काव्य |
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जब ह्रदय अहं की भावना का परित्याग करके विशुद्ध अनुभूति मात्र रह जाता है, तब वह मुक्त हृदय हो जाता है। हृदय की इस मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द विधान करती आई है उसे काव्य कहते हैं। कविता मनुष्य को स्वार्थ सम्बन्धों के संकुचित घेरे से ऊपर उठाती है और शेष सृष्टि से रागात्मक संबंध जोड़ने में सहायक होती है। काव्य की अनेक परिभाषाएं दी गई हैं। ये परिभाषाएं आधुनिक हिंदी काव्य के लिए भी सही सिद्ध होती हैं। काव्य सिद्ध चित्त को अलौकिक आनंदानुभूति कराता है तो हृदय के तार झंकृत हो उठते हैं। काव्य में सत्यं शिवं सुंदरम् की भावना भी निहित होती है। जिस काव्य में यह सब कुछ पाया जाता है वह उत्तम काव्य माना जाता है।
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आज़ादी - हफ़ीज़ जालंधरी |
शेरों को आज़ादी है, आज़ादी के पाबंद रहें, जिसको चाहें चीरें-फाड़ें, खाएं-पीएं आनंद रहें। ...
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राष्ट्रीय गीत | National Song - बंकिम चन्द्र चटर्जी |
वंदे मातरम्, वंदे मातरम्! सुजलाम्, सुफलाम्, मलयज शीतलाम्, शस्यश्यामलाम्, मातरम्! वंदे मातरम्! शुभ्रज्योत्सनाम् पुलकितयामिनीम्, फुल्लकुसुमित द्रुमदल शोभिनीम्, सुहासिनीम् सुमधुर भाषिणीम्, सुखदाम् वरदाम्, मातरम्! वंदे मातरम्, वंदे मातरम्॥ ...
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धरती बोल उठी - रांगेय राघव |
चला जो आजादी का यह नहीं लौटेगा मुक्त प्रवाह, बीच में कैसी हो चट्टान मार्ग हम कर देंगे निर्बाध। ...
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राधा प्रेम - सपना मांगलिक |
मोर मुकट पीताम्बर पहने,जबसे घनश्याम दिखा साँसों के मनके राधा ने, बस कान्हा नाम लिखा राधा से जब पूँछी सखियाँ, कान्हा क्यों न आता मैं उनमें वो मुझमे रहते, दूर कोई न जाता द्वेत कहाँ राधा मोहन में, यों ह्रदय में समाया जग क्या मैं खुद को भी भूली, तब ही उसको पाया। ...
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कब लोगे अवतार हमारी धरती पर - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड |
फैला है अंधकार हमारी धरती पर हर जन है लाचार हमारी धरती पर हे देव! धरा है पूछ रही... कब लोगे अवतार हमारी धरती पर ! ...
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राखी | कविता - सुभद्रा कुमारी |
भैया कृष्ण ! भेजती हूँ मैं राखी अपनी, यह लो आज । कई बार जिसको भेजा है सजा-सजाकर नूतन साज ।। ...
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राखी की चुनौती | सुभद्रा कुमारी चौहान - सुभद्रा कुमारी |
बहिन आज फूली समाती न मन में । तड़ित आज फूली समाती न घन में ।। घटा है न झूली समाती गगन में । लता आज फूली समाती न बन में ।। ...
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तुलसी बाबा - त्रिलोचन |
तुलसी बाबा, भाषा मैंने तुमसे सीखी मेरी सजग चेतना में तुम रमे हुए हो । कह सकते थे तुम सब कड़वी, मीठी, तीखी । ...
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वन्देमातरम् | राष्ट्रीय गीत - भारत-दर्शन संकलन | Collections |
वंदे मातरम्, वंदे मातरम्! सुजलाम्, सुफलाम्, मलयज शीतलाम्, शस्यश्यामलाम्, मातरम्! वंदे मातरम्! शुभ्रज्योत्सनाम् पुलकितयामिनीम्, फुल्लकुसुमित द्रुमदल शोभिनीम्, सुहासिनीम् सुमधुर भाषिणीम्, सुखदाम् वरदाम्, मातरम्! वंदे मातरम्, वंदे मातरम्॥ ...
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राष्ट्रगीत में भला कौन वह - रघुवीर सहाय | Raghuvir Sahay |
राष्ट्रगीत में भला कौन वह भारत-भाग्य विधाता है फटा सुथन्ना पहने जिसका गुन हरचरना गाता है। मख़मल टमटम बल्लम तुरही पगड़ी छत्र चंवर के साथ तोप छुड़ाकर ढोल बजाकर जय-जय कौन कराता है। पूरब-पच्छिम से आते हैं नंगे-बूचे नरकंकाल सिंहासन पर बैठा, उनके तमगे कौन लगाता है। कौन-कौन है वह जन-गण-मन- अधिनायक वह महाबली डरा हुआ मन बेमन जिसका बाजा रोज बजाता है। ...
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वन्देमातरम् - भारत-दर्शन संकलन | Collections |
'वन्देमातरम्' बंकिम चन्द्र चटर्जी द्वारा संस्कृत में रचा गया; यह स्वतंत्रता की लड़ाई में भारतीयों के लिए प्रेरणा का स्रोत था। इसका स्थान हमारे राष्ट्र गान, 'जन गण मन...' के बराबर है। इसे पहली बार 1896 में भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के सत्र में गाया गया था। ...
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स्वतंत्रता का नमूना - काका हाथरसी | Kaka Hathrasi |
बिना टिकिट के ट्रेन में चले पुत्र बलवीर जहाँ ‘मूड' आया वहीं, खींच लई ज़ंजीर खींच लई ज़ंजीर, बने गुंडों के नक्कू पकड़ें टी.टी., गार्ड, उन्हें दिखलाते चक्कू गुंडागर्दी, भ्रष्टाचार बढ़ा दिन-दूना प्रजातंत्र की स्वतंत्रता का देख नमूना ...
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देश - शेरजंग गर्ग |
ग्राम, नगर या कुछ लोगों का काम नहीं होता है देश संसद, सड़कों, आयोगों का नाम नहीं होता है देश ...
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वीरांगना - केदारनाथ अग्रवाल | Kedarnath Agarwal |
मैंने उसको जब-जब देखा, लोहा देखा। लोहे जैसा तपते देखा, गलते देखा, ढलते देखा मैंने उसको गोली जैसा चलते देखा। ...
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फिर उठा तलवार - रांगेय राघव |
एक नंगा वृद्ध जिसका नाम लेकर मुक्त होने को उठा मिल हिंद कांपते थे सिन्धु औ' साम्राज्य सिर झुकाते थे सितमगर त्रस्त आज वह है बंद मेरे देश हिन्दुस्तान बर्बर आ रहा है जापान जागो जिन्दगी की शान ...
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प्राण वन्देमातरम् - भारत-दर्शन संकलन | Collections |
हम भारतीयों का सदा है, प्राण वन्देमातरम्। हम भूल सकते है नही शुभ तान वन्देमातरम्॥ ...
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ख़ूनी हस्ताक्षर - गोपाल प्रसाद व्यास |
वह ख़ून कहो किस मतलब का, जिसमें उबाल का नाम नहीं वह ख़ून कहो किस मतलब का, आ सके देश के काम नहीं वह ख़ून कहो किस मतलब का, जिसमें जीवन न रवानी है जो परवश होकर बहता है, वह ख़ून नहीं है, पानी है उस दिन लोगों ने सही-सही, ख़ूँ की क़ीमत पहचानी थी जिस दिन सुभाष ने बर्मा में, मांगी उनसे क़ुर्बानी थी बोले स्वतन्त्रता की ख़ातिर, बलिदान तुम्हें करना होगा तुम बहुत जी चुके हो जग में, लेकिन आगे मरना होगा आज़ादी के चरणों में, जो जयमाल चढ़ाई जाएगी वह सुनो! तुम्हारे शीषों के फूलों से गूँथी जाएगी आज़ादी का संग्राम कहीं, पैसे पर खेला जाता है यह शीश कटाने का सौदा, नंगे सर झेला जाता है आज़ादी का इतिहास, नहीं काली स्याही लिख पाती है इसको लिखने के लिए, ख़ून की नदी बहाई जाती है यूँ कहते-कहते वक्ता की, आँखों में ख़ून उतर आया मुख रक्तवर्ण हो गया, दमक उठी उनकी स्वर्णिम काया आजानु बाँहु ऊँची करके, वे बोले रक्त मुझे देना उसके बदले में, भारत की आज़ादी तुम मुझसे लेना हो गई सभा में उथल-पुथल, सीने में दिल न समाते थे स्वर इंक़लाब के नारों के, कोसों तक छाए जाते थे ‘हम देंगे-देंगे ख़ून’- शब्द बस यही सुनाई देते थे रण में जाने को युवक खड़े तैयार दिखाई देते थे बोले सुभाष- इस तरह नहीं बातों से मतलब सरता है लो यह काग़ज़, है कौन यहाँ आकर हस्ताक्षर करता है इसको भरने वाले जन को, सर्वस्व समर्पण करना है अपना तन-मन-धन-जन-जीवन, माता को अर्पण करना है पर यह साधारण पत्र नहीं, आज़ादी का परवाना है इस पर तुमको अपने तन का, कुछ उज्ज्वल रक्त गिराना है वह आगे आए, जिसके तन में ख़ून भारतीय बहता हो वह आगे आए, जो अपने को हिन्दुस्तानी कहता हो वह आगे आए, जो इस पर ख़ूनी हस्ताक्षर देता हो मैं क़फ़न बढ़ाता हूँ; आए जो इसको हँसकर लेता हो सारी जनता हुंकार उठी- ‘हम आते हैं, हम आते हैं’ माता के चरणों में यह लो, हम अपना रक्त चढ़ाते हैं साहस से बढ़े युवक उस दिन, देखा बढ़ते ही आते थे और चाकू, छुरी, कटारों से, वे अपना रक्त गिराते थे फिर उसी रक्त की स्याही में, वे अपनी क़लम डुबोते थे आज़ादी के परवाने पर, हस्ताक्षर करते जाते थे उस दिन तारों ने देखा था, हिन्दुस्तानी विश्वास नया जब लिखा था रणवीरों ने, ख़ूँ से अपना इतिहास नया ...
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छीन सकती है नहीं सरकार वन्देमातरम् - भारत-दर्शन संकलन | Collections |
छीन सकती है नहीं सरकार वन्देमातरम् । हम गरीबों के गले का हार वन्देमातरन् ॥१॥ ...
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यह दिया बुझे नहीं - गोपाल सिंह ‘नेपाली’ |
घोर अंधकार हो, चल रही बयार हो आज द्वार-द्वार पर, यह दिया बुझे नहीं यह निशीथ का दिया, ला रहा विहान है ...
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शब्द वन्देमातरम् - भारत-दर्शन संकलन | Collections |
फ़ैला जहाँ में शोर मित्रो! शब्द वन्देमातरम्। हिंद हो या मुसलमान सब कहते वन्देमातरम्॥ ...
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ज़माना रिश्वत का - यादराम शर्मा |
है पैसे का जोर, ज़माना रिश्वत का चर्चा चारों ओर, ज़माना रिश्वत का कोतवाल को आकर खुद ही थाने में डाँटे उलटा चोर, ज़माना रिश्वत का कटी व्यवस्था की पतंग जिन हाथों से उन हाथों में डोर, ज़माना रिश्वत का बोले भी तो कैसे वो सच की भाषा है दिल से कमज़ोर, ज़माना रिश्वत का जैसे भी हो, अब तो घर में दौलत की हो वर्षा घनघोर, ज़माना रिश्वत का समझदार अधिकारी बोला बाबू से- दोनों हाथ बटोर, ज़माना रिश्वत का ...
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फैशन | हास्य कविता - कवि चोंच |
कोट, बूट, पतलून बिना सब शान हमारी जाती है, हमने खाना सीखा बिस्कुट, रोटी नहीं सुहाती है । बिना घड़ी के जेब हमारी शोभा तनिक न पाती है, नाक कटी है नकटाई से फिर भी लाज न आती है । ...
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मन्त्र वन्देमातरम् - भारत-दर्शन संकलन | Collections |
हर घड़ी हर बार हो हर ठाम वन्द्देमातरम्। हर दम हमेशा बोलिये प्रिय मन्त्र वन्देमातरम्॥ ...
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नैराश्य गीत | हास्य कविता - कवि चोंच |
कार लेकर क्या करूँगा? तंग उनकी है गली वह, साइकिल भी जा न पाती । फिर भला मै कार को बेकार लेकर क्या करूँगा? ...
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कर्मवीर - अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' | Ayodhya Singh Upadhyaya Hariaudh |
देख कर बाधा विविध बहु विघ्न घबराते नहीं रह भरोसे भाग्य के दुःख भोग पछताते नहीं काम कितना ही कठिन हो किन्तु उकताते नहीं भीड़ में चंचल बने जो वीर दिखलाते नहीं हो गये एक आन में उनके बुरे दिन भी भले सब जगह सब काल में वे ही मिले फूले फले । आज करना है जिसे करते उसे हैं आज ही सोचते कहते हैं जो कुछ कर दिखाते हैं वही मानते जो भी हैं सुनते हैं सदा सबकी कही जो मदद करते हैं अपनी इस जगत में आप ही भूल कर वे दूसरों का मुँह कभी तकते नहीं कौन ऐसा काम है वे कर जिसे सकते नहीं । जो कभी अपने समय को यों बिताते हैं नहीं काम करने की जगह बातें बनाते हैं नहीं आज कल करते हुए जो दिन गँवाते हैं नहीं यत्न करने से कभी जो जी चुराते हैं नहीं बात है वह कौन जो होती नहीं उनके लिए वे नमूना आप बन जाते हैं औरों के लिए । व्योम को छूते हुए दुर्गम पहाड़ों के शिखर वे घने जंगल जहाँ रहता है तम आठों पहर गर्जते जल-राशि की उठती हुई ऊँची लहर आग की भयदायिनी फैली दिशाओं में लपट ये कंपा सकती कभी जिसके कलेजे को नहीं भूलकर भी वह नहीं नाकाम रहता है कहीं । ...
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नेता जी की शिकायत - प्रवीण शुक्ला |
एक कवि-सम्मेलन में 'नेता जी' मुख्य अतिथि के रूप में आये हुए थे, परन्तु गुस्से के कारण अपना मुँह फुलाये हुए थे । उपस्थित अधिकांश कवि नेताओं के विरोध में कविता सुना रहे थे, इसलिए, नेता जी को बिल्कुल भी नहीं भा रहे थे । जब उनके भाषण का नम्बर आया तो उन्होंने यूँ फ़रमाया- ...
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चन्द्रमा की चाँदनी से भी नरम | गीत - रमाकांत अवस्थी |
चन्द्रमा की चाँदनी से भी नरम और रवि के भाल से ज्यादा गरम है नहीं कुछ और केवल प्यार है
ढूँढने को मैं अमृतमय स्वर नया सिन्धु की गहराइयों में भी गया मृत्यु भी मुझको मिली थी राह पर देख मुझको रह गई थी आह भर
मृत्यु से जिसका नहीं कुछ वास्ता मुश्किलों को जो दिखाता रास्ता वह नहीं कुछ और केवल प्यार है
जीतने को जब चला संसार मैं और पहुँचा जब प्रलय के द्वार मैं बह रही थी रक्त की धारा वहाँ थे नहाते अनगिनत मुर्दे जहाँ
रक्त की धारा बनी जल, छू जिसे औे मुर्दों ने कहा जीवन जिसे वह नही कुछ और केवल प्यार है
मन हुआ मेरा कि ईश्वर से कहूँ दूर तुमसे और कितने दिन रहूँ देखकर मुझको हँसी लाचारियाँ और दुनियाँ ने बजाई तालियाँ
पत्थरो को जो बनाता देवता जानती दुनिया नहीं जिसका पता वह नहीं कुछ और केवल प्यार है ...
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पिंकी - बाबू लाल सैनी |
एक विरोधी पक्ष के नेता गाँव में पधारे, और, भीड़ इक्ट्ठी कर मंच से दहाड़े, भाइयो और बहनों- पिछली बार दूसरी पार्टी वाले सत्ता में आ गए, और देश के नदी-नाले सब बेच कर खा गए. इस बार हमें मौका दीजिए, और देखिए- महंगाई और भ्रष्टाचार का नाश होगा, गाँव मे फिर से विकास होगा। ...
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स्वतंत्रता का दीपक - गोपाल सिंह नेपाली | Gopal Singh Nepali |
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भारत न रह सकेगा ... - शहीद रामप्रसाद बिस्मिल |
भारत न रह सकेगा हरगिज गुलामख़ाना। आज़ाद होगा, होगा, आता है वह जमाना।। ...
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कृष्ण उवाच - बाबू लाल सैनी |
मुझे सब पता है, तुमने राज्य का क्या हाल किया है ? धृतराष्ट्र को, बिल्कुल मनमोहन सिंह बना दिया है ! जुए में जीत कर हीरो बनते हो ? डेमोक्रेसी के नाम पर दुनिया को छलते हो ? लेकिन अब सिर्फ सच चलेगा, कोई कहानी नहीं, क्योंकि, मेरा नाम कृष्ण है, आडवाणी नहीं। ...
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मेरा धन है स्वाधीन कलम - गोपाल सिंह नेपाली | Gopal Singh Nepali |
राजा बैठे सिंहासन पर, यह ताजों पर आसीन कलम मेरा धन है स्वाधीन कलम जिसने तलवार शिवा को दी रोशनी उधार दिवा को दी पतवार थमा दी लहरों को ख़ंजर की धार हवा को दी अग-जग के उसी विधाता ने, कर दी मेरे आधीन कलम मेरा धन है स्वाधीन कलम रस-गंगा लहरा देती है मस्ती-ध्वज फहरा देती है चालीस करोड़ों की भोली किस्मत पर पहरा देती है संग्राम-क्रांति का बिगुल यही है, यही प्यार की बीन कलम मेरा धन है स्वाधीन कलम कोई जनता को क्या लूटे कोई दुखियों पर क्या टूटे कोई भी लाख प्रचार करे सच्चा बनकर झूठे-झूठे अनमोल सत्य का रत्नहार, लाती चोरों से छीन कलम मेरा धन है स्वाधीन कलम बस मेरे पास हृदय-भर है यह भी जग को न्योछावर है लिखता हूँ तो मेरे आगे सारा ब्रह्मांड विषय-भर है रँगती चलती संसार-पटी, यह सपनों की रंगीन कलम मेरा धन है स्वाधीन कलम लिखता हूँ अपनी मरज़ी से बचता हूँ क़ैंची-दर्ज़ी से आदत न रही कुछ लिखने की निंदा-वंदन ख़ुदग़र्ज़ी से कोई छेड़े तो तन जाती, बन जाती है संगीन कलम मेरा धन है स्वाधीन कलम तुझ-सा लहरों में बह लेता तो मैं भी सत्ता गह लेता ईमान बेचता चलता तो मैं भी महलों में रह लेता हर दिल पर झुकती चली मगर, आँसू वाली नमकीन कलम मेरा धन है स्वाधीन कलम ...
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सरफ़रोशी की तमन्ना - पं० रामप्रसाद बिस्मिल |
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है। देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-कातिल में है॥ ...
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मनोदशा - कैलाश कल्पित |
वे बुनते हैं सन्नाटे को मुझको बुनता है सन्नाटा जीवन का व्यापार अजब है सुख मिलता है, पाकर घाटा। ...
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अभिशाप का वरदान - कैलाश कल्पित |
उसको ही वरदान मिला है रूप नहीं जिसने पाया है कौवों को आकाश मिला है तोतों ने पिंजड़ा पाया है। ...
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छोटे गीत - चन्द्रकुँवर बर्त्वाल |
मेरा सब चलना व्यर्थ हुआ, कुछ करने में न समर्थ हुआ, मेरा जीवन साँसें खो कर, पड़ गया आज निर्जन पथ पर, उस श्रम का ऐसा अर्थ हुआ!
२) ...
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सारे जहाँ से अच्छा - इक़बाल |
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा। हम बुलबुलें हैं इसकी वह गुलिस्तां हमारा ॥ ...
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जन्म-दिन - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड |
यूँ तो जन्म-दिन मैं यूँ भी नहीं मनाता पर इस बार... जन्म-दिन बहुत रुलाएगा जन्म-दिन पर 'माँ' बहुत याद आएगी चूँकि... इस बार... 'जन्म-दिन मुबारक' वाली चिरपरिचित आवाज नहीं सुन पाएगी... पर...जन्म-दिन के आस-पास या शायद उसी रात... वो ज़रूर सपने में आएगी... फिर... 'जन्म-दिन मुबारिक' कह जाएगी इस बार मैं हँसता हुआ न बोल पाऊंगा... आँख खुल जाएगी... 'क्या हुआ?' बीवी पूछेगी और... उत्तर में मेरी आँख भर जाएगी। [16 जून 2013 को माँ छोड़ कर जो चल दी] ...
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रिश्ते - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड |
कुछ खून से बने हुए कुछ आप हैं चुने हुए और कुछ... हमने बचाए हुए हैं टूटने-बिखरने को हैं.. बस यूं समझो.. दीवार पर टंगें कैलंडर की तरह, सजाए हुए हैं। ...
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प्यार मुझसे है तो - बल्लभेश दिवाकर |
प्यार मुझसे है तो जलना सीख ले! प्यार मुझसे है तो मरना सीख ले । मैं तुम्हे दूंगा हमेशा मुश्किलें तू उन्हें आसान करना सीख ले । ...
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उसे यह फ़िक्र है हरदम - भगत सिंह |
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आत्म-दर्शन - श्रीकृष्ण सरल |
चन्द्रशेखर नाम, सूरज का प्रखर उत्ताप हूँ मैं, फूटते ज्वाला-मुखी-सा, क्रांति का उद्घोष हूँ मैं। कोश जख्मों का, लगे इतिहास के जो वक्ष पर है, चीखते प्रतिरोध का जलता हुआ आक्रोश हूँ मैं। ...
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कौमी गीत - अजीमुल्ला |
हम हैं इसके मालिक हिंदुस्तान हमारा पाक वतन है कौम का, जन्नत से भी प्यारा ये है हमारी मिल्कियत, हिंदुस्तान हमारा इसकी रूहानियत से, रोशन है जग सारा कितनी कदीम, कितनी नईम, सब दुनिया से न्यारा करती है जरखेज जिसे, गंगो-जमुन की धारा ऊपर बर्फीला पर्वत पहरेदार हमारा नीचे साहिल पर बजता सागर का नक्कारा इसकी खाने उगल रहीं, सोना, हीरा, पारा इसकी शान शौकत का दुनिया में जयकारा आया फिरंगी दूर से, एेसा मंतर मारा लूटा दोनों हाथों से, प्यारा वतन हमारा आज शहीदों ने है तुमको, अहले वतन ललकारा तोड़ो, गुलामी की जंजीरें, बरसाओ अंगारा हिन्दू मुसलमाँ सिख हमारा, भाई भाई प्यारा यह है आज़ादी का झंडा, इसे सलाम हमारा ॥
-- अजीमुल्ला ...
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भारतवर्ष - श्रीधर पाठक |
जय जय प्यारा भारत देश। जय जय प्यारा जग से न्यारा, शोभित सारा देश हमारा। जगत-मुकुट जगदीश-दुलारा, जय सौभाग्य-सुदेश॥ जय जय प्यारा भारत देश। ...
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मरना होगा | कविता - जगन्नाथ प्रसाद 'अरोड़ा' |
कट कट के मरना होगा।
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स्वतंत्रता दिवस की पुकार - अटल बिहारी वाजपेयी |
पन्द्रह अगस्त का दिन कहता - आज़ादी अभी अधूरी है। सपने सच होने बाक़ी हैं, राखी की शपथ न पूरी है॥ ...
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खूनी पर्चा - जनकवि वंशीधर शुक्ल |
अमर भूमि से प्रकट हुआ हूं, मर-मर अमर कहाऊंगा, जब तक तुझको मिटा न लूंगा, चैन न किंचित पाऊंगा। तुम हो जालिम दगाबाज, मक्कार, सितमगर, अय्यारे, डाकू, चोर, गिरहकट, रहजन, जाहिल, कौमी गद्दारे, खूंगर तोते चश्म, हरामी, नाबकार और बदकारे, दोजख के कुत्ते खुदगर्जी, नीच जालिमों हत्यारे, अब तेरी फरेबबाजी से रंच न दहशत खाऊंगा, जब तक तुझको...। तुम्हीं हिंद में बन सौदागर आए थे टुकड़े खाने, मेरी दौलत देख देख के, लगे दिलों में ललचाने, लगा फूट का पेड़ हिंद में अग्नी ईर्ष्या बरसाने, राजाओं के मंत्री फोड़े, लगे फौज को भड़काने, तेरी काली करतूतों का भंडा फोड़ कराऊंगा, जब तक तुझको...। हमें फरेबो जाल सिखा कर, भाई भाई लड़वाया, सकल वस्तु पर कब्जा करके हमको ठेंगा दिखलाया, चर्सा भर ले भूमि, भूमि भारत का चर्सा खिंचवाया, बिन अपराध हमारे भाई को शूली पर चढ़वाया, एक एक बलिवेदी पर अब लाखों शीश चढ़ाऊंगा, जब तक तुझको....। बंग-भंग कर, नन्द कुमार को किसने फांसी चढ़वाई, किसने मारा खुदी राम और झांसी की लक्ष्मीबाई, नाना जी की बेटी मैना किसने जिंदा जलवाई, किसने मारा टिकेन्द्र जीत सिंह, पद्मनी, दुर्गाबाई, अरे अधर्मी इन पापों का बदला अभी चखाऊंगा, जब तक तुझको....। किसने श्री रणजीत सिंह के बच्चों को कटवाया था, शाह जफर के बेटों के सर काट उन्हें दिखलाया था, अजनाले के कुएं में किसने भोले भाई तुपाया था, अच्छन खां और शम्भु शुक्ल के सर रेती रेतवाया था, इन करतूतों के बदले लंदन पर बम बरसाऊंगा, जब तक तुझको....। पेड़ इलाहाबाद चौक में अभी गवाही देते हैं, खूनी दरवाजे दिल्ली के घूंट लहू पी लेते हैं, नवाबों के ढहे दुर्ग, जो मन मसोस रो देते हैं, गांव जलाये ये जितने लख आफताब रो लेते हैं, उबल पड़ा है खून आज एक दम शासन पलटाऊंगा, जब तक तुझको...। अवध नवाबों के घर किसने रात में डाका डाला था, वाजिद अली शाह के घर का किसने तोड़ा ताला था, लोने सिंह रुहिया नरेश को किसने देश निकाला था, कुंवर सिंह बरबेनी माधव राना का घर घाला था, गाजी मौलाना के बदले तुझ पर गाज गिराऊंगा, जब तक तुझको...। किसने बाजी राव पेशवा गायब कहां कराया था, बिन अपराध किसानों पर कस के गोले बरसाया था, किला ढहाया चहलारी का राज पाल कटवाया था, धुंध पंत तातिया हरी सिंह नलवा गर्द कराया था, इन नर सिंहों के बदले पर नर सिंह रूप प्रगटाऊंगा, जब तक तुझको...। डाक्टरों से चिरंजन को जहर दिलाने वाला कौन ? पंजाब केसरी के सर ऊपर लट्ठ चलाने वाला कौन ? पितु के सम्मुख पुत्र रत्न की खाल खिंचाने वाला कौन ? थूक थूक कर जमीं के ऊपर हमें चटाने वाला कौन ? एक बूंद के बदले तेरा घट पर खून बहाऊंगा ? जब तक तुझको...। किसने हर दयाल, सावरकर अमरीका में घेरवाया है, वैज्ञानिक जगदीश चन्द्र से प्रिय भारत छोड़वाया है, रास बिहारी, मानवेन्द्र और महेन्द्र सिंह को बंधवाया है, अंडमान टापू में बंदी देशभक्त सब भेजवाया है, अरे क्रूर ढोंगी के बच्चे तेरा वंश मिटाऊंगा, जब तक तुझको....। अमृतसर जलियान बाग का घाव भभकता सीने पर, देशभक्त बलिदानों का अनुराग धधकता सीने पर, गली नालियों का वह जिंदा रक्त उबलता सीने पर, आंखों देखा जुल्म नक्श है क्रोध उछलता सीने पर, दस हजार के बदले तेरे तीन करोड़ बहाऊंगा, जब तक तुझको....। -वंशीधर शुक्ल (1904-1980) ...
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पुष्प की अभिलाषा | कविता - माखनलाल चतुर्वेदी |
चाह नहीं मैं सुरबाला के, गहनों में गूँथा जाऊँ, ...
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बाक़ी बच गया अंडा | कविता - नागार्जुन | Nagarjuna |
पाँच पूत भारत माता के, दुश्मन था खूंखार गोली खाकर एक मर गया, बाक़ी रह गये चार चार पूत भारत माता के, चारों चतुर-प्रवीन देश-निकाला मिला एक को, बाकी रह गये तीन तीन पूत भारत माता के, लड़ने लग गए वो अलग हो गया उधर एक, अब बाकी बच बच गए दो दो बेटे भारत माता के, छोड़ पुरानी टेक चिपक गया है एक गद्दी से, बाकी बच गया है एक एक पूत भारत माता का, कंधे पर है झंडा पुलिस पकड़ के जेल ले गई, बाक़ी बच गया अंडा ...
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शुभेच्छा - लक्ष्मीनारायण मिश्र |
न इच्छा स्वर्ग जाने की नहीं रुपये कमाने की । नहीं है मौज करने की नहीं है नाम पाने की ।।
नहीं महलों में रहने की नहीं मोटर पै चलने की । नहीं है कर मिलाने की नहीं मिस्टर कहाने की ।।
न डिंग्री हाथ करने की, नहीं दासत्व पाने की । नहीं जंगल में जाकर ईश धूनी ही रमाने की ।।
फ़क़त इच्छा है ऐ माता! तेरी शुभ भक्ति करने की । तेरा ही नाम धरने की तेरा ही ध्यान करने की ।।
तेरे ही पैर पड़ने की तेरी आरत भगाने की । करोड़ों कष्ट भी सह कर शरण तव मातु आने की ।।
नहीं निज बंधुओ को अन्य टापू में पठाने की । नहीं निज पूर्वजों की कीर्ति को दाग़ी कराने की ।।
चाहे जिस भांति हो माता सुखद निज-राज्य पाने की । मरण उपरान्त भी माता! पुन: तव गोद आने की ।। ...
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देवेन्द्र कुमार मिश्रा की कविताएं - देवेन्द्र कुमार मिश्रा |
सूखे पत्ते
सूखते पत्ते को छोड़ देती है डाली पत्ता गिरता है जमीन पर और हवा के झौंको से बिखरता है भटकता है फिर दो पैर लापरवाही से कुचलकर चकनाचूर कर देते हैं पत्ते को कमजोर का यही हाल होता आया है सदा से ...
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ओ शासक नेहरु सावधान - वंशीधर शुक्ल |
ओ शासक नेहरु सावधान, पलटो नौकरशाही विधान। अन्यथा पलट देगा तुमको, मजदूर, वीर योद्धा, किसान। ...
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पंद्रह अगस्त की पुकार - Atal Bihari Vajpayee |
पंद्रह अगस्त का दिन कहता - आज़ादी अभी अधूरी है। सपने सच होने बाकी है, रावी की शपथ न पूरी है।। ...
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