यह संदेह निर्मूल है कि हिंदीवाले उर्दू का नाश चाहते हैं। - राजेन्द्र प्रसाद।
कथा-कहानी
अंतरजाल पर हिंदी कहानियां व हिंदी साहित्य निशुल्क पढ़ें। कथा-कहानी के अंतर्गत यहां आप हिंदी कहानियां, कथाएं, लोक-कथाएं व लघु-कथाएं पढ़ पाएंगे। पढ़िए मुंशी प्रेमचंद,रबीन्द्रनाथ टैगोर, भीष्म साहनी, मोहन राकेश, चंद्रधर शर्मा गुलेरी, फणीश्वरनाथ रेणु, सुदर्शन, कमलेश्वर, विष्णु प्रभाकर, कृष्णा सोबती, यशपाल, अज्ञेय, निराला, महादेवी वर्मालियो टोल्स्टोय की कहानियां

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पत्थर के आँसू - ब्रहमदेव

जब हवा में कुछ मंथर गति आ जाती है वह कुछ ठंडी हो चलती है तो उस ठंडी-ठंडी हवा में बिना दाएँ-बाएँ देखे चहचहाते पक्षी उत्साहपूर्वक अपने बसेरे की ओर उड़ान भरते हैं।
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अच्छा कौन -  चितरंजन 'भारती'

एक ट्रेन में चार यात्री यात्रा कर रहे थे । उनमें एक बंगाली, एक तमिल, एक एंग्लो-इंडियन तथा एक हिंदी भाषी था । वे लोग अपनी- अपनी भाषा पर बात कर रहे थे ।
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सुभाषबाबू का हिन्दी प्रेम - भारत-दर्शन संकलन | Collections

सुभाषबाबू हिन्दी पढ़ लिख सकते थे, बोल सकते थे मगर वह इसमें बराबर हिचकते और कमी महसूस करते थे। वह चाहते थे कि हिन्दी में वह हिन्दी भाषी लोगों की तरह ही सब काम कर सकें।

एक दिन उन्होंने अपने उदगार प्रकट करते हुए कहा, "यदि देश में जनता के साथ राजनीति करनी है, तो उसका माध्यम हिन्दी ही हो सकती है। बंगाल के बाहर मैं जनता में जाऊं तो किस भाषा में बोलूं? इसलिए कांग्रेस का सभापति बनकर मैं हिन्दी खूब अच्छी तरह न जानू तो काम नहीं चलेगा। मुझे एक  मास्टर दीजिए, जो मेरे साथ रहे और मेरा हिन्दी का सारा काम कर दे। इसके साथ ही जब मैं चाहूं और मुझे समय मिले तब मैं उससे हिन्दी सीखता रहूं।"

श्री जगदीशनारायण तिवारी को, जो मूक कांग्रेस कर्मी थे और हिन्दी के अच्छे शिक्षक थे, सुभाषबाबू के साथ रखा गया। हरिपुरा कांग्रेस में तथा सभापति के दौरे के समय वह बराबर सुभाषबाबू के साथ रहे। सुभाषबाबू ने बड़ी लगन से हिन्दी सीखी और वह सचमुच बहुत अच्छी हिन्दी लिखने, पढ़ने और बोलने लगे।

'आजाद हिंद फौज' का काम और सुभाषबाबू के वक्तव्य प्राय: हिन्दी में होते थे। नेताजी भविष्यदृष्टा थे और भलीभांति जानते थे कि जिस देश की अपनी राष्ट्रभाषा नहीं होती, वह खड़ा नहीं रह सकता।

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साभार - बड़ों की बड़ी बात
पुन: संपादन - भारत-दर्शन
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बदबू - सुशांत सुप्रिय

रेल-यात्राओं का भी अपना ही मज़ा है । एक ही डिब्बे में पूरे भारत की सैर हो जाती है । 'आमार सोनार बांग्ला' वाले बाबू मोशाय से लेकर 'बल्ले-बल्ले' वाले सरदारजी तक, 'वणक्कम्' वाले तमिल भाई से लेकर 'केम छो ' वाले गुजराती सेठ तक -- सभी से रेलगाड़ी के उसी डिब्बे में मुलाक़ात हो जाती है । यहाँ तरह-तरह के लोग मिल जाते हैं । विचित्र क़िस्म के अनुभव हो जाते हैं ।
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रिश्ता  - चित्रा मुद्गल

लगभग बाईस दिनों तक 'कोमा' में रहने के बाद जब उसे होश आया था तो जिस जीवनदायिनी को उसने अपने करीब, बहुत निकट पाया था, वे थी, मारथा मम्मी। अस्पताल के अन्य मरीजों के लिए सिस्टर मारथा। वह पुणे जा रहा था... खंडाला घाट की चढ़ाई पर अचानक वह दुर्घटनाग्रस्त हो गया। ज़ख्मी अवस्था में नौ घंटे तक पड़े रहने के बाद एक यात्री ने अपनी गाड़ी से उसे सुसान अस्पताल में दाखिल करवाया...पूरे चार महीने बाद वह अस्पताल से डिस्चार्ज किया गया। चलते समय वह मारथा मम्मी से लिपटकर बच्चे की तरह रोया। उन्होंने उसके माथे पर ममत्व के सैकड़ों चुंबन टांक दिए - 'गॉड ब्लेस यू माय चाइल्ड...।' डॉ कोठारी से उसने कहा भी था, ''डॉक्टर साहब ! आज अगर मैं इस अस्पताल से मैं जिंदा लौट रहा हूँ तो आपकी दवाइयों और इंजेक्शनों के बल पर नहीं, मारथा मम्मी के प्यार के बल पर। ''
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पुत्र-प्रेम - मुंशी प्रेमचंद | Munshi Premchand

बाबू चैतन्यदास ने अर्थशास्त्र खूब पढ़ा था, और केवल पढ़ा ही नहीं था, उसका यथायोग्य व्यवहार भी वे करते थे। वे वकील थे, दो-तीन गांवों में उनकी जमींदारी भी थी, बैंक में भी कुछ रुपये थे। यह सब उसी अर्थशास्त्र के ज्ञान का फल था। जब कोई खर्च सामने आता तब उनके मन में स्वभावतः: प्रश्न होता था - इससे स्वयं मेरा उपकार होगा या किसी अन्य पुरुष का? यदि दो में से किसी का कुछ भी उपकार न होता तो वे बड़ी निर्दयता से उस खर्च का गला दबा देते थे। ‘व्यर्थ' को वे विष के समाने समझते थे। अर्थशास्त्र के सिद्धांत उनके जीवन-स्तम्भ हो गये थे।
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विलासी  - शरतचंद्र चट्टोपाध्याय

पक्का दो कोस रास्ता पैदल चलकर स्कूल में पढ़ने जाया करता हूँ। मैं अकेला नहीं हूँ, दस-बारह जने हैं। जिनके घर देहात में हैं, उनके लड़कों को अस्सी प्रतिशत इसी प्रकार विद्या-लाभ करना पड़ता है। अत: लाभ के अंकों में अन्त तक बिल्कुल शून्य न पड़ने पर भी जो पड़ता है, उसका हिसाब लगाने के लिए इन कुछेक बातों पर विचार कर लेना काफी होगा कि जिन लड़कों को सबेरे आठ बजे के भीतर ही बाहर निकल कर आने-जाने में चार कोस का रास्ता तय करना पड़ता है, चार कोस के माने आठ मील नहीं, उससे भी बहुत अधिक। बरसात के दिनों में सिर पर बादलों का पानी और पाँवों के नीचे घुटनों तक कीचड़ के बदले धूप के समुद्र में तैरते हुए स्कूल और घर आना-जाना पड़ता है, उन अभागे बालकों को माँ-सरस्वती प्रसन्न होकर वर दें कि उनके कष्टों को देखकर वे कहीं अपना मुँह दिखाने की बात भी नहीं सोच पातीं।
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गांधी का हिंदी प्रेम - भारत-दर्शन संकलन | Collections

महात्मा गांधी की मातृभाषा यद्यपि गुजराती थी तथापि वे भारतीय स्वतंत्रता-संग्राम में जनसंपर्क हेतु हिन्दी को ही सर्वाधिक उपयुक्त भाषा मानते थे।
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हिंदी - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

हिंदी के कवियों, लेखकों व साहित्यकारों का समारोह चल रहा था। बाहर मेज पर एक पंजीकरण-पुस्तिका रखी थी। जो भी आता उसे उस पुस्तिका में हस्ताक्षर करने थे। सभी आगंतुक ऐसा कर रहे थे। मैं भी पंक्ति में खड़ा था। अपना नम्बर आने पर मैं हस्ताक्षर करने लगा तो पुस्तिका में दर्ज सैंकड़ों हिंदी कवियों, लेखकों व साहित्याकारों के हस्ताक्षरों पर मेरी दृष्टि पड़ी - एक भी हस्ताक्षर हिंदी में नहीं था। हिंदी में रचना करने वाले कवियों, लेखकों व साहित्यकारों का यह कर्म मेरी समझ से परे था।
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रावण वध | दशहरा की पौराणिक कथा - भारत-दर्शन संकलन

रामचंद्रजी के बनवास काल के उपरांत लंका नरेश रावण रामचंद्रजी की पत्नी सीता का अपहरण कर लंका ले जाता है। भगवान श्री राम अपनी पत्नी सीता को रावण के बंधन से मुक्त कराने हेतु भाई लक्ष्मण, भक्त हनुमान एवं वानरों की सेना के साथ मिलकर रावण के साथ युद्ध किया।
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महिषासुर वध | दशहरा की पौराणिक कथा - भारत-दर्शन संकलन

देवी दुर्गा ने विजय दशमी (दशहरा) के दिन महिषासुर जिसे भैंस असुर के नाम से भी जाना जाता है, का वध किया था।
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रानी केतकी की कहानी  - सैयद इंशा अल्ला खां

यह वह कहानी है कि जिसमें हिंदी छुट।
और न किसी बोली का मेल है न पुट॥
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नौकरी | लघु-कथा  - रंजीत सिंह

रोज की तरह दफ़्तर जाते समय जब मैं मालरोड पहुंचा तो लोगों की भारी भीड़ देख ठिठक गया। नजदीक जा कर देखा तो एक सिपाही और कुछ व्यक्ति खून से लथपथ हुए एक व्यक्ति को हाथों पैरों से उठा कर एक तरफ कर रहे थे।
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एक टोकरी-भर मिट्टी  - माधवराव सप्रे

किसी श्रीमान् जमींदार के महल के पास एक गरीब अनाथ विधवा की झोंपड़ी थी। जमींदार साहब को अपने महल का हाता उस झोंपड़ी तक बढा़ने की इच्‍छा हुई, विधवा से बहुतेरा कहा कि अपनी झोंपड़ी हटा ले, पर वह तो कई जमाने से वहीं बसी थी; उसका प्रिय पति और इकलौता पुत्र भी उसी झोंपड़ी में मर गया था। पतोहू भी एक पाँच बरस की कन्‍या को छोड़कर चल बसी थी। अब यही उसकी पोती इस वृद्धाकाल में एकमात्र आधार थी। जब उसे अपनी पूर्वस्थिति की याद आ जाती तो मारे दु:ख के फूट-फूट रोने लगती थी। और जबसे उसने अपने श्रीमान् पड़ोसी की इच्‍छा का हाल सुना, तब से वह मृतप्राय हो गई थी। उस झोंपड़ी में उसका मन लग गया था कि बिना मरे वहाँ से वह निकलना नहीं चाहती थी। श्रीमान् के सब प्रयत्‍न निष्‍फल हुए, तब वे अपनी जमींदारी चाल चलने लगे। बाल की खाल निकालने वाले वकीलों की थैली गरम कर उन्‍होंने अदालत से झोंपड़ी पर अपना कब्‍जा करा लिया और विधवा को वहाँ से निकाल दिया। बिचारी अनाथ तो थी ही, पास-पड़ोस में कहीं जाकर रहने लगी।
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इच्छा | लघु-कथा  - रंजीत सिंह

हूँ...., आज माँ ने फिर से बैंगन की सब्जी बना कर डिब्बे में डाल दी। मुझे माँ पर गुस्सा आ रहा था । कितनी बार कहा है कि मुझे ये सब्जी पसंद नहीं, मत बनाया करो।
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हिंदी | लघु-कथा - रोहित कुमार 'हैप्पी'

हिंदी का एक साहित्य-सम्मेलन चल रहा था। सम्मेलन जहाँ आयोजित किया गया था उस भवन के प्रांगण में मेज़ पर एक पंजीकरण-पुस्तिका रखी थी। सम्मेलन में सम्मिलित होने वाले सभी साहित्यकारों को इस पुस्तिका में हस्ताक्षर करने थे।
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हिंदी डे  - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

'देखो, 14 सितम्बर को हिंदी डे है और उस दिन हमें हिंदी लेंगुएज ही यूज़ करनी चाहिए। अंडरस्टैंड?' सरकारी अधिकारी ने आदेश देते हुए कहा।
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दशहरे की पौराणिक कथाएं - भारत-दर्शन संकलन

दशहरा से संबंधित विभिन्न पौराणिक कथाएं हैं जिनमें भगवान रामचंद्र द्वारा रावण का वध, दुर्गा माता से जुड़ी हुई कथा व महिषासुर की कहानी प्रमुख है।
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सादा जीवन, उच्च विचार वाले प्रधानमंत्री - भारत-दर्शन संकलन | Collections

यहाँ भारत के लोकप्रिय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी के जीवन से जुड़े संस्मरणों व प्रेरक-प्रसंगों को संकलित किया गया है। शास्त्रीजी निसंदेह, 'सादा जीवन, उच्च विचार' वाले व्यक्तित्व के स्वामी थे।
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