भारत की परंपरागत राष्ट्रभाषा हिंदी है। - नलिनविलोचन शर्मा।
भारतीय व्रत, त्योहार व मेले
उत्सव या त्योहार को मनाने के नियम है। उत्सवों में पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है। उत्सव के आयोजन या इन्हें मनाने का अभिप्राय जीवन से दुःख मिटाना व सुख प्राप्ति है। उत्सव मनाने का अन्य उद्देश्य प्रकृति व ईश्वर के प्रति आभार प्रकट करना भी है। सागर पार बसे इस छोटे से देश न्यूज़ीलैंड में भी अपने तीज-त्योहार यथावत् रहें ऐसी हमारी भावना है। हमारे इस प्रयास में आप अपनी सामग्री का सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है।

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दीवाली - रामचंद्र का बनवास काटकर अयोध्या लौटना  - भारत-दर्शन संकलन

रामायण के अनुसार दीवाली वाले दिन अयोध्या के राजकुमार राम अपने पिता दशरथ की आज्ञा से 14 वर्ष का वनवास काटकर तथा लंकानरेश रावण का वध कर पत्नी सीता, अनुज लक्ष्मण तथा भक्त हनुमान के साथ अयोध्या लौटे थे। उनके स्वागत में पूरी अयोध्या नगरी दीपों से जगमगा उठी। उसी समय से दीवाली पर दीये जलाकर, पटाखे बजाकर तथा मिठाई बांटकर दीवाली का पर्व मनाने की परम्परा आरंभ हुई।
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दीवाली - राजा बलि की कथा - भारत-दर्शन संकलन

पुरातन युग में दैत्यों के राजा बलि ने अपने जीवन में दान देने का वचन लिया था। कोई याचक उससे जो वस्तु माँगता राजा उसे वह वस्तु देता था। उसके राज्य में जीव-हिंसा, मद्यपान, वेश्यागमन, चोरी और विश्वासघात उन पाँच महापातकों का अभाव था।
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दीवाली - लक्ष्मी गणेश पूजन - भारत-दर्शन संकलन

वैसे तो प्राय: लक्ष्मी पूजन के साथ विष्णु की पूजा होती है लेकिन दीवाली को लक्ष्मी और गणेश की पूजा का विधान है। इस विशेष पूजन का क्या कारण है? इस बारे में एक कथा प्रचलित है।
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दीवाली - देवी लक्ष्मी कथा  - भारत-दर्शन संकलन

एक अन्य लोक कथा के अनुसार देवी लक्ष्मी इस रात अपनी बहन दरिद्रा के साथ भू-लोक की सैर पर आती हैं। मान्यता है कि जिस घर में साफ-सफाई और स्वच्छता हो, वहां मां लक्ष्मी अपने कदम रखती हैं और जिस घर में ऐसा नहीं होता वहां दरिद्रा अपना डेरा जमा लेती है।
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दीवाली - साधु की कथा - भारत-दर्शन संकलन

एक बार एक साधु को राजसी सुख भोगने की इच्छा हुई। अपनी इच्छा की पूर्ति हेतु उसने लक्ष्मी की कठोर तपस्या की। कठोर तपस्या के फलस्वरूप लक्ष्मी ने उस साधु को राज सुख भोगने का वरदान दे दिया। वरदान प्राप्त कर साधु राजा के दरबार में पहुंचा और राजा के पास जाकर राजा का राज मुकुट नीचे गिरा दिया। यह देख राजा क्रोध से कांपने लगा। किन्तु उसी क्षण उस राजमुकुट से एक सर्प निकल कर बाहर चला गया। यह देखकर राजा का क्रोध समाप्त हो गया और प्रसन्नता से उसने साधु को अपना मंत्री बनाने का प्रस्ताव रखा।
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दीवाली की महत्ता  - भारत-दर्शन संकलन

श्री रामचन्द्र के चौदह वर्ष का बनवास काटकर इसी दिन अयोध्या लौटने के अतिरिक्त भी कई अन्य दंतकथाएं इस त्योहार के साथ जुड़ी हुई हैं।
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दीवाली पौराणिक कथाएं - भारत-दर्शन संकलन

नि:संदेह भारतीय व्रत एवं त्योहार हमारी सांस्कृतिक धरोहर है। हमारे सभी व्रत-त्योहार चाहे वह होली हो, रक्षा-बंधन हो, करवाचौथ का व्रत हो या दीवाली पर्व, कहीं न कहीं वे पौराणिक पृष्ठभूमि से जुड़े हुए हैं और उनका वैज्ञानिक पक्ष भी नकारा नहीं जा सकता।
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गोवर्धन पूजन | अन्नकूट महोत्सव | Gowardhan Poojan Puranik Katha - भारत-दर्शन संकलन

प्राचीन काल से ही ब्रज क्षेत्र में देवाधिदेव इन्द्र की पूजा की जाती थी। लोगों की मान्यता थी कि देवराज इन्द्र समस्त मानव जाति, प्राणियों, जीव-जंतुओं को जीवन दान देते हैं और उन्हें तृप्त करने के लिए वर्षा भी करते हैं। लोग साल में एक दिन इंद्र देव की बड़े श्रद्धा भाव से पूजा करते थे। वे विभिन्न प्रकार के व्यंजनों एवं पकवानों से उनकी पूजा करना अपना कत्र्तव्य समझते थे।  उनका विश्वास था कि यदि कोई इन्द्र देव की पूजा नहीं करेगा तो उसका कल्याण नहीं होगा। यह भय उन्हें पूजा के प्रति श्रद्धा और भक्ति से बांधे रखता था। एक बार देवराज इन्द्र को इस बात का बहुत अभिमान हो गया कि लोग उनसे बहुत अधिक डरते हैं। त्रिकालदर्शी भगवान को अभिमान पसंद नहीं है।

श्री कृष्ण भगवान ने नंद बाबा को कहा कि वन और पर्वत हमारे घर हैं।  गिरिराज गोवर्धन की छत्रछाया में उनका पशुधन चरता है, उनसे सभी को वनस्पतियां और छाया मिलती है। गोवर्धन महाराज सभी के देव,  हमारे कुलदेवता और रक्षक हैं  इसलिए सभी को  गिरिराज गोवर्धन की पूजा करनी चाहिए। नंद बाबा की आज्ञा से सभी ने जो सामान इन्द्र देव की पूजा के लिए तैयार किया था उसी से गोवर्धन पर्वत की पूजा करने के लिए तैयारी कर ली। 

सभी ब्रजवासियों ने नंद बाबा  के साथ विधि-विधान से खीर मालपुए, हलवा, पूरी, दूध, दही के छत्तीस प्रकार के व्यंजन बनाकर बड़ी धूमधाम के साथ गिरीराज गोवर्धन की पूजा की।  भगवान की यह अद्भुत लीला तो देखते ही बनती थी क्योंकि एक ओर तो वह ग्वाल बालों के साथ थे तथा दूसरी ओर साक्षात गिरिराज के  रूप में भोग ग्रहण कर रहे थे। सभी ने बड़े आनंद से गिरिराज भगवान का प्रसाद खाया तथा जो बचा उसे सभी में बांटा।

देवइन्द्र को जब इस बात का पता चला तो उसे बड़ा क्रोध आया। उसने गोकुल पर इतनी वर्षा की कि चारों तरफ जल थल हो गया। भगवान श्री कृष्ण ने तब  गिरिराज पर्वत को उंगुली पर उठाकर सभी गोकुलवासियों की रक्षा की। जब इन्द्र को वास्तविकता का पता चला तो उन्होंने भगवान से क्षमा याचना की।

सभी गोकुलवासी घर वापस आए तो जो भी सामान घरों में था उससे खट्टे मीठे व्यंजन तैयार किए और अन्नकूट महोत्सव मनाया गया। वह तैयार किए प्रसाद 56 भोगों के नाम से प्रसिद्ध हुए। तब से हर साल देश भर में अन्नकूट महोत्सव  मनाया जाता है। गोबर से गोवर्धन की आकृति बनाकर उस पर सींकों से रूई  लगाकर पेड़ आदि बनाकर दीपक जलाकर खील, बताशे, दूध, दही, शहद आदि चढ़ाकर  पूजा की जाती है तथा 56 भोग लगाकर प्रसाद वितरित किया जाता है।

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