काव्य |
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जब ह्रदय अहं की भावना का परित्याग करके विशुद्ध अनुभूति मात्र रह जाता है, तब वह मुक्त हृदय हो जाता है। हृदय की इस मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द विधान करती आई है उसे काव्य कहते हैं। कविता मनुष्य को स्वार्थ सम्बन्धों के संकुचित घेरे से ऊपर उठाती है और शेष सृष्टि से रागात्मक संबंध जोड़ने में सहायक होती है। काव्य की अनेक परिभाषाएं दी गई हैं। ये परिभाषाएं आधुनिक हिंदी काव्य के लिए भी सही सिद्ध होती हैं। काव्य सिद्ध चित्त को अलौकिक आनंदानुभूति कराता है तो हृदय के तार झंकृत हो उठते हैं। काव्य में सत्यं शिवं सुंदरम् की भावना भी निहित होती है। जिस काव्य में यह सब कुछ पाया जाता है वह उत्तम काव्य माना जाता है।
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मोहन खेल रहे है होरी - शिवदीन राम |
मोहन खेल रहे हैं होरी । गुवाल बाल संग रंग अनेकों, धन्य धन्य यह होरी ।। वो गुलाल राधे ले आई, मन मोहन पर ही बरसाई । नन्दलाल भी लाल होगये, लाल लाल वृज गौरी ।। गुवाल सखा सब चंग बजावे, कृष्ण संग में नांचे गावें । ऐसी घूम मचाई कान्हा, मस्त मनोहर जोरी ।। नन्द महर घर रंग रंगीला, रंग रंग से होगया पीला । बहुत सजीली राधे रानी, वे अहिरों की छोरी ।। शोभा देख लुभाये शिवजी, सती सायानी के है पिवजी । शिवदीन लखी होरी ये रंग में, रंग दई चादर मोरी ।। ...
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इक अनजाने देश में - विजय कुमार सिंह | ऑस्ट्रेलिया |
इक अनजाने देश में जब भी, मैं चुप हो रह जाता हूँ, अपना मन उल्लास से भरने, देश तुझे ही गाता हूँ| शुभ्र हिमालय सर हो मेरा, सीना बन जाता विंध्याचल| नीलगिरी घुटने बन जाते, पैर तले तब नीला सागर| दाएँ में कच्छ को भर लेता, बाएँ मिजो भर जाता हूँ, अपना मन उल्लास से भरने,देश तुझे ही गाता हूँ| श्वासों में तब तेरा समीरण, धमनी में तेरा ही नद्जल| आँखों में आकाश हो तेरा, कानों में गाती फिर कोयल| रोम मेरे पादप जाते, वन बन कर सज जाता हूँ, अपना मन उल्लास से भरने, देश तुझे ही गाता हूँ| स्मृति में मैं सब भर लेता, तेरी थाती महिमा गौरव| संत तपस्वी त्यागी ज्ञानी, जिनसे जग में तेरा सौरभ| मैं अपने मन श्रद्धा भरकर, हरपल शीश नवाता हूँ, अपना मन उल्लास से भरने,देश तुझे ही गाता हूँ| ...
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शस्य श्यामलां - डॉ सुनीता शर्मा | न्यूज़ीलैंड |
एक पत्थर फेंका गया मेरे घर में फ़ेंकना चाहती थी मैं भी उसे किसी शीश महल में पर आ किसी ने हाथ रोक लिए मंदिर में सजा दिया उसे अब हो व्याकुल कहीं नमी देखते ही बो देना चाहती हूँ आस्था विश्वास के बीज लहलहा उठे फसलें हृदय हो उठे फिर शस्य श्यामलां ...
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फाग खेलन बरसाने आये हैं, नटवर नंद किशोर - घासीराम | Ghasiram |
घेर लई सब गली रंगीली, छाय रही छबि छटा छबीली, जिन ढोल मृदंग बजाये हैं बंसी की घनघोर। फाग खेलन...॥१॥ ...
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यूँ तो मिलना-जुलना - प्रगीत कुँअर | ऑस्ट्रेलिया |
यूँ तो मिलना-जुलना चलता रहता है मिलकर उनका जाना खलता रहता है ...
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टुकड़े-टुकड़े दिन बीता - मीनाकुमारी |
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श्यामा श्याम सलोनी सूरत को सिंगार बसंती है - घासीराम | Ghasiram |
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फागुन के दिन चार - मीराबाई | Meerabai |
फागुन के दिन चार होली खेल मना रे॥ ...
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मुझे देखा ही नहीं - प्रीता व्यास | न्यूज़ीलैंड |
देखतीं है आँखें बहुत कुछ ज़मीं, आसमान, सड़कें, पुल, मकान पेड़, पौधे, इंसान हाथ, पैर, मुहं, आँख, कान आँसू, मुस्कान मगर खुली आँखों भी अनदेखा रह जाता है बहुत कुछ पैरों तले की घंसती ज़मीन सर पर टूटता आसमान ढहता हुआ सेतु बढती दरम्यानी दूरियां घर का घर ही ना रहना ये कुछ भी नहीं देख पाती आँखें तुमने जो भर-भर नयन मुझे देखा है दरअसल मुझे देखा ही नहीं। ...
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सुजीवन - सियाराम शरण गुप्त | Siyaram Sharan Gupt |
हे जीवन स्वामी तुम हमको जल सा उज्ज्वल जीवन दो! हमें सदा जल के समान ही स्वच्छ और निर्मल मन दो! ...
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रे रंग डारि दियो राधा पर - शिवदीन राम |
रे रंग डारि दियो राधा पर, प्यारा प्रेमी कृष्ण गोपाल। तन मन भीगा अंग-अंग भीगा, राधा हुई निहाल।। रे... गोप्या रंग रंगीली रंग में, ग्वाल सखा कान्हा के संग में। चंग बजावे रसिया गावे, गांवें राग धमाल।। रे.... श्यामा श्याम यमुन तट साजे, मधुर अनुपम बाजा बाजे। रंग भरी पिचकारी मारे, हँसे सभी ब्रिजबाल।। रे... मोर मुकुट पीताम्बर वारा, निरखे गोप्यां रूप तिहारा। राधा कृष्ण मनोहर जोरी, काटत जग जंजाल।। रे... शिवदीन रंगमय बादल छाया, मनमोहन प्रभू रंग रचाया। गुण गावां, गावां गुण कृष्णा, मोहे बरषाने ले चाल।। रे... ...
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बीता मेरे साथ जो अब तक | ग़ज़ल - भावना कुँअर | ऑस्ट्रेलिया |
बीता मेरे साथ जो अब तक, वो बतलाने आई हूँ जीवन के इस उलझेपन को मैं सुलझाने आई हूँ ...
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आज ना जाने क्यों - डॉ पुष्पा भारद्वाज-वुड | न्यूज़ीलैंड |
आज ना जाने क्यों फिर से याद आ गया नानी का वह प्यार और दुलार। ...
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अरी भागो री भागो री गोरी भागो - भारत दर्शन संकलन |
अरी भागो री भागो री गोरी भागो, रंग लायो नन्द को लाल।
बाके कमर में बंसी लटक रही और मोर मुकुटिया चमक रही
संग लायो ढेर गुलाल, अरी भागो री भागो री गोरी भागो, रंग लायो नन्द को लाल।
इक हाथ पकड़ लई पिचकारी सूरत कर लै पियरी कारी इक हाथ में अबीर गुलाल
अरी भागो री भागो री गोरी भागो, रंग लायो नन्द को लाल। भर भर मारैगो रंग पिचकारी
चून कारैगो अगिया कारी गोरे गालन मलैगो गुलाल अरी भागो री भागो री गोरी भागो, रंग लायो नन्द को लाल।
यह पल आई मोहन टोरी और घेर लई राधा गोरी होरी खेलै करैं छेड़ छाड़ अरी भागो री भागो री गोरी भागो, रंग लायो नन्द को लाल। ...
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रंग की वो फुहार दे होली - गोविंद कुमार |
रंग की वो फुहार दे होली सबको खुशियाँ अपार दे होली द्वेष नफरत हो दिल से छूमन्तर ऐसा आपस में प्यार दे होली नफरत की दीवार गिरा दो होली में उल्फत की रसधार बहा दो होली में झंकृत कर दे जो सबके ही तन मन को सरगम की वो तार बजा दो होली में मन में जो भी मैल बसाये बैठे हैं उनको अबकी बार जला दो होली में रंगों की बौछार रंगे केवल तन को मन को भी इसबार भिगा दो होली में प्यालों से तो बहुत पिलायी है अब तक आँखों से इकबार पिला दो होली में भाईचारा शान्ति अमन हो हर दिल में ऐसा ये संसार बना दो होली में बटवारे की जो है खड़ी बुनियादों पर ऐसी हर दीवार गिरा दो होली में ...
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आज की होली - ललितकुमारसिंह 'नटवर' |
अजी! आज होली है आओ सभी। रंगो ख़ुद भी, सब को रंगाओ सभी॥ ...
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कल कहाँ थे कन्हाई - भारत दर्शन संकलन |
कल कहाँ थे कन्हाई हमें रात नींद न आई आओ -आओ कन्हाई न बातें बनाओ कल कहाँ थे कन्हाई हमें रात नींद न आई। ...
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होली व फाग के दोहे - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड |
भर दीजे गर हो सके, जीवन अंदर रंग। वरना तो बेकार है, होली का हुड़दंग॥ ...
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प्रगीत कुँअर के मुक्तक - प्रगीत कुँअर | ऑस्ट्रेलिया |
वो समय कैसा कि जिसमें आज हो पर कल ना हो वो ही रह सकता है स्थिर हो जो पत्थर जल ना हो हाथ में लेकर भरा बर्तन ख़ुशी औ ग़म का जब चल रही हो ज़िंदगी कैसे कोई हलचल ना हो ...
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होली - मैथिलीशरण गुप्त - मैथिलीशरण गुप्त | Mathilishran Gupt |
जो कुछ होनी थी, सब होली! धूल उड़ी या रंग उड़ा है, हाथ रही अब कोरी झोली। आँखों में सरसों फूली है, सजी टेसुओं की है टोली। पीली पड़ी अपत, भारत-भू, फिर भी नहीं तनिक तू डोली !
- मैथिलीशरण गुप्त ...
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यूँ जीना आसान नहीं है | ग़ज़ल - भावना कुँअर | ऑस्ट्रेलिया |
यूँ जीना आसान नहीं है,इस दुनिया के इस मेले में ईश के दर पे रख दे सर को, क्यूँ तू पड़े झमेले में ...
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राजनैतिक होली - डॉ एम.एल.गुप्ता आदित्य |
चुनावों के चटक रंगों सा, छाया हुआ खुमार । ...
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खेलो रंग अबीर उडावो - होली कविता - अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' | Ayodhya Singh Upadhyaya Hariaudh |
खेलो रंग अबीर उड़ावो लाल गुलाल लगावो । पर अति सुरंग लाल चादर को मत बदरंग बनाओ । न अपना रग गँवाओ । ...
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रंगो के त्यौहार में तुमने - राहुल देव |
रंगो के त्यौहार में तुमने क्यों पिचकारी उठाई है? लाल रंग ने कितने लालों को मौत की नींद सुलाई है। टूट गयी लाल चूड़ियाँ, लाली होंठो से छूट गयी। मंगलसूत्र के कितने धागों की ये माला टूट गयी। होली तो जल गयी अकेली, तुम क्यों संग संग जलते हो। होली के बलिदान को तुम, कीचड में क्यों मलते हो? मदिरा पीकर भांग घोटकर कैसा तांडव करते हो? होलिका के बलिदान को बेशर्मी से छलते हो। हर साल हुड़दंग हुआ करता है, नहीं त्यौहार रहा अब ये। कृष्ण राधा की लीला को भी, देश के वासी भूल गए। दिलों का नहीं मेल भी होता, ना बच्चों का खेल रहा। इस खून की होली को है, देखो मानव झेल रहा। माता बहने कन्या गोरी, नहीं रंग में होती है। अब होली के दिन को देखो, चुपके चुपके रोती हैं। गाँव गाँव और शहर शहर में, अजब ढोंग ये होता है, कहने को तो होली होती, पर रंग लहू का चढ़ता है। खेल सको तो ऐसे खेलो, अबके तुम ऐसी होली। हर दिल में हो प्यार का सागर, हर कोई हो हमजोली। रंग प्यार के खूब चढ़ाओ, खूब चलाओ पिचकारी, और भिगो दो बस प्यार में, तुम अब ये दुनिया सारी।
- राहुल देव ...
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अजब हवा है - कृष्णा कुमारी |
अब की बार अरे ओ फागुन मन का आँगन रन-रंग जाना।
युगों -युगों से भीगी नहीं बसंती चोली रही सदा -सदा ही सूनी -सूनी मेरी होली पुलकन -सिहरन अंग-अंग भर जाना।
अजब हवा है, मन मौसम बहक उठे हैं दावानल -सम अधर पलाशी दहक उठे हैं बरसा कर रति-रंग, दंग कर जाना।
बरसों बाद प्रवासी प्रियतम घर आएंगे मेरे विरही नयन लजाते शरमायेंगे तू पलकों में मिलन भंग भर जाना ।
अब की बार अरे ओ फागुन मन का आँगन रन-रंग जाना ।
- कृष्णा कुमारी
ई-मेल: krishna.kumari.kamsin9@gmail.com ...
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आज कैसी वीर, होली? - क्षेमचन्द्र 'सुमन' |
है उषा की पुणय-वेला वीर-जीवन एक मेला चल पड़ी है वीर युवकों, की नवल यह आज टोली? आज कैसी वीर, होली?
मातृ-बन्धन काटने को ध्येय पावन छाँटने को बाँटने को शत्रु-संगर में, अनोखी लाल रोली ! आज कैसी वीर होली?
जा रहे हैं क्यों सुभट ये और भोले निष्कपट से आज करने प्रियतमा से, जेल में निज प्रेम-होली! आज कैसी वीर होली?
- क्षेमचन्द्र 'सुमन', १६ मई' ४३
[ साभार: बन्दी के गान ] ...
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वो मेरे घर नहीं आता - वसीम बरेलवी | Waseem Barelvi |
वो मेरे घर नहीं आता मैं उस के घर नहीं जाता मगर इन एहतियातों से तअ'ल्लुक़ मर नहीं जाता ...
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हरि संग खेलति हैं सब फाग - सूरदास के पद - सूरदास | Surdas |
हरि संग खेलति हैं सब फाग। इहिं मिस करति प्रगट गोपी: उर अंतर को अनुराग।। सारी पहिरी सुरंग, कसि कंचुकी, काजर दे दे नैन। बनि बनि निकसी निकसी भई ठाढी, सुनि माधो के बैन।। डफ, बांसुरी, रुंज अरु महुआरि, बाजत ताल मृदंग। अति आनन्द मनोहर बानि गावत उठति तरंग।। एक कोध गोविन्द ग्वाल सब, एक कोध ब्रज नारि। छांडि सकुच सब देतिं परस्पर, अपनी भाई गारि।। मिली दस पांच अली चली कृष्नहिं, गहि लावतिं अचकाई। भरि अरगजा अबीर कनक घट, देतिं सीस तैं नाईं।। छिरकतिं सखि कुमकुम केसरि, भुरकतिं बंदन धूरि। सोभित हैं तनु सांझ समै घन, आये हैं मनु पूरि।। दसहूं दिसा भयो परिपूरन, सूर सुरंग प्रमोद। सुर बिमान कौतुहल भूले, निरखत स्याम बिनोद।। ...
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तुझसंग रंग लगाऊँ कैसे - प्रशांत कुमार पार्थ |
चढी है प्रीत की ऐसी लत छूटत नाहीं दूजा रंग लगाऊँ कैसे! गठरी भरी प्रेम की रंग है मन के कोने कोने बसा दिखत नही हो कान्हा मोहे तुझसंग रंग लगाऊँ कैसे! ...
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बरस-बरस पर आती होली - गोपाल सिंह नेपाली | Gopal Singh Nepali |
बरस-बरस पर आती होली, रंगों का त्यौहार अनूठा चुनरी इधर, उधर पिचकारी, गाल-भाल पर कुमकुम फूटा लाल-लाल बन जाते काले, गोरी सूरत पीली-नीली, मेरा देश बड़ा गर्वीला, रीति-रसम-ऋतु रंग-रगीली, नीले नभ पर बादल काले, हरियाली में सरसों पीली ! ...
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आओ होली खेलें संग - रोहित कुमार 'हैप्पी' |
कही गुब्बारे सिर पर फूटे पिचकारी से रंग है छूटे हवा में उड़ते रंग कहीं पर घोट रहे सब भंग! ...
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होली है आख़िर.. - राजेन्द्र प्रसाद |
होली है आख़िर मनाना पड़ेगा मजबूर है दिल मिलाना पड़ेगा ...
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होली पद - जुगलकिशोर मुख्तार |
ज्ञान-गुलाल पास नहिं, श्रद्धा-रंग न समता-रोली है । नहीं प्रेम-पिचकारी कर में, केशव शांति न घोली है ।। स्याद्वादी सुमृदंग बजे नहिं, नहीं मधुर रस बोली है । कैसे पागल बने हो चेतन ! कहते ‘होली होली है' ।। ...
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गले मुझको लगा लो | ग़ज़ल - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र | Bharatendu Harishchandra |
गले मुझको लगा लो ए दिलदार होली में बुझे दिल की लगी भी तो ए यार होली में। ...
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किस रंग खेलूँ अबके होली - विवेक जोशी |
लाल देश पे क़ुर्बान हुआ सूनी हुई एक माँ की झोली किस रंग खेलूँ अबके होली... ...
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मीरा के होली पद - मीराबाई | Meerabai |
फागुन के दिन चार होली खेल मना रे॥ ...
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रसखान के फाग सवैय्ये - रसखान | Raskhan |
मिली खेलत फाग बढयो अनुराग सुराग सनी सुख की रमकै। कर कुंकुम लै करि कंजमुखि प्रिय के दृग लावन को धमकैं।। रसखानि गुलाल की धुंधर में ब्रजबालन की दुति यौं दमकै। मनौ सावन सांझ ललाई के मांझ चहुं दिस तें चपला चमकै।। ...
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होली - अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' | Ayodhya Singh Upadhyaya Hariaudh |
मान अपना बचावो, सम्हलकर पाँव उठावो । गाबो भाव भरे गीतों को, बाजे उमग बजावो ॥ तानें ले ले रस बरसावो, पर ताने ना सहावो । भूल अपने को न जावो ।।१।। ...
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मुट्ठी भर रंग अम्बर में - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड |
मुट्ठी भर रंग अम्बर में किसने है दे मारा आज तिरंगा दीखता है अम्बर मोहे सारा ...
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मन में रहे उमंग तो समझो होली है | ग़ज़ल - गिरीश पंकज |
मन में रहे उमंग तो समझो होली है जीवन में हो रंग तो समझो होली है ...
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प्यार भरी बोली | होली हास्य कविता - जैमिनी हरियाणवी | Jaimini Hariyanavi |
होली पर हास्य-कवि जैमिनी हरियाणवी की कविता
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जाम होठों से फिसलते - शांती स्वरुप मिश्र |
जाम होठों से फिसलते, देर नहीं लगती किसी का वक़्त बिगड़ते, देर नहीं लगती ...
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तुम्हारे लिये | कुछ मुक्तक - अनूप भार्गव |
प्रणय की प्रेरणा तुम हो विरह की वेदना तुम हो निगाहों में तुम्ही तुम हो समय की चेतना तुम हो। ...
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मुस्कुराहट - डॉ दीपिका |
मुस्कुराहट सदैव बनाये रखना, जब कभी ज़िन्दगी भार लगे, जीवन में कष्ट अपार लगे, फिर भी याद रखना, मुस्कुराहट सदैव बनाये रखना। ...
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काव्य मंच पर होली - बृजेन्द्र उत्कर्ष |
काव्य मंच पर चढ़ी जो होली, कवि सारे हुरियाय गये, एक मात्र जो कवयित्री थी, उसे देख बौराय गये, ...
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होली आई - होली आई - हर्ष कुमार |
बहुत नाज़ था उसको खुद पर, नहीं आंच उसको आयेगी नहीं जोर कुछ चला था उसका, जली होलिका होली आई ...
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होली की रात | Jaishankar Prasad Holi Night Poetry - जयशंकर प्रसाद | Jaishankar Prasad |
बरसते हो तारों के फूल छिपे तुम नील पटी में कौन? उड़ रही है सौरभ की धूल कोकिला कैसे रहती मीन। ...
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