं हमें जीना मरना है,
हर दम इसका दम भरना है,
सम्मुख अगर काल भी आये
चार हाथ उससे करना है,

इसकी रक्षा धर्म हमारा,
यही हमारा त्राण।
हम स्वदेश के प्राण।
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हैरान परेशान, ये हिन्दोस्तान है - अनिल जोशी | Anil Joshi

हैरान परेशान, ये हिन्दोस्तान है
ये होंठ तो अपने हैं, पर किसकी जुबान है
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मेरी अभिलाषा | कविता  - अनिता बरार | ऑस्ट्रेलिया

चाहती हूँ आज देना, प्यार का उपहार जग को।।
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हिन्दी के सुमनों के प्रति पत्र  - सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' | Suryakant Tripathi 'Nirala'

मैं जीर्ण-साज बहु छिद्र आज,
तुम सुदल सुरंग सुवास सुमन,
मैं हूँ केवल पतदल-आसन,
तुम सहज बिराजे महाराज।
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हमारी हिंदी - रघुवीर सहाय | Raghuvir Sahay

हमारी हिंदी एक दुहाजू की नई बीवी है
बहुत बोलनेवाली बहुत खानेवाली बहुत सोनेवाली
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हिंदी मातु हमारी - प्रो. मनोरंजन - भारत-दर्शन संकलन | Collections

प्रो. मनोरंजन जी, एम. ए, काशी विश्वविद्यालय की यह रचना लाहौर से प्रकाशित 'खरी बात' में 1935 में प्रकाशित हुई थी।
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हिंदी जन की बोली है - गिरिजाकुमार माथुर | Girija Kumar Mathur

एक डोर में सबको जो है बाँधती
वह हिंदी है,
हर भाषा को सगी बहन जो मानती
वह हिंदी है।
भरी-पूरी हों सभी बोलियां
यही कामना हिंदी है,
गहरी हो पहचान आपसी
यही साधना हिंदी है,
सौत विदेशी रहे न रानी
यही भावना हिंदी है।
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हिन्दी भाषा - अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' | Ayodhya Singh Upadhyaya Hariaudh

छ्प्पै
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हिन्दी रुबाइयां - उदयभानु हंस | Uday Bhanu Hans

मंझधार से बचने के सहारे नहीं होते,
दुर्दिन में कभी चाँद सितारे नहीं होते।
हम पार भी जायें तो भला जायें किधर से,
इस प्रेम की सरिता के किनारे नहीं होते॥ 
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युगावतार गांधी - सोहनलाल द्विवेदी | Sohanlal Dwivedi

चल पड़े जिधर दो डग, मग में
चल पड़े कोटि पग उसी ओर;
गड़ गई जिधर भी एक दृष्टि
गड़ गए कोटि दृग उसी ओर,
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गांधी कविता कोश  - भारत-दर्शन

गांधी कविता कोश - यह गांधी जी की 150वीं जयंती के अवसर पर गांधी जी पर लिखी कविताओं का कोश है। यहाँ यथासंभव सभी प्रमुख साहित्यकारों की गांधी जी पर लिखी गयी रचनाएँ संकलित की जाएंगी। 
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अँग्रेज़ी प्राणन से प्यारी। - बरसाने लाल चतुर्वेदी

अँग्रेज़ी प्राणन से प्यारी।
चले गए अँग्रेज़ छोड़ि याहि, हमने है मस्तक पे धारी।
ये रानी बनिके है बैठी, चाची, ताई और महतारी।
उच्च नौकरी की ये कुंजी, अफसर यही बनावनहारी।
सबसे मीठी यही लगत है, भाषाएँ बाकी सब खारी।
दो प्रतिशत लपकन ने याकू, सबके ऊपर है बैठारी।
याहि हटाइबे की चर्चा सुनि, भक्तन के दिल होंइ दु:खारी।
दफ्तर में याके दासन ने, फाइल याही सौं रंगडारीं।
याके प्रेमी हर आफिस में, विनते ये नाहिं जाहि बिसारी।
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हिन्दी - गौरी शंकर वैद्य ‘विनम्र’

भारत माता के अन्तस की
निर्मल वाणी हिन्दी है।
ज्ञान और विज्ञान शिरोमणि,
जन-कल्याणी हिन्दी है।
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हिंदी हम सबकी परिभाषा - डा० लक्ष्मीमल्ल सिंघवी

कोटि-कोटि कंठों की भाषा,
जनगण की मुखरित अभिलाषा,
हिंदी है पहचान हमारी,
हिंदी हम सबकी परिभाषा।
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फिर नये मौसम की | ग़ज़ल  - भावना कुँअर | ऑस्ट्रेलिया

फिर नये मौसम की हम बातें करें
साथ खुशियों, ग़म की हम बातें करें

जगमगाते थे दिए भी साथ में
फिर भला क्यूँ, तम की हम बातें करें
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अनुपम भाषा है हिन्दी - श्रीनिवास

अनुपम भाषा है हिन्दी
बढती आशा है हिन्दी !
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कबीर की हिंदी ग़ज़ल - कबीरदास | Kabirdas

क्या कबीर हिंदी के पहले ग़ज़लकार थे? यदि कबीर की निम्न रचना को देखें तो कबीर ने निसंदेह ग़ज़ल कहीं है:
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भटका हुआ भविष्य - अनिल जोशी | Anil Joshi

उसने मुझे जब हिन्दी में बात करते हुए सुना,
तो गौर से देखा
और अपने मित्र से कहा--
'माई लेट ग्रैंडपा यूज्ड टु स्पीक इन दिस लैंग्वेज'
इस भाषा के साथ
मैं उसके लिए
संग्रहालय की वस्तु की तरह विचित्र था
जैसे
दीवार पर टंगा हुआ कोई चित्र था
जिसे हार तो पहनाया जा सकता है
पर
गले नहीं लगाया जा सकता।
...

हिंदी - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

हिंदी उनकी राजनीति है 
हिंदी इनका हथियार है
हिंदी कईयों का औज़ार है। 
हिंदी उनके लिए भाषण है
हिंदी इनके लिए जलसा है 
हिंदी कईयों का नारा है। 
जरा गिनो तो 
अनगनित
हिंदीवालों में से
कितनों को हिंदी से प्यार है?
जरा बताओ तो 
यह कैसा अनुराग है?
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एक भाव आह्लाद हो ! - डॉ० इंद्रराज बैद 'अधीर'

थकी-हारी, मनमारी, सरकारी राज भाषा है,
बड़ी दीन, पराधीन बिचारी स्वराज भाषा है ।
किसी के इंगितों पर डोलती यह ताज भाषा है,
जिस तरह चाहो, करो, हिन्दी तुम्हारी राजभाषा है ।
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खोजिए - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

भीड़ है
शब्द हैं,
नगाड़े हैं।
लेकिन, गुम है--
इंसान, ओज और ताल।

खोजिए, मिल जाएं शायद--
भीड़ में इंसान
शब्दों में ओज
और
नगाड़ों में ताल। 
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हिंदी देश की शान - डॉ रमेश पोखरियाल निशंक

एकता की सूचक हिदी भारत माँ की आन है,
कोई माने या न माने हिदी देश की शान है।
भारत माँ का प्राण है
भारत-गौरव गान है।
सैकड़ों हैं बोलियाँ पर हिदी सबकी जान है,
सुंदर सरस लुभावनी ये कोमल कुसुम समान है।
हृदय मिलाने वाली हिदी नित करती उत्थान है,
कोई माने या न माने हिदी सत्य प्रमाण है।
भारत माँ की प्राण है,
भारत-गौरव गान है।
सागर के सम भाव है इसमें रस तो अमृतपान है,
मन को सदा लुभाती हिदी बहुरत्नों की खान है।
भाषा हिदी देश की बिदी, घर ये हिदुस्तान है,
कोई माने या न माने हिदी निज सम्मान है।
भारत माँ की प्राण है,
भारत-गौरव गान है।
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ज़िन्दगी इतनी भी आसान नहीं | ग़ज़ल - रेखा राजवंशी | ऑस्ट्रेलिया

ज़िन्दगी इतनी भी आसान नहीं
कौन है जो कि परेशान नहीं
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हिन्दी भारत की भाषा - श्रीमती रेवती

भाषा हो या हो राजनीति अब और गुलामी सहय नहीं,
बलिदानों का अपमान सहन करना कोई औदार्य नहीं ।
रवि-रश्मि अपहरण करने को मत बढें किसी के क्रूर हाथ
इन मुसकाते जल-जातों को यह सूर्य ग्रहण स्वीकार्य नहीं ।
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खेत में तपसी खड़ा है - भैयालाल व्यास

खेत में तपसी खड़ा है।
हाथ की ठेठे बतातीं,
भाग्य से कितना लड़ा है! खेत में तपसी खड़ा है।
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मेरी मातृ भाषा हिंदी  - सुनीता बहल

मेरी मातृ भाषा है हिंदी,
जिसके माथे पर सुशोभित है बिंदी।  
देश की है यह सिरमौर,
अंग्रेजी का न चलता इस पर जोर। 
विश्वव्यापी भाषा है चाहे अंग्रेजी,
हिंदी अपनेपन का सुख देती।
मेरी मातृ भाषा है हिंदी,
जिसके माथे पर सुशोभित है बिंदी।
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आओ ! आओ ! भारतवासी । - बाबू जगन्नाथ

आओ ! आओ ! भारतवासी ।
क्या बंगाली ! क्या मदरासी ! ॥
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जय हिन्दी  - रघुवीर शरण

जय हिन्दी ! जय देव नागरी ! जय जय भारत माता।
‘तुलसी' 'सूर' और 'मीरा' का जीवन इसमें गाता ॥
नभ से नाद सुनें हिन्दी का, धरती पर हिन्दी हो।
भारत माता के माथे पर हिन्दी की बिन्दी हो ॥
यही राष्ट्र भाषा है अपनी, यही राज भाषा है।
मातृ प्रेम का मधु है इसमें, सब की अभिलाषा है ।
जय जय हिन्दी का जयकारा, कोटि कोटि को भाता ।
जय हिन्दी ! जय देवनागरी ! जय जय भारत माता !!
सारी दुनिया ऊंचे स्वर से- जय जय हिन्दी ! गाये ।
जन जन का मन इस भाषा पर - पूजा फूल चढ़ाये ॥
चलो ! हिमालय की चोटी पर- जय जय हिन्दी गायें ।
हिन्दी की गंगा हिमगिरि से- दुनिया में लहरायें ।
हिन्दी भाषा के भारत में, गीत तिरंगा गाता ।
जय हिन्दी ! जय देवनागरी ! जय जय भारत माता !!
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हिन्दी-भक्त  - काका हाथरसी | Kaka Hathrasi

सुनो एक कविगोष्ठी का, अद्भुत सम्वाद ।
कलाकार द्वय भिडे गए, चलने लगा विवाद ।।
चलने लगी विवाद, एक थे कविवर 'घायल' ।
दूजे श्री 'तलवार', नई कविता के कायल ।।
कह 'काका' कवि, पर्त काव्य के खोल रहे थे।
कविता और अकविता को, वे तोल रहे थे ।।
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कोरोना हाइकु - बासुदेव अग्रवाल नमन

कोरोनासुर
विपदा बन कर
टूटा भू पर।
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गन्ने के खेतों में हिंदी के आखर  - राकेश पाण्डेय

उन गिरमिटियों की श्रमसाधना को समर्पित जिनके कारण आज हिंदी विश्वभाषा बनी।
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हस्ताक्षर  - राजेश चेतन

हस्ताक्षर तक हम करते हैं
एक विदेशी भाषा में
माना हम आज़ाद हो गए
लेकिन किस परिभाषा में
जन्म-दिवस पर केक काट कर
गाते हम अंग्रेज़ी में
शादी-ब्याह तलक की चिट्ठी
छपवाते अंग्रेज़ी में
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हिंदी की दुर्दशा | हिंदी की दुर्दशा | कुंडलियाँ  - काका हाथरसी | Kaka Hathrasi

बटुकदत्त से कह रहे, लटुकदत्त आचार्य।
सुना? रूस में हो गई है हिंदी अनिवार्य।।
है हिंदी अनिवार्य, राष्ट्रभाषा के चाचा-
बनने वालों के मुँह पर क्या पड़ा तमाचा।।
कहँ ‘काका', जो ऐश कर रहे रजधानी में।
नहीं डूब सकते क्या चुल्लू भर पानी में।।
...

राजभाषा तेरे लिए ..... - जयप्रकाश शर्मा

राजभाषा तेरे लिए
ये जान भी कुर्बान है।
मात्र मेरी ही नहीं तू
हम सभी की शान है।।
...

कुछ दोहे - डॉo सत्यवान सौरभ

अपने प्यारे गाँव से, बस है यही सवाल।
बूढा पीपल है कहाँ, गई कहाँ चौपाल॥
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मातृभाषा प्रेम पर भारतेंदु के दोहे  - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र | Bharatendu Harishchandra

निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिनु निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल॥

अँग्रेजी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीन।
पै निज भाषा-ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन॥
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कोरोना पर दोहे  - डॉ रामनिवास मानव | Dr Ramniwas Manav

गली-मुहल्ले चुप सभी, घर-दरवाजे बन्द।
कोरोना का भूत ही, घुम रहा स्वच्छन्द॥
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हिंदी पर दोहे  - रोहित कुमार 'हैप्पी'

बाहर से तो पीटते, सब हिंदी का ढोल।
अंतस में रखते नहीं, इसका कोई मोल ।।
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हिन्दी–दिवस नहीं, हिन्दी डे - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

हिन्दी दिवस पर
एक नेता जी
बतिया रहे थे,
'मेरी पब्लिक से
ये रिक्वेस्ट है
कि वे हिन्दी अपनाएं
इसे नेशनवाइड पापुलर लेंगुएज बनाएं
और
हिन्दी को नेशनल लेंगुएज बनाने की
अपनी डयूटी निभाएं।'
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हिन्दी - गयाप्रसाद शुक्ल सनेही

अच्छी हिन्दी ! प्यारी हिन्दी !
हम तुझ पर बलिहारी ! हिन्दी !!

सुन्दर स्वच्छ सँवारी हिन्दी ।
सरल सुबोध सुधारी हिन्दी ।
हिन्दी की हितकारी हिन्दी ।
जीवन-ज्योति हमारी हिन्दी ।
अच्छी हिन्दी ! प्यारी हिन्दी !
हम तुझ पर बलिहारी हिन्दी !!
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कलयुग | मुक्तक - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

कलयुग में पाई है बस यही शिक्षा
हर बात पर मांगें हैं अग्नि-परीक्षा
बुद्ध भी अगर आज उतरें धरा पर
मांगे ना देगा उन्हें कोई भिक्षा।
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हिंदी पर दोहे  - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

बाहर से तो पीटते, सब हिंदी का ढोल।
अंतस में रखते नहीं, इसका कोई मोल ।।
...

हिंदी-प्रेम  - काका हाथरसी | Kaka Hathrasi

हिंदी-हिंदू-हिंद का, जिनकी रग में रक्त
सत्ता पाकर हो गए, अँगरेज़ी के भक्त
अँगरेज़ी के भक्त, कहाँ तक करें बड़ाई
मुँह पर हिंदी-प्रेम, ह्रदय में अँगरेज़ी छाई
शुभ चिंतक श्रीमान, राष्ट्रभाषा के सच्चे
‘कानवेण्ट' में दाख़िल करा दिए हैं बच्चे
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आओ साथी जी लेते हैं - अमिताभ त्रिपाठी 'अमित'

आओ साथी जी लेते हैं
विष हो या अमृत हो जीवन
सहज भाव से पी लेते हैं
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बदलकर आंसुओं की धार | गीत - तुलसी

बदलकर आंसुओं की धार को मैं मुस्कुराती हूँ।
जगाती ओज की धारा बहुत सुख-चैन पाती हूँ॥
ना मेरे शब्द है उनके लिए जो देशद्रोही हैं।
वतन से प्यार है जिनको उन्हें कविता सुनाती हूँ॥
बदलकर आंसुओं की-------
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रो उठोगे मीत मेरे  - आनन्द विश्वास (Anand Vishvas)

दर्द की उपमा बना मैं जा रहा हूँ,
पीर की प्रतिमा बना मैं जा रहा हूँ।
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एक भारत मुझमें बसता है - आराधना झा श्रीवास्तव

देश त्याग परदेस बसे
ये कह मुझ पर जो हँसता है
मैं जहाँ जाऊँ, जहाँ भी रहूँ
एक भारत मुझमें बसता है।
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मिट्टी की खुशबू - डॉ अनीता शर्मा

कोई पूछता है, कौन सा इत्र है?
खुशबू गज़ब की आती है!
तब बीता कल मुस्काता है
इक याद जवां हो जाती है
...

प्रदूषण - बासुदेव अग्रवाल नमन

बढ़ा प्रदूषण जोर।
इसका कहीं न छोर।।
संकट ये अति घोर।
मचा चतुर्दिक शोर।।
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सिर्फ़ बातें नहीं अब वह बात चाहिए  - ममता मिश्रा, नीदरलैंड

करें कल्याण हिंदी का
ऐसे कुछ हाथ चाहिए।
नारों और सभाओं की
चौखट से उठाकर जो
धरें शीर्ष पर इसको
ऐसे कुछ नाथ चाहिएँ।
सिर्फ़ बातें नहीं ...
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जिनसे हम छूट गये - राही मासूम रजा

जिनसे हम छूट गये अब वो जहाँ कैसे हैं
शाखे गुल कैसे हैं खुश्‍बू के मकाँ कैसे हैं
...

ये दुनिया हमें रास आई नहीं | ग़ज़ल - सलिल सरोज

ये दुनिया हमें रास आई नहीं, चलो आसमाँ में चले
जहाँ झूठ, फरेब, मक्करी न हो, उसी जहाँ में चले
...

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