लघुकथाएं
लघु-कथा, *गागर में सागर* भर देने वाली विधा है। लघुकथा एक साथ लघु भी है, और कथा भी। यह न लघुता को छोड़ सकती है, न कथा को ही। संकलित लघुकथाएं पढ़िए -हिंदी लघुकथाएँप्रेमचंद की लघु-कथाएं भी पढ़ें।

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अच्छा कौन -  चितरंजन 'भारती'

एक ट्रेन में चार यात्री यात्रा कर रहे थे । उनमें एक बंगाली, एक तमिल, एक एंग्लो-इंडियन तथा एक हिंदी भाषी था । वे लोग अपनी- अपनी भाषा पर बात कर रहे थे ।
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रिश्ता  - चित्रा मुद्गल

लगभग बाईस दिनों तक 'कोमा' में रहने के बाद जब उसे होश आया था तो जिस जीवनदायिनी को उसने अपने करीब, बहुत निकट पाया था, वे थी, मारथा मम्मी। अस्पताल के अन्य मरीजों के लिए सिस्टर मारथा। वह पुणे जा रहा था... खंडाला घाट की चढ़ाई पर अचानक वह दुर्घटनाग्रस्त हो गया। ज़ख्मी अवस्था में नौ घंटे तक पड़े रहने के बाद एक यात्री ने अपनी गाड़ी से उसे सुसान अस्पताल में दाखिल करवाया...पूरे चार महीने बाद वह अस्पताल से डिस्चार्ज किया गया। चलते समय वह मारथा मम्मी से लिपटकर बच्चे की तरह रोया। उन्होंने उसके माथे पर ममत्व के सैकड़ों चुंबन टांक दिए - 'गॉड ब्लेस यू माय चाइल्ड...।' डॉ कोठारी से उसने कहा भी था, ''डॉक्टर साहब ! आज अगर मैं इस अस्पताल से मैं जिंदा लौट रहा हूँ तो आपकी दवाइयों और इंजेक्शनों के बल पर नहीं, मारथा मम्मी के प्यार के बल पर। ''
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हिंदी - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

हिंदी के कवियों, लेखकों व साहित्यकारों का समारोह चल रहा था। बाहर मेज पर एक पंजीकरण-पुस्तिका रखी थी। जो भी आता उसे उस पुस्तिका में हस्ताक्षर करने थे। सभी आगंतुक ऐसा कर रहे थे। मैं भी पंक्ति में खड़ा था। अपना नम्बर आने पर मैं हस्ताक्षर करने लगा तो पुस्तिका में दर्ज सैंकड़ों हिंदी कवियों, लेखकों व साहित्याकारों के हस्ताक्षरों पर मेरी दृष्टि पड़ी - एक भी हस्ताक्षर हिंदी में नहीं था। हिंदी में रचना करने वाले कवियों, लेखकों व साहित्यकारों का यह कर्म मेरी समझ से परे था।
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नौकरी | लघु-कथा  - रंजीत सिंह

रोज की तरह दफ़्तर जाते समय जब मैं मालरोड पहुंचा तो लोगों की भारी भीड़ देख ठिठक गया। नजदीक जा कर देखा तो एक सिपाही और कुछ व्यक्ति खून से लथपथ हुए एक व्यक्ति को हाथों पैरों से उठा कर एक तरफ कर रहे थे।
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इच्छा | लघु-कथा  - रंजीत सिंह

हूँ...., आज माँ ने फिर से बैंगन की सब्जी बना कर डिब्बे में डाल दी। मुझे माँ पर गुस्सा आ रहा था । कितनी बार कहा है कि मुझे ये सब्जी पसंद नहीं, मत बनाया करो।
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हिंदी | लघु-कथा - रोहित कुमार 'हैप्पी'

हिंदी का एक साहित्य-सम्मेलन चल रहा था। सम्मेलन जहाँ आयोजित किया गया था उस भवन के प्रांगण में मेज़ पर एक पंजीकरण-पुस्तिका रखी थी। सम्मेलन में सम्मिलित होने वाले सभी साहित्यकारों को इस पुस्तिका में हस्ताक्षर करने थे।
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हिंदी डे  - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

'देखो, 14 सितम्बर को हिंदी डे है और उस दिन हमें हिंदी लेंगुएज ही यूज़ करनी चाहिए। अंडरस्टैंड?' सरकारी अधिकारी ने आदेश देते हुए कहा।
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