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आज हिन्दी बोलो, हिन्दी दिवस है - सुदर्शन वशिष्ठ |
हमारी राजभाषा हिन्दी है। उत्तर भारत में हिन्दी पट्टी है जहां कई राज्यों की राजभाषा हिन्दी है। भारत के संविधान में इन राज्यों को ''क'' श्रेणी में रखा गया है। संविधानिक रूप से हिन्दी को राष्ट्रभाषा नहीं, राजभाषा कहा गया है। 14 सितम्बर 1949 को हिन्दी को संघ के संविधान में राजभाषा का दर्जा दिया गया और संविधान में बाकायदा इस की व्याख्या की गई। राजभाषा के रूप में हिन्दी की विजय मात्र एक मत से ही हुई थी, ऐसा कहा जाता है। 'क' श्रेणी में हिमाचल, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार तथा सभी संघ शासित राज्य आते हैं। इस क्षेत्र को ही हिन्दी पट्टी कहा जाता है। |
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गाँधीवाद तो अमर है - डा अरूण गाँधी - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड |
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क्या महात्मा गांधी ने भगत सिंह व अन्य क्रांतिकारियों को बचाने का प्रयास किया था? - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड |
क्या महात्मा गांधी ने भगत सिंह व अन्य क्रांतिकारियों को बचाने का प्रयास किया था? उपरोक्त प्रश्न प्राय: समय-समय पर उठता रहा है। बहुत से लोगों का आक्रोश रहता है कि गांधी ने भगत सिंह को बचाने का प्रयास नहीं किया। |
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कौनसा हिंदी सम्मेलन? - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड |
आजकल दो हिंदी सम्मेलनों का आयोजन होता है। एक है विश्व हिंदी सम्मेलन (World Hindi Conference) और दूसरा है अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन (International Hindi Conference)। |
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समाज के वास्तविक शिल्पकार होते हैं शिक्षक - डा. जगदीश गांधी |
सर्वपल्ली डा. राधाकृष्णन का जन्मदिवस 5 सितम्बर के अवसर पर विशेष लेख |
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लालबहादुर शास्त्री - भारत-दर्शन संकलन | Collections |
भारत के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर, 1904 को मुगलसराय, उत्तर प्रदेश के एक सामान्य निम्नवर्गीय परिवार में हुआ था। आपका वास्तविक नाम लाल बहादुर श्रीवास्तव था। शास्त्री जी के पिता शारदा प्रसाद श्रीवास्तव एक शिक्षक थे व बाद में उन्होंने भारत सरकार के राजस्व विभाग में क्लर्क के पद पर कार्य किया। |
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न्यूज़ीलैंड की हिंदी पत्रकारिता | FAQ - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड |
न्यूज़ीलैंड हिंदी पत्रकारिता - बारम्बार पूछे जाने वाले प्रश्न | FAQ |
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गाँधी राष्ट्र-पिता...? - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड |
कुछ समय से यह मुद्दा बड़ा चर्चा में है, 'गाँधी को राष्ट्रपिता की उपाधि किसने दी?' |
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अगली सदी का शोधपत्र - सूर्यबाला | Suryabala |
एक समय की बात है, हिन्दुस्तान में एक भाषा हुआ करे थी। उसका नाम था हिंदी। हिन्दुस्तान के लोग उस भाषा को दिलोजान से प्यार करते थे। बहुत सँभालकर रखते थे। कभी भूलकर भी उसका इस्तेमाल बोलचाल या लिखने-पढ़ने में नहीं करते थे। सिर्फ कुछ विशेष अवसरों पर ही वह लिखी-पढ़ी या बोली जाती थी। यहाँ तक कि साल में एक दिन, हफ्ता या पखवारा तय कर दिया जाता था। अपनी-अपनी फुरसत के हिसाब से और सबको खबर कर दी जाती थी कि इस दिन इतने बजकर इतने मिनट पर हिंदी पढ़ी-बोली और सुनी-समझी (?) जाएगी। निश्चित दिन, निश्चित समय पर बड़े सम्मान से हिंदी झाड़-पोंछकर तहखाने से निकाली जाती थी और सबको बोलकर सुनाई जाती थी। |
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यहाँ क्षण मिलता है - मृदुला गर्ग | Mridula Garg |
हम सताए, खीजे, उकताए, गड्ढों-खड्ढों, गंदे परनालों से बचते, दिल्ली की सड़क पर नीचे ज़्यादा, ऊपर कम देखते चले जा रहे थे, हर दिल्लीवासी की तरह, रह-रहकर सोचते कि हम इस नामुराद शहर में रहते क्यों हैं ? फिर करिश्मा ! एक नज़र सड़क से हट दाएँ क्या गई, ठगे रह गए। दाएँ रूख फलाँ-फलाँ राष्ट्रीय बैंक था। नाम के नीचे पट्ट पर लिखा था, यहाँ क्षण मिलता है। वाह ! बहिश्त उतर ज़मी पर आ लिया। यह कैसा बैंक है जो रोकड़ा लेने-देने के बदले क्षण यानी जीवन देता है? क्षण-क्षण करके दिन बनता है, दिन-दिन करके बरसों-बरस यानी ज़िंदगी। आह, किसी तरह एक क्षण और मिल जाए जीने को। |
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भोपाल - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड |
भोपाल की स्थापना परमार राजा भोज ने की थी। राजा भोज ने 1010 से 1055 तक मालवा पर शासन किया था। उन्होंने भोजपाल की स्थापना की जिसे कालान्तर में 'भोपाल' के नाम से जाना जाता है। |
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हिंदी के बारे में कुछ तथ्य - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड |
संकलन: रोहित कुमार 'हैप्पी' |
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फीजी में हिंदी - विवेकानंद शर्मा | फीजी |
फीजी के पूर्व युवा तथा क्रीडा मंत्री, संसद सदस्य विवेकानंद शर्मा का हिंदी के प्रति गहरा लगाव था । फीजी में हिंदी के विकास के लिए वह निरंतर प्रयत्नशील रहे। |
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विश्व हिंदी सम्मेलन : आदि से अंत - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड |
दसवां विश्व हिंदी सम्मेलन 10-12 सितंबर 2015 तक भोपाल में आयोजित किया गया। यह सम्मेलन 32 वर्ष पश्चात् भारत में आयोजित किया गया था। |
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यदि मैं तानाशाह होता - महात्मा गांधी |
यदि मैं तानाशाह होता........ |
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गांधी जी के बारे में कुछ तथ्य - भारत-दर्शन संकलन | Collections |
गांधी जी के बारे में कुछ तथ्य:
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हिन्दी के बिना हमारा कार्य नहीं चल सकता - भारत-दर्शन संकलन |
अंग्रेजी के विषय में लोगों की जो कुछ भी भावना हो, पर मैं यह दावे के साथ कह सकता हूँ कि हिन्दी के बिना हमारा कार्य नहीं चल सकता । हिन्दी की पुस्तकें लिख कर और हिन्दी बोल कर भारत के अधिकाँश भाग को निश्चय ही लाभ हो सकता है। यदि हम देश में बंगला और अंग्रेजी जाननेवालों की संख्या का पता चलाएँ, तो हमें साफ प्रकट हो जाएगा कि वह कितनी न्यून है। जो सज्जन हिन्दी भाषा द्वारा भारत में एकता पैदा करना चाहते हैं, वे निश्चय ही भारतबन्धु हैं । हम सब को संगठित हो कर इस ध्येय की प्राप्ति के लिए प्रयास करना चाहिए । भले ही इस को पाने में अधिक समय लगे, परन्तु हमें सफलता अवश्य मिलेगी । |
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स्वामी विवेकानंद का विश्व धर्म सम्मेलन संबोधन - भारत-दर्शन संकलन |
स्वामी विवेकानंद ने 11 सितंबर 1893 को शिकागो (अमेरिका) में हुए विश्व धर्म सम्मेलन में एक बेहद चर्चित भाषण दिया था। विवेकानंद का जब भी जि़क्र आता है उनके इस भाषण की चर्चा जरूर होती है। पढ़ें विवेकानंद का यह भाषण... |
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महात्मा गांधी -शांति के नायक - नरेन्द्र देव |
2 अक्टूबर का दिन कृतज्ञ राष्ट्र के लिए राष्ट्रपिता की शिक्षाओं को स्मरण करने का एक और अवसर उपलब्ध कराता है। भारतीय राजनीतिक परिदृश्य में मोहन दास कर्मचंद गांधी का आगमन ख़ुशी प्रकट करने के साथ-साथ हज़ारों भारतीयों को आकर्षित करने का पर्याप्त कारण उपलब्ध कराता है तथा इसके साथ उनके जीवन-दर्शन के बारे में भी ख़ुशी प्रकट करने का प्रमुख कारण है, जो बाद में गाँधी दर्शन के नाम से पुकारा गया। यह और भी आश्चर्यजनक बात है कि गाँधी जी के व्यक्तित्व ने उनके लाखों देशवासियों के दिल में जगह बनाई और बाद के दौर में दुनियाभर में असंख्य लोग उनकी विचारधारा की तरफ आकर्षित हुए। |
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अनमोल वचन - महात्मा गाँधी |
यहाँ महात्मा गाँधी के कुछ अनमोल वचन संकलित किए गए हैं: |
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यदि मैं तानाशाह होता ! - बालकृष्ण राव |
यदि मैं तानाशाह होता तो विदेशी माध्यम द्वारा शिक्षा तुरंत बंद कर देता, जो अध्यापक इस परिवर्तन के लिए तैयार न होते उन्हें बर्ख़ास्त कर देता, पाठ्य पुस्तकों के तैयार किए जाने का इंतजार न करता ।' पिछले प्राय: एक पखवारे भर प्रयागनिवासी महात्मा गांधी के इन शब्दों को अपने नगर के अनेक स्थानों पर चिपके पोस्टरों पर लिखे देखते रहे हैं । उत्तर प्रदेश-शासन द्वारा जो 'भाषा विधेयक' विधानमंडल में प्रस्तुत हुआ था उसे ही इसका श्रेय दिया जाना चाहिए कि हम लोगों ने राष्ट्रपिता के इन शब्दों को याद करने-कराने की कोशिश की। |
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विश्व हिंदी सम्मेलन - इतिहास व पृष्ठभूमि - भारत-दर्शन संकलन |
विश्व हिंदी सम्मेलन की संकल्पना राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा द्वारा 1973 में की गई थी। संकल्पना के फलस्वरूप, राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के तत्वावधान में प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन 10-12 जनवरी 1975 को नागपुर, भारत में आयोजित किया गया था। |
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हिन्दी : देवनागरी में या रोमन में ? - ओम विकास |
मग्र विकास के लिए हिन्दी : देवनागरी में या रोमन में ? |
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विश्व हिंदी सम्मेलन - रोहित कुमार |
विश्व हिंदी सम्मेलन का इतिहास व पृष्ठभूमि - विश्व हिंदी सम्मेलन की संकल्पना राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा द्वारा 1973 में की गई थी। संकल्पना के फलस्वरूप, राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के तत्वावधान में प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन 10-12 जनवरी 1975 को नागपुर, भारत में आयोजित किया गया था। अभी तक ग्यारह सम्मेलन सम्पन्न हो चुके हैं। ग्यारहवाँ विश्व हिंदी सम्मेलन 2018 में मॉरीशस में आयोजित हुआ था और आगामी बारहवाँ विश्व हिंदी सम्मेलन फीजी में प्रस्तावित है। |
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दीवाली - रामचंद्र का बनवास काटकर अयोध्या लौटना - भारत-दर्शन संकलन |
रामायण के अनुसार दीवाली वाले दिन अयोध्या के राजकुमार राम अपने पिता दशरथ की आज्ञा से 14 वर्ष का वनवास काटकर तथा लंकानरेश रावण का वध कर पत्नी सीता, अनुज लक्ष्मण तथा भक्त हनुमान के साथ अयोध्या लौटे थे। उनके स्वागत में पूरी अयोध्या नगरी दीपों से जगमगा उठी। उसी समय से दीवाली पर दीये जलाकर, पटाखे बजाकर तथा मिठाई बांटकर दीवाली का पर्व मनाने की परम्परा आरंभ हुई। |
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धन्वन्तरि - धनतेरस की पौराणिक कथा - भारत-दर्शन संकलन |
धार्मिक व पौराणिक मान्यता है साथ सागर मंथन के समय भगवान धन्वन्तरि अमृत कलश के साथ अवतरित हुए थे। उनके कलश लेकर प्रकट होने की घटना के प्रतीक स्वरूप ही बर्तन खरीदने की परम्परा का प्रचलन हुआ। पौराणिक मान्यता है कि इस दिन धन (चल या अचल संपत्ति) खरीदने से उसमें 13 गुणा वृद्धि होती है। धन तेरस के दिन ग्रामीण धनिये के बीज भी खरीदते हैं। |
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हिंदी और राष्ट्रीय एकता - सुभाषचन्द्र बोस |
यह काम बड़ा दूरदर्शितापूर्ण है और इसका परिणाम बहुत दूर आगे चल कर निकलेगा। प्रांतीय ईर्ष्या-द्वेश को दूर करने में जितनी सहायता हमें हिंदी-प्रचार से मिलेगी, उतनी दूसरी किसी चीज़ से नहीं मिल सकती। अपनी प्रांतीय भाषाओं की भरपूर उन्नति कीजिए। उसमें कोई बाधा नहीं डालना चाहता और न हम किसी की बाधा को सहन ही कर सकते हैं; पर सारे प्रांतो की सार्वजनिक भाषा का पद हिंदी या हिंदुस्तानी ही को मिला। नेहरू-रिपोर्ट में भी इसी की सिफारिश की गई है। यदि हम लोगों ने तन मन से प्रयत्न किया, तो वह दिन दूर नहीं है, जब भारत स्वाधीन होगा और उसकी राष्ट्रभाषा होगी हिंदी। |
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हिन्दी गान - महेश श्रीवास्तव |
भाषा संस्कृति प्राण देश के |
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दीवाली - राजा बलि की कथा - भारत-दर्शन संकलन |
पुरातन युग में दैत्यों के राजा बलि ने अपने जीवन में दान देने का वचन लिया था। कोई याचक उससे जो वस्तु माँगता राजा उसे वह वस्तु देता था। उसके राज्य में जीव-हिंसा, मद्यपान, वेश्यागमन, चोरी और विश्वासघात उन पाँच महापातकों का अभाव था। |
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लक्ष्मी माता की कथा | धनतेरस की पौराणिक कथा - भारत-दर्शन संकलन |
पौराणिक मान्यता है कि माँ लक्ष्मी को विष्णु जी का श्राप था कि उन्हें 13 वर्षों तक किसान के घर में रहना होगा। श्राप के दौरान किसान का घर धनसंपदा से भर गया। श्रापमुक्ति के उपरांत जब विष्णुजी लक्ष्मी को लेने आए तब किसान ने उन्हें रोकना चाहा। लक्ष्मीजी ने कहा कल त्रयोदशी है तुम साफ-सफाई करना, दीप जलाना और मेरा आह्वान करना। किसान ने ऐसा ही किया और लक्ष्मी की कृपा प्राप्त की । तभी से लक्ष्मी पूजन की प्रथा का प्रचलन आरंभ हुआ। |
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हिंदी भाषा ही सर्वत्र प्रचलित है - श्री केशवचन्द्र सेन |
यदि एक भाषा के न होने के कारण भारत में एकता नहीं होती है, तो और चारा ही क्या है? तब सारे भारतवर्ष में एक ही भाषा का व्यवहार करना ही एकमात्र उपाय है । अभी कितनी ही भाषाएँ भारत में प्रचलित हैं । उनमें हिन्दी भाषा ही सर्वत्र प्रचलित है । इसी हिन्दी को भारत वर्ष की एक मात्र भाषा स्वीकार कर लिया जाए, तो सहज ही में यह एकता सम्पन्न हो सकती है । किन्तु राज्य की सहायता के बिना यह कभी भी संभव नहीं है । अभी अंग्रेज हमारे राजा हैं, वे इस प्रस्ताव से सहमत होंगे, ऐसा विश्वास नहीं होता । भारतवासियों के बीच फिर फूट नहीं रहेगी वे परस्पर एक हृदय हो जायेंगे, आदि सोच कर शायद अंग्रेजों के मन में भय होगा । उनका खयाल है कि भारतीयों में फूट न होने पर ब्रिटिश साम्राज्य भी स्थिर नहीं रह सकेगा । |
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राजा हेम की कथा | धनतेरस की पौराणिक कथा - भारत-दर्शन संकलन |
धनतेरस की शाम घर के बाहर मुख्य द्वार पर और आंगन में दीप जलाने की भी प्रथा है। एक दंत कथा के अनुसार किसी समय हेम नामक एक राजा थे। दैव कृपा से उन्हें एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। ज्योंतिषियों ने जब बालक की कुण्डली बनाई तो बताया कि बालक का विवाह जिस दिन होगा उसके ठीक चार दिन के बाद वह मृत्यु हो जाएगी। |
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कैसे होगी हिंदी की प्रगति और विकास - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड |
सम्मेलन के सत्रों का हाल तो कुछ और ही था। प्रत्येक सत्र में पत्रकारों का छायाचित्र लेने या रिकार्डिंग करने पर प्रतिबंध था। वे शायद उद्घाटन व समापन समारोह के लिए ही आमंत्रित किए गए थे। मंच पर बैठे पत्रकार बिरादरी के मित्र भी सरकारी पाले में जाकर सरकारी बातें करने लगे थे, "अरे! इतना बड़ा समारोह है! ज़रा आयोजकों की मजबूरी भी तो समझिए!"
अब कई पत्रकार बेचारे तो बुरे फंसे उनके पास मीडिया का पास तो था वे अंदर जा सकते थे लेकिन अब प्रतिनिधि वाला परिचय-पत्र न होने से चाय-नाश्ता निषेध था। इधर हाल यह था कि प्रतिनिधियों और अतिथियों को चाय के लिए तरसते देखा!
कुछ कहेंगे हमने तो ऐसा नहीं देखा - भाई, आप विशिष्ट जो थे! अंदर जो श्रेणी विभाजन किया गया था प्रतिनिधियों और विशिष्ट का - उसमें अंतर तो रहता ही है, न! स्वाभाविक है!
अगले दिन फिर कुछ पत्रकार चाय-नाश्ते की सोच रहे थे पर अब उनके पास 'प्रतिनिधि' वाला बिल्ला तो था नहीं यथा स्वयंसेवी सैनिक उन्हें अंदर कैसे जाने देते? मैं बाहर आया तो एक पत्रकार ने पूछा, "आपको अंदर कैसे जाने दिया?"
मैंने कहा, "भैय्या, भुगतान किया है! मीडिया के साथ-साथ प्रतिनिधि वाला बिल्ला भी है, न! शुल्क चुकाया है!"
अब भाई साहब क्या कहते चाय-नाश्ते का ख्याल छोड़ पानी पीने चल दिए फिर बाकी दिन वे दिखाई नहीं पड़े।
दो पत्रकार भाई अपने होटल में ही पास में ठहरे थे। एक सपत्नीक थे। पहले दिन तो पत्नी के साथ सम्मेलन में ही थे लेकिन जब से चायपान व दोपहर का भोजन बंद हुआ उनका सम्मेलन में आना भी बंद हुआ। अब आयोजकों का गणित देखिए! आमंत्रित किए गए पत्रकारों को होटल व कार की सेवाएं दी गई थीं। होटल में सुबह का नाश्ता करके भाई लोग पत्नी को लेकर 70-80 किलोमीटर जाकर शाम को वापिस आ जाते थे। एक जो पर्चा बांटा था ना भोपाल के आसपास 'भाई साहब' ने वे सब देख लिए थे।
दूसरे भाई भी मुफ्त की गाड़ी खूब दौड़ा रहे थे। मैंने पूछा, "आप दिखाई ही नहीं दिए?"
"सत्रों में तो बैठना 'अलाउड' नहीं। खाने के लिए भी वहाँ 'प्राब्लम' आ रही थी तो बस होटल में ही रहे, कुछ इधर-उधर घूम लिए।"
- रोहित कुमार 'हैप्पी'
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हिंदी भाषा की समृद्धता - भारतेन्दु हरिशचन्द्र |
यदि हिन्दी अदालती भाषा हो जाए, तो सम्मन पढ़वाने, के लिए दो-चार आने कौन देगा, और साधारण-सी अर्जी लिखवाने के) लिए कोई रुपया-आठ आने क्यों देगा । तब पढ़ने वालों को यह अवसर कहाँ मिलेगा कि गवाही के सम्मन को गिरफ्तारी का वारंट बता दें । |
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अथ हिन्दी कथा - भारत-दर्शन संकलन |
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दीवाली - लक्ष्मी गणेश पूजन - भारत-दर्शन संकलन |
वैसे तो प्राय: लक्ष्मी पूजन के साथ विष्णु की पूजा होती है लेकिन दीवाली को लक्ष्मी और गणेश की पूजा का विधान है। इस विशेष पूजन का क्या कारण है? इस बारे में एक कथा प्रचलित है। |
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दीवाली - देवी लक्ष्मी कथा - भारत-दर्शन संकलन |
एक अन्य लोक कथा के अनुसार देवी लक्ष्मी इस रात अपनी बहन दरिद्रा के साथ भू-लोक की सैर पर आती हैं। मान्यता है कि जिस घर में साफ-सफाई और स्वच्छता हो, वहां मां लक्ष्मी अपने कदम रखती हैं और जिस घर में ऐसा नहीं होता वहां दरिद्रा अपना डेरा जमा लेती है। |
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हिन्दी, भारत की सामान्य भाषा - लोकमान्य तिलक |
राष्ट्रभाषा की आवश्यकता अब सर्वत्र समझी जाने लगी है । राष्ट्र के संगठन के लिये आज ऐसी भाषा की आवश्यकता है, जिसे सर्वत्र समझा जा सके । लोगों में अपने विचारों का अच्छी तरह प्रचार करने के लिये भगवान बुद्ध ने भी एक भाषा को प्रधानता देकर कार्य किया था । हिन्दी भाषा राष्ट्र भाषा बन सकती है । राष्ट्र भाषा सर्वसाधारण के लिये जरूर होनी चाहिए । मनुष्य-हृदय एक दूसरे से विचार-विनिमय करना चाहता है; इसलिये राष्ट्र भाषा की बहुत जरूरत है । विद्यालयों में हिन्दी की पुस्तकों का प्रचार होना चाहिये । इस प्रकार यह कुछ ही वर्षों में राष्ट्र भापा बन सकती है । |
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प्रधानमंत्री का उद्घाटन भाषण - भारत-दर्शन संकलन |
दुनिया के कोने-कोने से आए हुए सभी हिंदी-प्रेमी भाईयों और बहनों, |
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दीवाली - साधु की कथा - भारत-दर्शन संकलन |
एक बार एक साधु को राजसी सुख भोगने की इच्छा हुई। अपनी इच्छा की पूर्ति हेतु उसने लक्ष्मी की कठोर तपस्या की। कठोर तपस्या के फलस्वरूप लक्ष्मी ने उस साधु को राज सुख भोगने का वरदान दे दिया। वरदान प्राप्त कर साधु राजा के दरबार में पहुंचा और राजा के पास जाकर राजा का राज मुकुट नीचे गिरा दिया। यह देख राजा क्रोध से कांपने लगा। किन्तु उसी क्षण उस राजमुकुट से एक सर्प निकल कर बाहर चला गया। यह देखकर राजा का क्रोध समाप्त हो गया और प्रसन्नता से उसने साधु को अपना मंत्री बनाने का प्रस्ताव रखा। |
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वि हि स में सुषमा स्वराज का संबोधन - भारत-दर्शन संकलन |
सितम्बर 10, 2015 |
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हिंदी हमारे जीवन मूल्यों, संस्कृति एवं संस्कारों की सच्ची संवाहक एवं संप्रेषक - राजनाथ सिंह |
एक भाषा के रूप में हिंदी न सिर्फ भारत की पहचान है बल्कि यह भाषा हमारे जीवन मूल्यों, संस्कृति एवं संस्कारों की सच्ची संवाहक, संप्रेषक और परिचायक भी है। जब विश्व के 177 देशों की मान्यता के साथ 21 जून को विश्व योग दिवस के रूप में अपनाया जा सकता है तो हिंदी भाषा को भी संयुक्त राष्ट्र संघ की अधिकृत भाषाओं की सूची में शामिल क्यों नहीं किया जा सकता जबकि इसके लिए तो सिर्फ 127 देशों के समर्थन की ही आवश्यकता है। यह बात केंद्रीय गृह मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने आज भोपाल में दसवें विश्व हिंदी सम्मेलन के समापन के अवसर पर कही। |
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दीवाली की महत्ता - भारत-दर्शन संकलन |
श्री रामचन्द्र के चौदह वर्ष का बनवास काटकर इसी दिन अयोध्या लौटने के अतिरिक्त भी कई अन्य दंतकथाएं इस त्योहार के साथ जुड़ी हुई हैं। |
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दुर्लभ पांडुलिपियां - भारत-दर्शन संकलन |
विश्व हिंदी सम्मेलन के अंतर्गत 'कल, आज और कल' प्रदर्शनी में 400 वर्ष पुरानी दुर्लभ पांडुलिपियां भी प्रदर्शित की गईं। इन पांडुलिपियों में 18 ग्रंथ सम्मिलित थे जिनमें श्रीमद्भगवद गीता मुख्य थी। श्रीमद्भगवद गीता की पांडुलिपि के 415 में से 24 पृष्ठ सोने के पानी से लिखे गए हैं। प्राकृतिक रंगों और सोने के पानी से छह दुर्लभ चित्र भी पांडुलिपि में उकेरे गए हैं। |
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विश्व हिन्दी सम्मेलन प्रेस वार्ता - भारत-दर्शन संकलन |
अगस्त 31, 2015 |
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न्यूज़ीलैंड में हिन्दी पठन-पाठन - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड |
यूँ तो न्यूज़ीलैंड कुल 40 लाख की आबादी वाला छोटा सा देश है, फिर भी हिंदी के मानचित्र पर अपनी पहचान रखता है। पंजाब और गुजरात के भारतीय न्यूज़ीलैंड में बहुत पहले से बसे हुए हैं किन्तु 1990 के आसपास बहुत से लोग मुम्बई, देहली, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, हरियाणा इत्यादि राज्यों से आकर यहां बस गए। फिजी से भी बहुत से भारतीय राजनैतिक तख्ता-पलट के दौरान यहां आ बसे। न्यूज़ीलैंड में फिजी भारतीयों की अनेक रामायण मंडलियाँ सक्रिय हैं। यद्यपि फिजी मूल के भारतवंशी मूल रुप से हिंदी न बोल कर हिंदुस्तानी बोलते हैं तथापि यथासंभव अपनी भाषा का ही उपयोग करते हैं। उल्लेखनीय है कि फिजी में गुजराती, मलयाली, तमिल, बांग्ला, पंजाबी और हिंदी भाषी सभी भारतवंशी लोग हिंदी के माध्यम से ही जुड़े हुए हैं। |
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न्यूज़ीलैंड की हिंदी पत्रकारिता - रोहित कुमार 'हैप्पी' |
यूँ तो न्यूजीलैंड में अनेक पत्र-पत्रिकाएँ समय-समय पर प्रकाशित होती रही हैं। सबसे पहला प्रकाशित पत्र था 'आर्योदय' जिसके संपादक थे श्री जे के नातली, उप संपादक थे श्री पी वी पटेल व प्रकाशक थे श्री रणछोड़ के पटेल। भारतीयों का यह पहला पत्र 1921 में प्रकाशित हुआ था परन्तु यह जल्दी ही बंद हो गया। |
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धनतेरस | धनतेरस का पौराणिक महत्व - भारत-दर्शन संकलन |
कार्तिक मास में त्रयोदशी का विशेष महत्व है, विशेषतः व्यापारियों और चिकित्सा एवं औषधि विज्ञान के लिए यह दिन अति शुभ माना जाता है। |
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दीवाली पौराणिक कथाएं - भारत-दर्शन संकलन |
नि:संदेह भारतीय व्रत एवं त्योहार हमारी सांस्कृतिक धरोहर है। हमारे सभी व्रत-त्योहार चाहे वह होली हो, रक्षा-बंधन हो, करवाचौथ का व्रत हो या दीवाली पर्व, कहीं न कहीं वे पौराणिक पृष्ठभूमि से जुड़े हुए हैं और उनका वैज्ञानिक पक्ष भी नकारा नहीं जा सकता। |
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अदम गोंडवी के जन्मदिन पर विशेष - अजीत कुमार सिंह |
भारत को आजाद हुए 2 माह ही बीता था, लोगों में आजादी के जश्न की खुमारी छायी हुई थी। चारों तरफ आजाद भारत की चर्चाएँ हो रही थीं। कहीं-कहीं पर रह-रह कर उत्सव भी मनाये जा रहे थे। इन्हीं उत्सवों के मध्य एक उत्सव गोण्डा के आटा ग्राम में 22 अक्टूबर, 1947 को मनाया गया, जिसका मुख्य कारण राम सिंह का जन्म था। |
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लालबहादुर शास्त्री के अनमोल वचन - भारत-दर्शन संकलन | Collections |
लालबहादुर शास्त्री की जयंती के अवसर पर शास्त्रीजी के विचार- |
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चौथा बंदर - शरद जोशी - शरद जोशी | Sharad Joshi |
एक बार कुछ पत्रकार और फोटोग्राफर गांधी जी के आश्रम में पहुंचे। वहां उन्होंने देखा कि गांधी जी के तीन बंदर हैं। एक आंख बंद किए है, दूसरा कान बंद किए है, तीसरा मुंह बंद किए है। एक बुराई नहीं देखता, दूसरा बुराई नहीं सुनता और तीसरा बुराई नहीं बोलता। पत्रकारों को स्टोरी मिली, फोटोग्राफरों ने तस्वीरें लीं और आश्रम से चले गए। |
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गोवर्धन पूजन | अन्नकूट महोत्सव | Gowardhan Poojan Puranik Katha - भारत-दर्शन संकलन |
प्राचीन काल से ही ब्रज क्षेत्र में देवाधिदेव इन्द्र की पूजा की जाती थी। लोगों की मान्यता थी कि देवराज इन्द्र समस्त मानव जाति, प्राणियों, जीव-जंतुओं को जीवन दान देते हैं और उन्हें तृप्त करने के लिए वर्षा भी करते हैं। लोग साल में एक दिन इंद्र देव की बड़े श्रद्धा भाव से पूजा करते थे। वे विभिन्न प्रकार के व्यंजनों एवं पकवानों से उनकी पूजा करना अपना कत्र्तव्य समझते थे। उनका विश्वास था कि यदि कोई इन्द्र देव की पूजा नहीं करेगा तो उसका कल्याण नहीं होगा। यह भय उन्हें पूजा के प्रति श्रद्धा और भक्ति से बांधे रखता था। एक बार देवराज इन्द्र को इस बात का बहुत अभिमान हो गया कि लोग उनसे बहुत अधिक डरते हैं। त्रिकालदर्शी भगवान को अभिमान पसंद नहीं है। |
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