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काव्य |
जब ह्रदय अहं की भावना का परित्याग करके विशुद्ध अनुभूति मात्र रह जाता है, तब वह मुक्त हृदय हो जाता है। हृदय की इस मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द विधान करती आई है उसे काव्य कहते हैं। कविता मनुष्य को स्वार्थ सम्बन्धों के संकुचित घेरे से ऊपर उठाती है और शेष सृष्टि से रागात्मक संबंध जोड़ने में सहायक होती है। काव्य की अनेक परिभाषाएं दी गई हैं। ये परिभाषाएं आधुनिक हिंदी काव्य के लिए भी सही सिद्ध होती हैं। काव्य सिद्ध चित्त को अलौकिक आनंदानुभूति कराता है तो हृदय के तार झंकृत हो उठते हैं। काव्य में सत्यं शिवं सुंदरम् की भावना भी निहित होती है। जिस काव्य में यह सब कुछ पाया जाता है वह उत्तम काव्य माना जाता है। |
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जन-गण-मन साकार करो - छेदीसिंह |
हे बापू, इस भारत के तुम, |
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यहाँ कोकिला नहीं, काग हैं, शोर मचाते, |
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भगत सिंह को पसंद थी ये ग़ज़ल - भारत-दर्शन संकलन | Collections |
उन्हें ये फिक्र है हर दम नई तर्ज़-ए-जफ़ा क्या है |
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सुभाषचन्द्र - गयाप्रसाद शुक्ल सनेही |
तूफान जुल्मों जब्र का सर से गुज़र लिया |
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चाहता हूँ देश की.... - रामावतार त्यागी | Ramavtar Tyagi |
मन समर्पित, तन समर्पित |
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हम होंगे कामयाब - गिरिजाकुमार माथुर | Girija Kumar Mathur |
हम होंगे कामयाब, हम होंगे कामयाब |
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पन्द्रह अगस्त - गिरिजाकुमार माथुर | Girija Kumar Mathur |
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बढ़े चलो! बढ़े चलो! - सोहनलाल द्विवेदी | Sohanlal Dwivedi |
न हाथ एक शस्त्र हो |
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वीर | कविता - रामधारी सिंह दिनकर | Ramdhari Singh Dinkar |
सलिल कण हूँ, या पारावार हूँ मैं |
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कलम, आज उनकी जय बोल | कविता - रामधारी सिंह दिनकर | Ramdhari Singh Dinkar |
जला अस्थियाँ बारी-बारी |
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धरती बोल उठी - रांगेय राघव |
चला जो आजादी का यह |
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स्वतंत्रता का नमूना - काका हाथरसी | Kaka Hathrasi |
बिना टिकिट के ट्रेन में चले पुत्र बलवीर |
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दोहावली - 1 - तुलसीदास | Tulsidas |
श्रीसीतारामाभ्यां नम: |
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प्यारा वतन - महावीर प्रसाद द्विवेदी | Mahavir Prasad Dwivedi |
( १) |
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फिर उठा तलवार - रांगेय राघव |
एक नंगा वृद्ध |
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उठो धरा के अमर सपूतो - द्वारिकाप्रसाद माहेश्वरी |
उठो धरा के अमर सपूतो |
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झाँसी की रानी - सुभद्रा कुमारी |
सिंहासन हिल उठे, राजवंशों ने भृकुटी तानी थी, |
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सुखी आदमी - केदारनाथ सिंह | Kedarnath Singh |
आज वह रोया |
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मुक्ता - सोहनलाल द्विवेदी |
ज़ंजीरों से चले बाँधने |
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स्वतंत्रता का दीपक - गोपाल सिंह नेपाली | Gopal Singh Nepali |
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भारत न रह सकेगा ... - शहीद रामप्रसाद बिस्मिल |
भारत न रह सकेगा हरगिज गुलामख़ाना। |
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धरा को उठाओ, गगन को झुकाओ - गोपालदास ‘नीरज’ |
दिए से मिटेगा न मन का अँधेरा, |
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सरफ़रोशी की तमन्ना - पं० रामप्रसाद बिस्मिल |
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है। |
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सारे जहाँ से अच्छा - इक़बाल |
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा। |
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दोहे | रसखान के दोहे - रसखान | Raskhan |
प्रेम प्रेम सब कोउ कहत, प्रेम न जानत कोइ। |
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जन्म-दिन - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड |
यूँ तो जन्म-दिन मैं यूँ भी नहीं मनाता |
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उसे यह फ़िक्र है हरदम - भगत सिंह |
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आत्म-दर्शन - श्रीकृष्ण सरल |
चन्द्रशेखर नाम, सूरज का प्रखर उत्ताप हूँ मैं, |
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कौमी गीत - अजीमुल्ला |
हम हैं इसके मालिक हिंदुस्तान हमारा |
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भारतवर्ष - श्रीधर पाठक |
जय जय प्यारा भारत देश। |
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मरना होगा | कविता - जगन्नाथ प्रसाद 'अरोड़ा' |
कट कट के मरना होगा। |
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बदनाम शायर - शुभांगिनी कुमारी 'चन्द्रिका' |
बदनाम शायर हूँ मगर, मेरा भी कुछ ईमान है |
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स्वतंत्रता दिवस की पुकार - अटल बिहारी वाजपेयी |
पन्द्रह अगस्त का दिन कहता - आज़ादी अभी अधूरी है। |
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खूनी पर्चा - जनकवि वंशीधर शुक्ल |
अमर भूमि से प्रकट हुआ हूं, मर-मर अमर कहाऊंगा, |
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शुभेच्छा - लक्ष्मीनारायण मिश्र |
न इच्छा स्वर्ग जाने की नहीं रुपये कमाने की । |
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आज़ादी - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड |
भोग रहे हम आज आज़ादी, किसने हमें दिलाई थी! |
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