भारत की परंपरागत राष्ट्रभाषा हिंदी है। - नलिनविलोचन शर्मा।
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प्रतिनिधि निबंधों व समालोचनाओं का संकलन आलेख, लेख और निबंध.

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स्वामी विवेकानंद का विश्व धर्म सम्मेलन संबोधन - भारत-दर्शन संकलन

स्वामी विवेकानंद ने 11 सितंबर 1893 को शिकागो (अमेरिका) में हुए विश्व धर्म सम्मेलन में एक बेहद चर्चित भाषण दिया था। विवेकानंद का जब भी जि़क्र आता है उनके इस भाषण की चर्चा जरूर होती है। पढ़ें विवेकानंद का यह भाषण...
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महीनों का नामकरण कैसे हुआ? - भारत-दर्शन संकलन

महीने के नामों से तो हम सब परिचित हैं लेकिन क्या आप जानते हैं कि महीनों का नामकरण कैसे हुआ? आइए, महीनों के नामकरण व इनकी पृष्ठभूमि को जानें।

जनवरी : रोमन देवता 'जेनस' के नाम पर वर्ष के पहले महीने जनवरी का नामकरण हुआ। जेनस के दो चेहरे बताए गए हैं। वह एक से आगे तथा दूसरे से पीछे देखता है।  जनवरी के भी दो चेहरे हैं। एक से वह बीते हुए वर्ष को देखता है तथा दूसरे से अगले वर्ष को। जेनस को लैटिन में जैनअरिस कहा गया। जेनस जो बाद में जेनुअरी बना और हिन्दी में जनवरी कहा जाने लगा।

फरवरी : इस महीने का संबंध लेटिन के फैबरा से है। इसका अर्थ है 'शुद्धि की दावत।' पहले इसी माह में 15 तारीख को लोग शुद्धि की दावत दिया करते थे।  फरवरी नाम का संबंध रोम की एक देवी फेबरुएरिया से भी माना जाता है। जो संतानोत्पत्ति की देवी मानी गई है इसलिए महिलाएँ इस महीने इस देवी की पूजा करती थीं ताकि वे प्रसन्न होकर उन्हें संतान का आशीर्वाद दे।

मार्च : रोमन देवता 'मार्स' के नाम पर मार्च महीने का नामकरण हुआ। रोमन वर्ष का प्रारंभ इसी महीने से होता था। मार्स मार्टिअस का अपभ्रंश है जो आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। सर्दियाँ समाप्त होने पर लोग शत्रु देश पर आक्रमण करते थे इसलिए इस महीने को मार्च नाम से पुकारा गया।

अप्रैल : इस महीने की उत्पत्ति लैटिन शब्द 'ऑपिरिरे'  (Aperire) से हुई। इसका अर्थ है खुलना। रोम में इसी माह कलियाँ खिलकर फूल बनती थीं अर्थात बसंत का आगमन होता था इसलिए प्रारंभ में इस माह का नाम एप्रिलिस रखा गया। इसके पश्चात वर्ष के केवल दस माह होने के कारण यह बसंत से काफी दूर होता चला गया। वैज्ञानिकों ने पृथ्वी के सही भ्रमण की जानकारी से दुनिया को अवगत कराया तब वर्ष में दो महीने और जोड़कर एप्रिलिस का नाम पुनः सार्थक किया गया।

मई : रोमन देवता मरकरी की माता 'मइया' के नाम पर मई नामकरण हुआ। मई का तात्पर्य 'बड़े-बुजुर्ग रईस' हैं। मई नाम की उत्पत्ति लैटिन के मेजोरेस से भी मानी जाती है।

जून : इस महीने लोग शादी करके घर बसाते थे। इसलिए परिवार के लिए उपयोग होने वाले लैटिन शब्द जेन्स के आधार पर जून का नामकरण हुआ।
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हिंदी और राष्ट्रीय एकता - सुभाषचन्द्र बोस

यह काम बड़ा दूरदर्शितापूर्ण है और इसका परिणाम बहुत दूर आगे चल कर निकलेगा। प्रांतीय ईर्ष्या-द्वेश को दूर करने में जितनी सहायता हमें हिंदी-प्रचार से मिलेगी, उतनी दूसरी किसी चीज़ से नहीं मिल सकती। अपनी प्रांतीय भाषाओं की भरपूर उन्नति कीजिए। उसमें कोई बाधा नहीं डालना चाहता और न हम किसी की बाधा को सहन ही कर सकते हैं; पर सारे प्रांतो की सार्वजनिक भाषा का पद हिंदी या हिंदुस्तानी ही को मिला। नेहरू-रिपोर्ट में भी इसी की सिफारिश की गई है। यदि हम लोगों ने तन मन से प्रयत्न किया, तो वह दिन दूर नहीं है, जब भारत स्वाधीन होगा और उसकी राष्ट्रभाषा होगी हिंदी।
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चॉकलेट स्वाद से सौंदर्य तक - प्रीता व्यास

चॉकलेट का नाम आता है तो बच्चा हो या बड़ा एक मीठा सा स्वाद उसके मुँह में तैर जाता है। शायद ही कोई हो जिसे चॉकलेट पसंद न हो। चॉकलेट तो चॉकलेट है, चाहे किसी भी रूप में हो- सादा हो या नट्स के साथ, ठोस हो या पेय के रूप में। लेकिन चॉकलेट के सफ़र की हदें इन रसीली सरहदों के आगे हैं। अब चॉकलेट का नाम आने से केवल स्वाद तक बात नहीं रह जाती बल्कि एक और भी तस्वीर उभरती है जिसके सरोकार सौन्दर्य से हैं। अमूमन सौन्दर्य की बात हो तो तरह-तरह के उबटन जहन में उतर आते हैं। क्या कोई सोच सकता है कि ये उबटन चॉकलेट का हो सकता है? हल्दी- चन्दन के उबटन वाले दिन लद गए, अब तो चेहरे को चमकता है चॉकलेट का उबटन।
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क्या बन सकेगा भारत एक सुपर- पावर ? - प्रीता व्यास

भारत में मई 2014 के चुनावों के बाद जब नरेंद्र मोदी प्रधानमन्त्री बने तो कुछ एक शिकायती सुर थे लेकिन एक बड़ा तबका था देश में जिसने पूरे जोश में, ना जाने कितनी आशाओं और उम्मीदों को नए प्रधानमंत्री से जोड़ दिया था। सिर्फ देश में ही नहीं, विदेशों में भी जहाँ-जहाँ भारतीय थे मोदी को लेकर एक नई उम्मीद उन सबने जताई। मोदी जैसे एक नाम नहीं था, एक जादू था जो सर चढ़ कर बोल रहा था। वक़्त बीतने के साथ जादू ख़त्म तो नहीं हुआ फीका सा ज़रूर कहा जा सकता है।
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करूणा और दुख के कवि ग़ालिब - फ़िरोज़ बख़्त अहमद

रंजिश ही सही ग़म को भुलाने के लिए आज!
करूणा और दुख के कवि ग़ालिब

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न्यूजीलैंड : जहाँ सबसे पहले मनता है नया-वर्ष  - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

अंतर्राष्ट्रीय दिनांक रेखा के करीब अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण, न्यूजीलैंड नए साल का स्वागत करने वाले दुनिया के पहले देशों में से एक है। अंत: न्यूजीलैंड में नया वर्ष दूसरे देशों से पहले मनाया जाता है। न्यूजीलैंड में नव-वर्ष और उससे अगले दिन सार्वजनिक अवकाश रहता है।
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भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र | Bharatendu Harishchandra

आज बड़े आनंद का दिन है कि छोटे से नगर बलिया में हम इतने मनुष्यों को एक बड़े उत्साह से एक स्थान पर देखते हैं। इस अभागे आलसी देश में जो कुछ हो जाए वही बहुत है। बनारस ऐसे-ऐसे बड़े नगरों में जब कुछ नहीं होता तो हम यह न कहेंगे कि बलिया में जो कुछ हमने देखा वह बहुत ही प्रशंसा के योग्य है। इस उत्साह का मूल कारण जो हमने खोजा तो प्रगट हो गया कि इस देश के भाग्य से आजकल यहाँ सारा समाज ही एकत्र है। राबर्ट साहब बहादुर ऐसे कलेक्टर जहाँ हो वहाँ क्यों न ऐसा समाज हो। जिस देश और काल में ईश्वर ने अकबर को उत्पन्न किया था उसी में अबुलफजल, बीरबल,टोडरमल को भी उत्पन्न किया। यहाँ राबर्ट साहब अकबर हैं जो मुंशी चतुर्भुज सहाय, मुंशी बिहारीलाल साहब आदि अबुलफजल और टोडरमल हैं। हमारे हिंदुस्तानी लोग तो रेल की गाड़ी है। यद्यपि फर्स्ट क्लास, सैकेंड क्लास आदि गाड़ी बहुत अच्छी-अच्छी और बड़े-बड़े महसूल की इस ट्रेन में लगी है पर बिना इंजिन सब नहीं चल सकती वैसी ही हिंदुस्तानी लोगों को कोई चलाने वाला हो तो ये क्या नहीं कर सकते। इनसे इतना कह दीजिए 'का चुप साधि रहा बलवाना' फिर देखिए हनुमानजी को अपना बल कैसा याद आता है। सो बल कौन याद दिलावे। हिंदुस्तानी राजे-महाराजे, नवाब, रईस या हाकिम। राजे-महाराजों को अपनी पूजा, भोजन, झूठी गप से छुट्टी नहीं। हाकिमों को कुछ तो सरकारी काम घेरे रहता है कुछ बाल-घुड़दौड़, थियेटर में समय लगा। कुछ समय बचा भी तो उनको क्या गरह है कि हम गरीब, गंदे, काले आदमियों से मिल कर अपना अनमोल समय खोवें। बस यही मसल रही -
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लोहड़ी - लुप्त होते अर्थ - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

यह सच है कि आज कोई भी त्यौहार चाहे वह लोहड़ी हो, होली हो या दिवाली हो - भारत ही नहीं बल्कि विदेशों में भी धूम-धाम से मनाया जाता है। यह भी सत्य है कि अधिकतर आयोजक व आगंतुक इनके अर्थ, आधार व पृष्ठभूमि से अनभिज्ञ होते हैं। आयोजक एक-दो पृष्ठ के भाषण रट कर अपने ज्ञान का दिखावा कर देते हैं और इस तोता रटंत भाषण से हट कर यदि कोई प्रश्न कर लिया जाए तो उनकी बत्ती चली जाती है और आगंतुक/दर्शक वर्ग तो मौज-मस्ती के लिए आता है। आज लोहड़ी है - लेकिन अब कितने बच्चों को लोहड़ी के गीत आते हैं? कौन मां-बाप लोहड़ी के गीत गा अपने बच्चों को पड़ोसियों के घर लोहड़ी मांगने जाने की अनुमति देते हैं? और भूल-चूक से यदि कोई बच्चा आ ही जाए आपके द्वार तो आपके घर में न लकड़ी होगी, न खील और न मक्का तो पारंपरिक तौर पर उन्हें देंगे क्या? त्यौहार के नाम पर बस बालीवुड का हो-हल्ला सुनाई देता है! अच्छे भले गीतों का संगीत बदल कर उनका सत्यानाश करके उसे 'रिमिक्स' कह दिया जाता है। कुछ दिन पहले एक परिचित का फोन आया, "13 को आ जाओ! मेरे बेटे की पहली लोहड़ी है!" मैंने अनभिज्ञता जताते हुए पूछ लिया, "इसके बारे में कुछ बताइए कि लोहड़ी क्या है, क्यों मनाई जाती है?"
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क्यों डरें महर्षि वेलेन्टाइन से? - डॉ. वेदप्रताप वैदिक | Dr Ved Pratap Vaidik

‘सेंट वेलेन्टाइन डे' का विरोध अगर इसलिए किया जाता है कि वह प्रेम-दिवस है तो इससे बढ़कर अभारतीयता क्या हो सकती है? प्रेम का, यौन का, काम का जो मुक़ाम भारत में है, हिन्दू धर्म में है, हमारी परम्परा में है, वह दुनिया में कहीं नहीं है। धर्मशास्त्रों में जो पुरुषार्थ-चतुष्टय बताया गया है--धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष-- उसमें काम का महत्व स्वयंसिद्ध है। काम ही सृष्टि का मूल है। अगर काम न हो तो सृष्टि कैसे होगी? काम के बिना धर्म का पालन नहीं हो सकता। इसीलिए काम पर रचे गए ग्रन्थ को कामशास्त्र कहा गया? शास्त्र किसे कहा जाता है? क्या किसी अश्लील ग्रन्थ को कोई शास्त्र कहेगा? शास्त्रकार भी कौन है? महर्षि है! महर्षि वात्स्यायन! वैसे ही जैसे कि महर्षि वेलेन्टाइन जो पैदा हुए, तीसरी सदी में। वे भारत में नहीं, इटली में पैदा हुए।
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तिरंगे का इतिहास - राष्ट्रीय पोर्टल

प्रत्‍येक स्‍वतंत्र राष्‍ट्र का अपना एक ध्‍वज होता है। यह एक स्‍वतंत्र देश होने का संकेत है। भारतीय राष्‍ट्रीय ध्‍वज की अभिकल्‍पना पिंगली वैंकैयानन्‍द ने की थी और इसे इसके वर्तमान स्‍वरूप में 22 जुलाई 1947 को आयोजित भारतीय संविधान सभा की बैठक के दौरान अपनाया गया था, जो 15 अगस्‍त 1947 को अंग्रेजों से भारत की स्‍वतंत्रता के कुछ ही दिन पूर्व की गई थी। इसे 15 अगस्‍त 1947 और 26 जनवरी 1950 के बीच भारत के राष्‍ट्रीय ध्‍वज के रूप में अपनाया गया और इसके पश्‍चात भारतीय गणतंत्र ने इसे अपनाया। भारत में ''तिरंगे'' का अर्थ भारतीय राष्‍ट्रीय ध्‍वज है।
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अंतरराष्ट्रीय प्रेस स्वतंत्रता दिवस - डॉ० राधेश्याम द्विवेदी

1991 में यूनेस्को और संयुक्त राष्ट्र से शुरुआत :- तरह-तरह के दिवस शायद इसीलिए मनाए जाते हैं कि लोग उस दिन किसी ख़ास मुद्दे पर अच्छी-अच्छी बातें करें, आदर्श-नीति-सिद्धांत वग़ैरह पर ज़ोर दिया जाए। अंतरराष्ट्रीय प्रेस स्वतंत्रता दिवस (अंग्रेज़ी: World Press Freedom Day) प्रत्येक वर्ष '3 मई को मनाया जाता है। प्रेस किसी भी समाज का आइना होता है। प्रेस की आज़ादी से यह बात साबित होती है कि उस देश में अभिव्यक्ति की कितनी स्वतंत्रता है। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में प्रेस की स्वतंत्रता एक मौलिक जरूरत है। आज हम एक ऐसी दुनिया में जी रहे हैं, जहाँ अपनी दुनिया से बाहर निकल कर आसपास घटित होने वाली घटनाओं के बारे में जानने का अधिक वक्त हमारे पास नहीं होता। ऐसे में प्रेस और मीडिया हमारे लिए एक खबर वाहक का काम करती हैं, जो हर सवेरे हमारी टेबल पर गरमा गर्म खबरें परोसती हैं। यही खबरें हमें दुनिया से जोड़े रखती हैं। आज प्रेस दुनिया में खबरें पहुंचाने का सबसे बेहतरीन माध्यम है। शुरुआत 'अंतरराष्ट्रीय प्रेस स्वतंत्रता दिवस' मनाने का निर्णय वर्ष 1991 में यूनेस्को और संयुक्त राष्ट्र के 'जन सूचना विभाग' ने मिलकर किया था। इससे पहले नामीबिया में विन्डंहॉक में हुए एक सम्मेलन में इस बात पर जोर दिया गया था कि प्रेस की आज़ादी को मुख्य रूप से बहुवाद और जनसंचार की आज़ादी की जरूरत के रूप में देखा जाना चाहिए। तब से हर साल '3 मई' को 'अंतरराष्ट्रीय प्रेस स्वीतंत्रता दिवस' के रूप में मनाया जाता है। प्रेस की आज़ादी 'संयुक्त राष्ट्र महासभा' ने भी '3 मई' को 'अंतरराष्ट्रीय प्रेस स्वातंत्रता' की घोषणा की थी।
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