अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।
बाल-साहित्य
बाल साहित्य के अन्तर्गत वह शिक्षाप्रद साहित्य आता है जिसका लेखन बच्चों के मानसिक स्तर को ध्यान में रखकर किया गया हो। बाल साहित्य में रोचक शिक्षाप्रद बाल-कहानियाँ, बाल गीत व कविताएँ प्रमुख हैं। हिन्दी साहित्य में बाल साहित्य की परम्परा बहुत समृद्ध है। पंचतंत्र की कथाएँ बाल साहित्य का एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं। हिंदी बाल-साहित्य लेखन की परंपरा अत्यंत प्राचीन है। पंचतंत्र, हितोपदेश, अमर-कथाएँ व अकबर बीरबल के क़िस्से बच्चों के साहित्य में सम्मिलित हैं। पंचतंत्र की कहानियों में पशु-पक्षियों को माध्यम बनाकर बच्चों को बड़ी शिक्षाप्रद प्रेरणा दी गई है। बाल साहित्य के अंतर्गत बाल कथाएँ, बाल कहानियां व बाल कविता सम्मिलित की गई हैं।

Articles Under this Category

म्याऊँ-म्याऊँ  - श्रीप्रसाद

म्याऊँ म्याऊँ म्याऊँ
क्या खाऊँ, क्या खाऊँ
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चूहे की दिल्ली-यात्रा - रामधारी सिंह दिनकर | Ramdhari Singh Dinkar

चूहे ने यह कहा कि चुहिया! छाता और घड़ी दो,
लाया था जो बड़े सेठ के घर से, वह पगड़ी दो।
मटर-मूँग जो कुछ घर में है, वही सभी मिल खाना,
खबरदार, तुम लोग कभी बिल से बाहर मत आना!
बिल्ली एक बड़ी पाजी है रहती घात लगाए,
जाने वह कब किसे दबोचे, किसको चट कर जाए।
सो जाना सब लोग लगाकर दरवाजे में किल्ली,
आज़ादी का जश्न देखने मैं जाता हूँ दिल्ली।
चूँ-चूँ-चूँ, चूँ-चूँ-चूँ, चूँ-चूँ-चूँ,
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वंदना | बाल कविता - डा. राणा प्रताप सिंह गन्नौरी 'राणा'

मैं अबोध सा बालक तेरा,
ईश्वर! तू है पालक मेरा ।

         हाथ जोड़ मैं करूँ वंदना,
         मुझको तेरी कृपा कामना ।

मैं हितचिंतन करूँ सभी का,
बुरा न चाहूँ कभी किसी का ।

         कभी न संकट से भय मानूँ,
         सरल कठिनताओं को जानूँ ।

प्रतिपल अच्छे काम करूँ मैं,
देश का ऊँचा नाम करूँ मैं ।

         दुखी जनों के दुःख हरूँ मैं,
         यथा शक्ति सब को सुख दूँ मैं ।

गुरु जन का सम्मान करूँ मैं,
नम्र, विनीत, सुशील बनूँ मैं ।
 
        मंगलमय हर कर्म हो मेरा,
        मानवता ही धर्म हो मेरा ।

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किसे नहीं है बोलो ग़म - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

साँसों में है जब तक दम
किसे नहीं है बोलो ग़म!
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बुढ़िया - पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी

बुढ़िया चला रही थी चक्की
पूरे साठ वर्ष की पक्की।
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चिड़िया का घर | बाल-कविता - हरिवंश राय बच्चन | Harivansh Rai Bachchan

चिड़िया, ओ चिड़िया,
कहाँ है तेरा घर?
उड़-उड़ आती है
जहाँ से फर-फर!
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सरकस | बाल-कविता  - मैथिलीशरण गुप्त | Mathilishran Gupt

होकर कौतूहल के बस में,
गया एक दिन मैं सरकस में।
भय-विस्मय के खेल अनोखे,
देखे बहु व्यायाम अनोखे।
एक बड़ा-सा बंदर आया,
उसने झटपट लैम्प जलाया।
डट कुर्सी पर पुस्तक खोली,
आ तब तक मैना यौं बोली।
"हाजिर है हजूर का घोड़ा,"
चौंक उठाया उसने कोड़ा।
आया तब तक एक बछेरा,
चढ़ बंदर ने उसको फेरा।
टट्टू ने भी किया सपाटा,
टट्टी फाँदी, चक्कर काटा।
फिर बंदर कुर्सी पर बैठा,
मुँह में चुरट दबाकर ऐंठा।
माचिस लेकर उसे जलाया,
और धुआँ भी खूब उड़ाया।
ले उसकी अधजली सलाई,
तोते ने आ तोप चलाई।
एक मनुष्य अंत में आया,
पकड़े हुए सिंह को लाया।
मनुज-सिंह की देख लड़ाई,
की मैंने इस भाँति बड़ाई-
किसे साहसी जन डरता है,
नर नाहर को वश करता है।
मेरा एक मित्र तब बोला,
भाई तू भी है बम भोला।
यह सिंही का जना हुआ है,
किंतु स्यार यह बना हुआ है।
यह पिंजड़े में बंद रहा है,
नहीं कभी स्वच्छंद रहा है।
छोटे से यह पकड़ा आया,
मार-मार कर गया सिखाया।
अपनेको भी भूल गया है,
आती इस पर मुझे दया है।

- मैथिलीशरण गुप्त
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गिरगिट का सपना - मोहन राकेश | Mohan Rakesh

एक गिरगिट था। अच्‍छा, मोटा-ताजा। काफी हरे जंगल में रहता था। रहने के लिए एक घने पेड़ के नीचे अच्‍छी-सी जगह बना रखी थी उसने। खाने-पीने की कोई तकलीफ नहीं थी। आसपास जीव-जन्‍तु बहुत मिल जाते थे। फिर भी वह उदास रहता था। उसका ख्‍याल था कि उसे कुछ और होना चाहिए था। और हर चीज, हर जीव का अपना एक रंग था। पर उसका अपना कोई एक रंग था ही नहीं। थोड़ी देर पहले नीले थे, अब हरे हो गए। हरे से बैंगनी। बैंगनी से कत्‍थई। कत्‍थई से स्‍याह। यह भी कोई जिन्‍दगी थी! यह ठीक था कि इससे बचाव बहुत होता था। हर देखनेवाले को धोखा दिया जा सकता था। खतरे के वक्‍त जान बचाई जा सकती थी। शिकार की सुविधा भी इसी से थी। पर यह भी क्‍या कि अपनी कोई एक पहचान ही नहीं! सुबह उठे, तो कच्‍चे भुट्टे की तरह पीले और रात को सोए तो भुने शकरकन्‍द की तरह काले! हर दो घण्‍टे में खुद अपने ही लिए अजनबी!
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बया | बाल-कविता  - महादेवी वर्मा | Mahadevi Verma

बया हमारी चिड़िया रानी।
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बतूता का जूता  - सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

इब्न बतूता पहन के जूता
निकल पड़े तूफान में
थोड़ी हवा नाक में घुस गई
घुस गई थोड़ी कान में।
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मैंने झूठ बोला था | बाल कथा - विष्णु प्रभाकर | Vishnu Prabhakar

एक बालक था। नाम था उसका राम। उसके पिता बहुत बड़े पंडित थे। वह बहुत दिन जीवित नहीं रहे। उनके मरने के बाद राम की माँ अपने भाई के पास आकर रहने लगी। वह एकदम अनपढ़ थे। ऐसे ही पूजा-पाठ का ठोंग करके जीविका चलाते थे। वह झूठ बोलने से भी नहीं हिचकते थे।
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लड्डू ले लो | बाल-कविता - माखनलाल चतुर्वेदी

ले लो दो आने के चार
लड्डू राज गिरे के यार
यह हैं धरती जैसे गोल
ढुलक पड़ेंगे गोल मटोल
इनके मीठे स्वादों में ही
बन आता है इनका मोल
दामों का मत करो विचार
ले लो दो आने के चार।
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साखियाँ - कबीर

जाति न पूछो साध की, पूछ लीजिए ज्ञान।
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान ।।1।।

आवत गारी एक है, उलटत होइ अनेक।
कह कबीर नहिं उलटिए, वही एक की एक ।।2।।

माला तो कर में फिरै, जीभि फिरै मुख माँहि।
मनुवाँ तो दहुँ दिसि फिरै, यह तौ सुमिरन नाहिं ।।3।।

कबीर घास न नींदिए, जो पाऊँ तलि होइ।
उड़ि पड़ै जब आँखि मैं, खरी दुहेली होइ ।।4।।

जग में बैरी कोइ नहीं, जो मन सीतल होय।
या आपा को डारि दे, दया करै सब कोय ।।5।।

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मामी निशा | बाल-कविता  -  रामनरेश त्रिपाठी

चंदा मामा गए कचहरी, घर में रहा न कोई,
मामी निशा अकेली घर में कब तक रहती सोई!
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पद - सूरदास

मैया, कबहि बढ़ैगी चोटी?
किती बार मोहि दूध पियत भई, यह अजहूँ है छोटी।
तू जो कहति बल की बेनी ज्यौं, ह्नै है लाँबी-मोटी।
काढ़त-गुहत न्हवावत जैहै, नागिनी सी भुइँ लोटी।
काँचौ दूध पियावत पचि-पचि, देति न माखन-रोटी।
सूरज चिरजीवौ दोउ भैया, हरि-हलधर की जोटी।
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बाल-दिवस | कविता - भारत-दर्शन संकलन | Collections

भोले भाले बालक सारे। हैं चाचा नेहरू के प्यारे ।।
सूरज चन्दा बन कर चमकें-
दूर करें हम अंधियारो को।
नील गगन के आँचल से हम-
लाएँ चाँद सितारों को ।।
देश की नैया के बनें खिवैया-
हम भारत के कृष्ण कन्हैया ।।
अमन-चैन की सरिता बहाएँ-
भारत के हर घर हर द्वारे ।
भोले भाले बालक सारे। हैं चाचा नेहरूके प्यारे ।।

देशद्रोह गद्दारों को हम
-
वसुन्धरा से मिटाएँगे ।
राष्ट्र-प्रेम के मधुर गीत हम-
मिल जुल कर सब गाएँगे ।
वीर भरत बन जाएँगे हम-
शेरों को गोद खिलाएँगे ।
मातृ-भूमि पर नित बलि जाएँ-
शुभ पावन हों कर्म हमारे ।

भोले भाले बालक सारे। हैं चाचा नेहरू के प्यारे ।।

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चाचा नेहरू, तुम्हें प्रणाम | बाल-दिवस कविता - भारत-दर्शन संकलन | Collections

तुमने किया स्वदेश स्वतंत्र, फूंका देश-प्रेम का मन्त्र,
आजादी के दीवानों में पाया पावन यश अभिराम !
चाचा नेहरू, तुम्हें प्रणाम !
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ओला | बाल-कविता  - मैथिलीशरण गुप्त | Mathilishran Gupt

एक सफेद बड़ा-सा ओला,
था मानो हीरे का गोला!
हरी घास पर पड़ा हुआ था,
वहीं पास मैं खड़ा हुआ था!
मैंने पूछा क्या है भाई,
तब उसने यों कथा सुनाई!
जो मैं अपना हाल बताऊँ,
कहने में भी लज्जा पाऊँ!
पर मैं तुझै सुनाऊँगा सब,
कुछ भी नहीं छिपाऊँगा अब!
जो मेरा इतिहास सुनेंगे,
वे उससे कुछ सार चुनेंगे!
यद्यपि मैं न अब रहा कहीं का,
वासी हूँ मैं किंतु यहीं का!
सूरत मेरी बदल गई है,
दीख रही वह तुम्हें नई है!
मुझमें आर्द्रभाव था इतना,
जल में हो सकता है जितना।
मैं मोती-जैसा निर्मल था,
तरल किंतु अत्यंत सरल था!
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पद - रैदास

अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी।
प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी, जाकी अँग-अँग बास समानी।
प्रभु जी, तुम घन बन हम मोरा, जैसे चितवत चंद चकोरा।
प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती, जाकी जोति बरै दिन राती।
प्रभु जी, तुम मोती हम धागा, जैसे सोनहिं मिलत सुहागा।
प्रभु जी, तुम स्वामी हम दासा, ऐसी भक्ति करै रैदासा।।

( 2 )

ऐसी लाल तुझ बिनु कउनु करै।
गरीब निवाजु गुसईआ मेरा माथै छत्रु धरै ।।
जाकी छोति जगत कउ लागै ता पर तुहीं ढरै।
नीचहु ऊच करै मेरा गोबिंदु काहू ते न डरै।।
नामदेव कबीरफ़ तिलोचनु सधना सैनु तरै।
कहि रविदासु सुनहु रे संतहु हरिजीउ ते सभै सरै।।

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नेहरू-स्मृति-गीत | बाल-दिवस कविता - भारत-दर्शन संकलन | Collections

जन्म-दिवस पर नेहरू चाचा, याद तुम्हारी आई।
भारत माँ के रखवारे थे, हम सब बच्चों के प्यारे थे,
दया-प्रेम मन मे धारे थे।
बचपन प्रमुदित हुआ नेह से, जाग उठी तरुणाई।
जन्म दिवस पर नेहरू चाचा याद तुम्हारी आई।
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चाचा नेहरू | बाल कविता - डा. राणा प्रताप सिंह गन्नौरी 'राणा'

वह मोती का लाल जवाहर,
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दोहे - रहीम

रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना मिले, मिले गाँठ परि जाय।।

रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय।
सुनि अठिलैहैं लोग सब, बाँटि न लैहैं कोय।।

एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय।
रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अघाय।।

चित्रकूट में रमि रहे, रहिमन अवध-नरेस।
जा पर बिपदा पड़त है, सो आवत यह देस।।

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नेहरू चाचा | बाल-दिवस कविता - भारत-दर्शन संकलन | Collections

सब नेताओ से न्यारे तुम, बच्चो को सबसे प्यारे तुम,
कितने ही तूफान आ गए, लेकिन कभी नहीं हारे तुम ।
आजादी की लड़ी लड़ाई, बिना तमक, बिना तमाचा,
                                           नेहरू चाचा ।
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बाल-दिवस है आज साथियो | बाल-दिवस कविता - भारत-दर्शन संकलन | Collections

बाल-दिवस है आज साथियो, आओ खेलें खेल ।
जगह-जगह पर मची हुई खुशियों की रेलमपेल ।
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आ गया बच्चों का त्योहार | Bal Diwas Hindi poem - भारत-दर्शन संकलन | Collections

आ गया बच्चों का त्योहार !
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उसे कुछ मिला, नहीं | बाल कविता - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

कूड़े के ढेर से
कुछ चुनते हुए बच्चे को देख
एक चित्रकार ने
करूणामय चित्र बना डाला।
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फ़क़ीर का उपदेश - भारत-दर्शन संकलन

एक बार गाँव में एक बूढ़ा फ़क़ीर आया । उसने गाँव के बाहर अपना आसन जमाया। वह बड़ा होशियार फ़क़ीर था। वह लोगों को बहुत सी अच्छी-अच्छी बातें बतलाता था। थोड़े ही दिनों में वह मशहूर हो गया । सभी लोग उसके पास कुछ न कुछ पूछने को पहुँचते थे। वह सबको अच्छी सीख देता था।
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सुखी आदमी की कमीज़  - जॉन हे

एक बार एक राजा था। उसके पास सब कुछ था लेकिन वह सुखी नहीं था। वह समझ नहीं पाता था कि कैसे ख़ुश रहा जाए? उसे यह लगने लगा कि वह बीमार है जबकि वह बिलकुल स्वस्थ दिखता था।
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गधा और मेढक  - सूर्यकांत त्रिपाठी निराला

एक गधा लकड़ी का भारी बोझ लिए जा रहा था। वह एक दलदल में गिर गया। वहाँ मेढकों के बीच जा लगा। रेंकता और चिल्‍लाता हुआ वह उस तरह साँसें भरने लगा, जैसे दूसरे ही क्षण मर जाएगा।
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बारह महीने - प्रशान्त अग्रवाल

पहला माह जनवरी
जाड़ा लाये झुरझुरी
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मैं भी पढ़ने जाऊँगा - बेबी मिश्रा

माँ मुझको स्लेट दिला दो, मैं भी पढ़ने जाऊँगा।
पढ़ लिखकर आगे बढ़कर, सबको शिक्षित करवाऊँगा।।
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हरी सब्जियॉं  - डॉ सुनील बहल

हरी सब्जियों के बड़े गुण,
दादा सदा रटते ये धुन।
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गर मैं रहता सागर नीचे - संगीता बैनीवाल

बहुत मज़े मैं करता
डॉल्फ़िन बने घोड़ागाडी
बैठ सवारी करता
ओक्टोपस की गोद में सोता
लम्बी बाँहों में वह भर लेता
रंग-बिरंगी छोटी मछलियाँ
बने सागर की तितलियाँ
सीप के मोती चमकें सारे
ज्यों चंदा संग चमकें तारे
व्हेल बनी सागर की रानी
रोब जमाए पीये पानी
सप्तरंगी किरणें सूरज देता
होली जैसा पानी होता
पीठ कछुए की पर्वत बनता
जिस पे बैठ निहारी मैं करता
गर मैं रहता सागर नीचे
बहुत मज़े मैं करता
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दूध का दाँत - संगीता बैनीवाल

कुछ यादें बचपन की कभी नही भूलती हैं । जब कभी उसी प्रकार की परिस्थितियाँ देखने को मिलती हैं तो हमारी यादें बिन बुलाए मेहमान की तरह अा टपकती हैं।
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ताजपुर जंगल में आतंकी - राजेश मेहरा

ताजपुर जंगल में शाम का समय था। हल्की हल्की सर्द हवा बह रही थी।आसमान में बादल थे ऐसा लग रहा था जैसे बरसात होगी। सब जानवर अपना खाना खा कर तेजी से अपने अपने घरों की तरफ जा रहे थे। बीनू बाज भी आसमान के रास्ते अपने घोसले की तरफ जा रहा था। आज वह अपने घोसले से बहुत दूर आ गया था इसलिए वह जल्दी से उड़ कर अपने घर पहुंचना चाहता था। अचानक उसकी निगाह नीचे एक पहाड़ी की ओट में पड़ी, उसने देखा की चार भेड़िये अपने मुहँ पर कपडा बांधे और अपने आप को दुसरे जानवरों से बचाते व् छुपाते हुए ताजपुर जंगल की तरफ बढ़ रहे थे।बीनू बाज को उनकी इस हरकत पर कुछ शक हुआ। उसने एक बार तो सोचा मरने दो मुझे क्या लेकिन उसने सुन रखा था की उसके जंगल पर आने वाले नए साल के मोके पर कुछ आतंकी हमला कर सकते है, तो उसने उन चारो भेड़ियों की हरकत के बारे में पता लगाने का निश्चय किया। वह धीरे से नीचे आया और एक पेड़ पर छुप कर बैठ गया। अब बीनू बाज तो उन चारो भेडियों को देख सकता था लेकिन वो चारो उसको नही देख सकते थे।
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परीक्षा - मुंशी प्रेमचंद | Munshi Premchand

जब रियासत देवगढ़ के दीवान सरदार सुजानसिंह बूढ़े हुए तो परमात्मा की याद आई। जा कर महाराज से विनय की कि दीनबंधु! दास ने श्रीमान् की सेवा चालीस साल तक की, अब मेरी अवस्था भी ढल गई, राज-काज संभालने की शक्ति नहीं रही। कहीं भूल-चूक हो जाए तो बुढ़ापे में दाग लगे। सारी ज़िंदगी की नेकनामी मिट्टी में मिल जाए।
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बुद्धिमान हंस - पंचतंत्र

एक विशाल वृक्ष था। उसपर बहुत से हंस रहते थे। उनमें एक वृद्ध बुद्धिमान और दूरदर्शी हंस था। उसका सभी हंस आदर करते थे। एक दिन उस वृद्ध हंस ने वृक्ष की जड के निकट एक बेल देखी। बेल उस वृक्ष के तने से लिपटना शुरू कर चुकी थी। इस बेल को देखकर वृद्ध हंस ने कहा, देखो, बेल को नष्ट कर दो। एक दिन यह बेल हम सभी के लिए संकट बन सकती है।
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नकल | पंचतंत्र - विष्णु शर्मा

एक पहाड़ की ऊंची चोटी पर एक बाज रहता था। पहाड़ की तराई में बरगद के पेड़ पर एक कौआ अपना घोंसला बनाकर रहता था। वह बड़ा चालाक और धूर्त था। उसका प्रयासरहता कि बिना परिश्रम किए खाने को मिल जाए। पेड़ के आसपास खोह में खरगोश रहते थे। जब भी खरगोश बाहर आते तो बाज ऊंची उड़ान भरते और एकाध खरगोश को उठाकर ले जाते।
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मंकी और डंकी  - आनन्द विश्वास (Anand Vishvas)


डंकी के ऊपर चढ़ बैठा,
जम्प लगाकर मंकी, लाल।
ढेंचूँ - ढेंचूँ करता डंकी,
उसका हाल हुआ बेहाल।
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पंडित जवाहरलाल नेहरू का जन्म-दिवस | बाल-दिवस - भारत-दर्शन संकलन | Collections

14 नवंबर को भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू का जन्म-दिवस होता है। इसे भारत में 'बाल-दिवस' (Bal Diwas) के रूप में बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है। नेहरूजी को 'चाचा नेहरू' के रूप में जाने जाते हैं क्योंकि उन्हें बच्चों से बहुत प्यार था।
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