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बाल-साहित्य |
बाल साहित्य के अन्तर्गत वह शिक्षाप्रद साहित्य आता है जिसका लेखन बच्चों के मानसिक स्तर को ध्यान में रखकर किया गया हो। बाल साहित्य में रोचक शिक्षाप्रद बाल-कहानियाँ, बाल गीत व कविताएँ प्रमुख हैं। हिन्दी साहित्य में बाल साहित्य की परम्परा बहुत समृद्ध है। पंचतंत्र की कथाएँ बाल साहित्य का एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं। हिंदी बाल-साहित्य लेखन की परंपरा अत्यंत प्राचीन है। पंचतंत्र, हितोपदेश, अमर-कथाएँ व अकबर बीरबल के क़िस्से बच्चों के साहित्य में सम्मिलित हैं। पंचतंत्र की कहानियों में पशु-पक्षियों को माध्यम बनाकर बच्चों को बड़ी शिक्षाप्रद प्रेरणा दी गई है। बाल साहित्य के अंतर्गत बाल कथाएँ, बाल कहानियां व बाल कविता सम्मिलित की गई हैं। |
Articles Under this Category |
म्याऊँ-म्याऊँ - श्रीप्रसाद |
म्याऊँ म्याऊँ म्याऊँ |
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चूहे की दिल्ली-यात्रा - रामधारी सिंह दिनकर | Ramdhari Singh Dinkar |
चूहे ने यह कहा कि चुहिया! छाता और घड़ी दो, |
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वंदना | बाल कविता - डा. राणा प्रताप सिंह गन्नौरी 'राणा' |
मैं अबोध सा बालक तेरा, |
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किसे नहीं है बोलो ग़म - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड |
साँसों में है जब तक दम |
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बुढ़िया - पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी |
बुढ़िया चला रही थी चक्की |
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चिड़िया का घर | बाल-कविता - हरिवंश राय बच्चन | Harivansh Rai Bachchan |
चिड़िया, ओ चिड़िया, |
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सरकस | बाल-कविता - मैथिलीशरण गुप्त | Mathilishran Gupt |
होकर कौतूहल के बस में, |
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गिरगिट का सपना - मोहन राकेश | Mohan Rakesh |
एक गिरगिट था। अच्छा, मोटा-ताजा। काफी हरे जंगल में रहता था। रहने के लिए एक घने पेड़ के नीचे अच्छी-सी जगह बना रखी थी उसने। खाने-पीने की कोई तकलीफ नहीं थी। आसपास जीव-जन्तु बहुत मिल जाते थे। फिर भी वह उदास रहता था। उसका ख्याल था कि उसे कुछ और होना चाहिए था। और हर चीज, हर जीव का अपना एक रंग था। पर उसका अपना कोई एक रंग था ही नहीं। थोड़ी देर पहले नीले थे, अब हरे हो गए। हरे से बैंगनी। बैंगनी से कत्थई। कत्थई से स्याह। यह भी कोई जिन्दगी थी! यह ठीक था कि इससे बचाव बहुत होता था। हर देखनेवाले को धोखा दिया जा सकता था। खतरे के वक्त जान बचाई जा सकती थी। शिकार की सुविधा भी इसी से थी। पर यह भी क्या कि अपनी कोई एक पहचान ही नहीं! सुबह उठे, तो कच्चे भुट्टे की तरह पीले और रात को सोए तो भुने शकरकन्द की तरह काले! हर दो घण्टे में खुद अपने ही लिए अजनबी! |
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बया | बाल-कविता - महादेवी वर्मा | Mahadevi Verma |
बया हमारी चिड़िया रानी। |
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बतूता का जूता - सर्वेश्वरदयाल सक्सेना |
इब्न बतूता पहन के जूता |
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मैंने झूठ बोला था | बाल कथा - विष्णु प्रभाकर | Vishnu Prabhakar |
एक बालक था। नाम था उसका राम। उसके पिता बहुत बड़े पंडित थे। वह बहुत दिन जीवित नहीं रहे। उनके मरने के बाद राम की माँ अपने भाई के पास आकर रहने लगी। वह एकदम अनपढ़ थे। ऐसे ही पूजा-पाठ का ठोंग करके जीविका चलाते थे। वह झूठ बोलने से भी नहीं हिचकते थे। |
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लड्डू ले लो | बाल-कविता - माखनलाल चतुर्वेदी |
ले लो दो आने के चार |
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साखियाँ - कबीर |
जाति न पूछो साध की, पूछ लीजिए ज्ञान। |
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मामी निशा | बाल-कविता - रामनरेश त्रिपाठी |
चंदा मामा गए कचहरी, घर में रहा न कोई, |
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पद - सूरदास |
मैया, कबहि बढ़ैगी चोटी? |
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बाल-दिवस | कविता - भारत-दर्शन संकलन | Collections |
भोले भाले बालक सारे। हैं चाचा नेहरू के प्यारे ।। |
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चाचा नेहरू, तुम्हें प्रणाम | बाल-दिवस कविता - भारत-दर्शन संकलन | Collections |
तुमने किया स्वदेश स्वतंत्र, फूंका देश-प्रेम का मन्त्र, |
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ओला | बाल-कविता - मैथिलीशरण गुप्त | Mathilishran Gupt |
एक सफेद बड़ा-सा ओला, |
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पद - रैदास |
अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी। |
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नेहरू-स्मृति-गीत | बाल-दिवस कविता - भारत-दर्शन संकलन | Collections |
जन्म-दिवस पर नेहरू चाचा, याद तुम्हारी आई। |
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चाचा नेहरू | बाल कविता - डा. राणा प्रताप सिंह गन्नौरी 'राणा' |
वह मोती का लाल जवाहर, |
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दोहे - रहीम |
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय। |
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नेहरू चाचा | बाल-दिवस कविता - भारत-दर्शन संकलन | Collections |
सब नेताओ से न्यारे तुम, बच्चो को सबसे प्यारे तुम, |
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बाल-दिवस है आज साथियो | बाल-दिवस कविता - भारत-दर्शन संकलन | Collections |
बाल-दिवस है आज साथियो, आओ खेलें खेल । |
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आ गया बच्चों का त्योहार | Bal Diwas Hindi poem - भारत-दर्शन संकलन | Collections |
आ गया बच्चों का त्योहार ! |
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उसे कुछ मिला, नहीं | बाल कविता - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड |
कूड़े के ढेर से |
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फ़क़ीर का उपदेश - भारत-दर्शन संकलन |
एक बार गाँव में एक बूढ़ा फ़क़ीर आया । उसने गाँव के बाहर अपना आसन जमाया। वह बड़ा होशियार फ़क़ीर था। वह लोगों को बहुत सी अच्छी-अच्छी बातें बतलाता था। थोड़े ही दिनों में वह मशहूर हो गया । सभी लोग उसके पास कुछ न कुछ पूछने को पहुँचते थे। वह सबको अच्छी सीख देता था। |
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सुखी आदमी की कमीज़ - जॉन हे |
एक बार एक राजा था। उसके पास सब कुछ था लेकिन वह सुखी नहीं था। वह समझ नहीं पाता था कि कैसे ख़ुश रहा जाए? उसे यह लगने लगा कि वह बीमार है जबकि वह बिलकुल स्वस्थ दिखता था। |
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गधा और मेढक - सूर्यकांत त्रिपाठी निराला |
एक गधा लकड़ी का भारी बोझ लिए जा रहा था। वह एक दलदल में गिर गया। वहाँ मेढकों के बीच जा लगा। रेंकता और चिल्लाता हुआ वह उस तरह साँसें भरने लगा, जैसे दूसरे ही क्षण मर जाएगा। |
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बारह महीने - प्रशान्त अग्रवाल |
पहला माह जनवरी |
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मैं भी पढ़ने जाऊँगा - बेबी मिश्रा |
माँ मुझको स्लेट दिला दो, मैं भी पढ़ने जाऊँगा। |
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हरी सब्जियॉं - डॉ सुनील बहल |
हरी सब्जियों के बड़े गुण, |
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गर मैं रहता सागर नीचे - संगीता बैनीवाल |
बहुत मज़े मैं करता |
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दूध का दाँत - संगीता बैनीवाल |
कुछ यादें बचपन की कभी नही भूलती हैं । जब कभी उसी प्रकार की परिस्थितियाँ देखने को मिलती हैं तो हमारी यादें बिन बुलाए मेहमान की तरह अा टपकती हैं। |
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ताजपुर जंगल में आतंकी - राजेश मेहरा |
ताजपुर जंगल में शाम का समय था। हल्की हल्की सर्द हवा बह रही थी।आसमान में बादल थे ऐसा लग रहा था जैसे बरसात होगी। सब जानवर अपना खाना खा कर तेजी से अपने अपने घरों की तरफ जा रहे थे। बीनू बाज भी आसमान के रास्ते अपने घोसले की तरफ जा रहा था। आज वह अपने घोसले से बहुत दूर आ गया था इसलिए वह जल्दी से उड़ कर अपने घर पहुंचना चाहता था। अचानक उसकी निगाह नीचे एक पहाड़ी की ओट में पड़ी, उसने देखा की चार भेड़िये अपने मुहँ पर कपडा बांधे और अपने आप को दुसरे जानवरों से बचाते व् छुपाते हुए ताजपुर जंगल की तरफ बढ़ रहे थे।बीनू बाज को उनकी इस हरकत पर कुछ शक हुआ। उसने एक बार तो सोचा मरने दो मुझे क्या लेकिन उसने सुन रखा था की उसके जंगल पर आने वाले नए साल के मोके पर कुछ आतंकी हमला कर सकते है, तो उसने उन चारो भेड़ियों की हरकत के बारे में पता लगाने का निश्चय किया। वह धीरे से नीचे आया और एक पेड़ पर छुप कर बैठ गया। अब बीनू बाज तो उन चारो भेडियों को देख सकता था लेकिन वो चारो उसको नही देख सकते थे। |
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परीक्षा - मुंशी प्रेमचंद | Munshi Premchand |
जब रियासत देवगढ़ के दीवान सरदार सुजानसिंह बूढ़े हुए तो परमात्मा की याद आई। जा कर महाराज से विनय की कि दीनबंधु! दास ने श्रीमान् की सेवा चालीस साल तक की, अब मेरी अवस्था भी ढल गई, राज-काज संभालने की शक्ति नहीं रही। कहीं भूल-चूक हो जाए तो बुढ़ापे में दाग लगे। सारी ज़िंदगी की नेकनामी मिट्टी में मिल जाए। |
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बुद्धिमान हंस - पंचतंत्र |
एक विशाल वृक्ष था। उसपर बहुत से हंस रहते थे। उनमें एक वृद्ध बुद्धिमान और दूरदर्शी हंस था। उसका सभी हंस आदर करते थे। एक दिन उस वृद्ध हंस ने वृक्ष की जड के निकट एक बेल देखी। बेल उस वृक्ष के तने से लिपटना शुरू कर चुकी थी। इस बेल को देखकर वृद्ध हंस ने कहा, देखो, बेल को नष्ट कर दो। एक दिन यह बेल हम सभी के लिए संकट बन सकती है। |
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नकल | पंचतंत्र - विष्णु शर्मा |
एक पहाड़ की ऊंची चोटी पर एक बाज रहता था। पहाड़ की तराई में बरगद के पेड़ पर एक कौआ अपना घोंसला बनाकर रहता था। वह बड़ा चालाक और धूर्त था। उसका प्रयासरहता कि बिना परिश्रम किए खाने को मिल जाए। पेड़ के आसपास खोह में खरगोश रहते थे। जब भी खरगोश बाहर आते तो बाज ऊंची उड़ान भरते और एकाध खरगोश को उठाकर ले जाते। |
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मंकी और डंकी - आनन्द विश्वास (Anand Vishvas) |
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पंडित जवाहरलाल नेहरू का जन्म-दिवस | बाल-दिवस - भारत-दर्शन संकलन | Collections |
14 नवंबर को भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू का जन्म-दिवस होता है। इसे भारत में 'बाल-दिवस' (Bal Diwas) के रूप में बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है। नेहरूजी को 'चाचा नेहरू' के रूप में जाने जाते हैं क्योंकि उन्हें बच्चों से बहुत प्यार था। |
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