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गीत |
गीतों में प्राय: श्रृंगार-रस, वीर-रस व करुण-रस की प्रधानता देखने को मिलती है। इन्हीं रसों को आधारमूल रखते हुए अधिकतर गीतों ने अपनी भाव-भूमि का चयन किया है। गीत अभिव्यक्ति के लिए विशेष मायने रखते हैं जिसे समझने के लिए स्वर्गीय पं नरेन्द्र शर्मा के शब्द उचित होंगे, "गद्य जब असमर्थ हो जाता है तो कविता जन्म लेती है। कविता जब असमर्थ हो जाती है तो गीत जन्म लेता है।" आइए, विभिन्न रसों में पिरोए हुए गीतों का मिलके आनंद लें। |
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धरती बोल उठी - रांगेय राघव |
चला जो आजादी का यह |
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फिर उठा तलवार - रांगेय राघव |
एक नंगा वृद्ध |
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चन्द्रमा की चाँदनी से भी नरम | गीत - रमाकांत अवस्थी |
चन्द्रमा की चाँदनी से भी नरम |
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मनोदशा - कैलाश कल्पित |
वे बुनते हैं सन्नाटे को |
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अभिशाप का वरदान - कैलाश कल्पित |
उसको ही वरदान मिला है |
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छोटे गीत - चन्द्रकुँवर बर्त्वाल |
मेरा सब चलना व्यर्थ हुआ, |
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प्यार मुझसे है तो - बल्लभेश दिवाकर |
प्यार मुझसे है तो जलना सीख ले! |
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