भारत की परंपरागत राष्ट्रभाषा हिंदी है। - नलिनविलोचन शर्मा।
काव्य
जब ह्रदय अहं की भावना का परित्याग करके विशुद्ध अनुभूति मात्र रह जाता है, तब वह मुक्त हृदय हो जाता है। हृदय की इस मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द विधान करती आई है उसे काव्य कहते हैं। कविता मनुष्य को स्वार्थ सम्बन्धों के संकुचित घेरे से ऊपर उठाती है और शेष सृष्टि से रागात्मक संबंध जोड़ने में सहायक होती है। काव्य की अनेक परिभाषाएं दी गई हैं। ये परिभाषाएं आधुनिक हिंदी काव्य के लिए भी सही सिद्ध होती हैं। काव्य सिद्ध चित्त को अलौकिक आनंदानुभूति कराता है तो हृदय के तार झंकृत हो उठते हैं। काव्य में सत्यं शिवं सुंदरम् की भावना भी निहित होती है। जिस काव्य में यह सब कुछ पाया जाता है वह उत्तम काव्य माना जाता है।

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फाग खेलन बरसाने आये हैं, नटवर नंद किशोर - घासीराम | Ghasiram

घेर लई सब गली रंगीली, छाय रही छबि छटा छबीली,
जिन ढोल मृदंग बजाये हैं बंसी की घनघोर। फाग खेलन...॥१॥

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साजन! होली आई है! - फणीश्वरनाथ रेणु | Phanishwar Nath 'Renu'

साजन! होली आई है!
सुख से हँसना
जी भर गाना
मस्ती से मन को बहलाना
पर्व हो गया आज-
साजन ! होली आई है!
हँसाने हमको आई है!

साजन! होली आई है!
इसी बहाने
क्षण भर गा लें
दुखमय जीवन को बहला लें
ले मस्ती की आग-
साजन! होली आई है!
जलाने जग को आई है!

साजन! होली आई है!
रंग उड़ाती
मधु बरसाती
कण-कण में यौवन बिखराती,
ऋतु वसंत का राज-
लेकर होली आई है!
जिलाने हमको आई है!

साजन ! होली आई है!
खूनी और बर्बर
लड़कर-मरकर-
मधकर नर-शोणित का सागर
पा न सका है आज-
सुधा वह हमने पाई है !
साजन! होली आई है!

साजन ! होली आई है !
यौवन की जय !
जीवन की लय!
गूँज रहा है मोहक मधुमय
उड़ते रंग-गुलाल
मस्ती जग में छाई है
साजन! होली आई है!

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एक भी आँसू न कर बेकार - रामावतार त्यागी | Ramavtar Tyagi

एक भी आँसू न कर बेकार -
जाने कब समंदर मांगने आ जाए!
पास प्यासे के कुआँ आता नहीं है,
यह कहावत है, अमरवाणी नहीं है,
और जिस के पास देने को न कुछ भी
एक भी ऐसा यहाँ प्राणी नहीं है,
कर स्वयं हर गीत का श्रृंगार
जाने देवता को कौनसा भा जाए!
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संत दादू दयाल के पद  - संत दादू दयाल | Sant Dadu Dayal


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हास्य दोहे | काका हाथरसी - काका हाथरसी | Kaka Hathrasi

अँग्रेजी से प्यार है, हिंदी से परहेज,
ऊपर से हैं इंडियन, भीतर से अँगरेज
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फागुन के दिन चार  - मीराबाई | Meerabai

फागुन के दिन चार होली खेल मना रे॥
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श्यामा श्याम सलोनी सूरत को सिंगार बसंती है - घासीराम | Ghasiram


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ऋतु फागुन नियरानी हो - कबीरदास | Kabirdas

ऋतु फागुन नियरानी हो,
कोई पिया से मिलावे ।
सोई सुदंर जाकों पिया को ध्यान है, 
सोई पिया की मनमानी,
खेलत फाग अगं नहिं मोड़े,
सतगुरु से लिपटानी ।
इक इक सखियाँ खेल घर पहुँची,
इक इक कुल अरुझानी ।
इक इक नाम बिना बहकानी,
हो रही ऐंचातानी ।।

पिय को रूप कहाँ लगि बरनौं,
रूपहि माहिं समानी ।
जौ रँगे रँगे सकल छवि छाके,
तन- मन सबहि भुलानी।
यों मत जाने यहि रे फाग है,
यह कछु अकथ- कहानी ।
कहैं कबीर सुनो भाई साधो,
यह गति विरलै जानी ।।

             - कबीर
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मुक्तिबोध की कविता - गजानन माधव मुक्तिबोध | Gajanan Madhav Muktibodh

मैं बना उन्माद री सखि, तू तरल अवसाद
प्रेम - पारावार पीड़ा, तू सुनहली याद
तैल तू तो दीप मै हूँ, सजग मेरे प्राण।
रजनि में जीवन-चिता औ' प्रात मे निर्वाण
शुष्क तिनका तू बनी तो पास ही मैं धूल
आम्र में यदि कोकिला तो पास ही मैं हूल
फल-सा यदि मैं बनूं तो शूल-सी तू पास
विँधुर जीवन के शयन को तू मधुर आवास
सजल मेरे प्राण है री, सजग मेरे प्राण
तू बनी प्राण! मै तो आलि चिर-म्रियमाण।
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मैं दिल्ली हूँ | चार - रामावतार त्यागी | Ramavtar Tyagi

क्यों नाम पड़ा मेरा 'दिल्ली', यह तो कुछ याद न आता है ।
पर बचपन से ही दिल्ली, कहकर मझे पुकारा जाता है ॥
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आज की होली  - ललितकुमारसिंह 'नटवर'

अजी! आज होली है आओ सभी।
रंगो ख़ुद भी, सब को रंगाओ सभी॥
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रंग की वो फुहार दे होली - गोविंद कुमार

रंग की वो फुहार दे होली
सबको खुशियाँ अपार दे होली
द्वेष नफरत हो दिल से छूमन्तर
ऐसा आपस में प्यार दे होली
नफरत की दीवार गिरा दो होली में
उल्फत की रसधार बहा दो होली में
झंकृत कर दे जो सबके ही तन मन को
सरगम की वो तार बजा दो होली में
मन में जो भी मैल बसाये बैठे हैं
उनको अबकी बार जला दो होली में
रंगों की बौछार रंगे केवल तन को
मन को भी इसबार भिगा दो होली में
प्यालों से तो बहुत पिलायी है अब तक
आँखों से इकबार पिला दो होली में
भाईचारा शान्ति अमन हो हर दिल में
ऐसा ये संसार बना दो होली में
बटवारे की जो है खड़ी बुनियादों पर
ऐसी हर दीवार गिरा दो होली में
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अरी भागो री भागो री गोरी भागो - भारत दर्शन संकलन

अरी भागो री भागो री गोरी भागो,
रंग लायो नन्द को लाल।

बाके कमर में बंसी लटक रही
और मोर मुकुटिया चमक रही

संग लायो ढेर गुलाल,
अरी भागो री भागो री गोरी भागो,
रंग लायो नन्द को लाल।

इक हाथ पकड़ लई पिचकारी
सूरत कर लै पियरी कारी
इक हाथ में अबीर गुलाल

अरी भागो री भागो री गोरी भागो,
रंग लायो नन्द को लाल।
भर भर मारैगो रंग पिचकारी

चून कारैगो अगिया कारी
गोरे गालन मलैगो गुलाल
अरी भागो री भागो री गोरी भागो,
रंग लायो नन्द को लाल।

यह पल आई मोहन टोरी
और घेर लई राधा गोरी
होरी खेलै करैं छेड़ छाड़
अरी भागो री भागो री गोरी भागो,
रंग लायो नन्द को लाल।
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होली व फाग के दोहे - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

भर दीजे गर हो सके, जीवन अंदर रंग।
वरना तो बेकार है, होली का हुड़दंग॥
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कल कहाँ थे कन्हाई  - भारत दर्शन संकलन

कल कहाँ थे कन्हाई हमें रात नींद न आई
आओ -आओ कन्हाई न बातें बनाओ
कल कहाँ थे कन्हाई हमें रात नींद न आई।
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ज़माना रिश्वत का - यादराम शर्मा

है पैसे का जोर, ज़माना रिश्वत का
चर्चा चारों ओर, ज़माना रिश्वत का
कोतवाल को आकर खुद ही थाने में
डाँटे उलटा चोर, ज़माना रिश्वत का
कटी व्यवस्था की पतंग जिन हाथों से
उन हाथों में डोर, ज़माना रिश्वत का
बोले भी तो कैसे वो सच की भाषा
है दिल से कमज़ोर, ज़माना रिश्वत का
जैसे भी हो, अब तो घर में दौलत की
हो वर्षा घनघोर, ज़माना रिश्वत का
समझदार अधिकारी बोला बाबू से-
दोनों हाथ बटोर, ज़माना रिश्वत का
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हमारी सभ्यता - मैथिलीशरण गुप्त | Mathilishran Gupt

शैशव-दशा में देश प्राय: जिस समय सब व्याप्त थे,
निःशेष विषयों में तभी हम प्रौढ़ता को प्राप्त थे ।
संसार को पहले हमीं ने ज्ञान-भिक्षा दान की,
आचार की, व्यवहार की, व्यापार की, विज्ञान की ।। ४५ ।।
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श्याम पिया मोरी रंग दे चुनरिया - मीराबाई | Meerabai

श्याम पिया मोरी रंग दे चुनरिया ।। टेर ।।
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होरी खेलत हैं गिरधारी - मीराबाई | Meerabai

होरी खेलत हैं गिरधारी।
मुरली चंग बजत डफ न्यारो।
संग जुबती ब्रजनारी॥
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राजनैतिक होली - डॉ एम.एल.गुप्ता आदित्य


चुनावों के चटक रंगों सा, छाया हुआ खुमार ।
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रंगो के त्यौहार में तुमने - राहुल देव

रंगो के त्यौहार में तुमने क्यों पिचकारी उठाई है?
लाल रंग ने कितने लालों को मौत की नींद सुलाई है।
टूट गयी लाल चूड़ियाँ,
लाली होंठो से छूट गयी।
मंगलसूत्र के कितने धागों की ये माला टूट गयी।
होली तो जल गयी अकेली,
तुम क्यों संग संग जलते हो।
होली के बलिदान को तुम,
कीचड में क्यों मलते हो?
मदिरा पीकर भांग घोटकर कैसा तांडव करते हो?
होलिका के बलिदान को बेशर्मी से छलते हो।
हर साल हुड़दंग हुआ करता है,
नहीं त्यौहार रहा अब ये।
कृष्ण राधा की लीला को भी,
देश के वासी भूल गए।
दिलों का नहीं मेल भी होता,
ना बच्चों का खेल रहा।
इस खून की होली को है,
देखो मानव झेल रहा।
माता बहने कन्या गोरी,
नहीं रंग में होती है।
अब होली के दिन को देखो,
चुपके चुपके रोती हैं।
गाँव गाँव और शहर शहर में,
अजब ढोंग ये होता है,
कहने को तो होली होती,
पर रंग लहू का चढ़ता है।
खेल सको तो ऐसे खेलो,
अबके तुम ऐसी होली।
हर दिल में हो प्यार का सागर,
हर कोई हो हमजोली।
रंग प्यार के खूब चढ़ाओ,
खूब चलाओ पिचकारी,
और भिगो दो बस प्यार में,
तुम अब ये दुनिया सारी।

- राहुल देव
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अजब हवा है - कृष्णा कुमारी

अब की बार अरे ओ फागुन
मन का आँगन रन-रंग जाना।

युगों -युगों से भीगी नहीं बसंती चोली
रही सदा -सदा ही सूनी -सूनी मेरी होली
पुलकन -सिहरन अंग-अंग भर जाना।

अजब हवा है, मन मौसम बहक उठे हैं
दावानल -सम अधर पलाशी दहक उठे हैं
बरसा कर रति-रंग, दंग कर जाना।

बरसों बाद प्रवासी प्रियतम घर आएंगे
मेरे विरही नयन लजाते शरमायेंगे
तू पलकों में मिलन भंग भर जाना ।

अब की बार अरे ओ फागुन
मन का आँगन रन-रंग जाना ।

- कृष्णा कुमारी

ई-मेल: krishna.kumari.kamsin9@gmail.com
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सूर के पद | Sur Ke Pad - सूरदास | Surdas

सूरदास के पदों का संकलन - इस पृष्ठ के अंतर्गत सूर के पदों का संकलन यहाँ उपलब्ध करवाया जा रहा है। यदि आपके पास सूरदास से संबंधित सामग्री हैं तो कृपया 'भारत-दर्शन' के साथ साझा करें।
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हरि संग खेलति हैं सब फाग - सूरदास के पद - सूरदास | Surdas

हरि संग खेलति हैं सब फाग।
इहिं मिस करति प्रगट गोपी: उर अंतर को अनुराग।।
सारी पहिरी सुरंग, कसि कंचुकी, काजर दे दे नैन।
बनि बनि निकसी निकसी भई ठाढी, सुनि माधो के बैन।।
डफ, बांसुरी, रुंज अरु महुआरि, बाजत ताल मृदंग।
अति आनन्द मनोहर बानि गावत उठति तरंग।।
एक कोध गोविन्द ग्वाल सब, एक कोध ब्रज नारि।
छांडि सकुच सब देतिं परस्पर, अपनी भाई गारि।।
मिली दस पांच अली चली कृष्नहिं, गहि लावतिं अचकाई।
भरि अरगजा अबीर कनक घट, देतिं सीस तैं नाईं।।
छिरकतिं सखि कुमकुम केसरि, भुरकतिं बंदन धूरि।
सोभित हैं तनु सांझ समै घन, आये हैं मनु पूरि।।
दसहूं दिसा भयो परिपूरन, सूर सुरंग प्रमोद।
सुर बिमान कौतुहल भूले, निरखत स्याम बिनोद।।
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तुझसंग रंग लगाऊँ कैसे -  प्रशांत कुमार पार्थ

चढी है प्रीत की ऐसी लत
छूटत नाहीं
दूजा रंग लगाऊँ कैसे!
गठरी भरी प्रेम की
रंग है मन के कोने कोने बसा
दिखत नही हो कान्हा मोहे
तुझसंग रंग लगाऊँ कैसे!
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बरस-बरस पर आती होली - गोपाल सिंह नेपाली | Gopal Singh Nepali

बरस-बरस पर आती होली,
रंगों का त्यौहार अनूठा
चुनरी इधर, उधर पिचकारी,
गाल-भाल पर कुमकुम फूटा
लाल-लाल बन जाते काले,
गोरी सूरत पीली-नीली,
मेरा देश बड़ा गर्वीला,
रीति-रसम-ऋतु रंग-रगीली,
नीले नभ पर बादल काले,
हरियाली में सरसों पीली !
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गोपालदास नीरज के दोहे - गोपालदास ‘नीरज’

(1)
कवियों की और चोर की गति है एक समान
दिल की चोरी कवि करे लूटे चोर मकान
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मीरा के पद - Meera Ke Pad - मीराबाई | Meerabai

दरद न जाण्यां कोय

हेरी म्हां दरदे दिवाणी म्हारां दरद न जाण्यां कोय।
घायल री गत घाइल जाण्यां, हिवडो अगण संजोय।
जौहर की गत जौहरी जाणै, क्या जाण्यां जिण खोय।
दरद की मार्यां दर दर डोल्यां बैद मिल्या नहिं कोय।
मीरा री प्रभु पीर मिटांगां जब बैद सांवरो होय॥

- मीरा

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मीरा के होली पद  - मीराबाई | Meerabai

फागुन के दिन चार होली खेल मना रे॥
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रसखान के फाग सवैय्ये - रसखान | Raskhan

मिली खेलत फाग बढयो अनुराग सुराग सनी सुख की रमकै।
कर कुंकुम लै करि कंजमुखि प्रिय के दृग लावन को धमकैं।।
रसखानि गुलाल की धुंधर में ब्रजबालन की दुति यौं दमकै।
मनौ सावन सांझ ललाई के मांझ चहुं दिस तें चपला चमकै।।
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मुट्ठी भर रंग अम्बर में - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

मुट्ठी भर रंग अम्बर में किसने है दे मारा
आज तिरंगा दीखता है अम्बर मोहे सारा
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आओ होली खेलें संग - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

कही गुब्बारे सिर पर फूटे
पिचकारी से रंग है छूटे
हवा में उड़ते रंग
कहीं पर घोट रहे सब भंग!
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खेलो रंग से | कविता - डॉ. श्याम सखा श्याम

खेलो रंग से
मगर ढंग से
जीयो सखा उमंग से
मौज से, तरंग से
गाओ गीत अहंग से
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क्यों दीन-नाथ मुझपै | ग़ज़ल - अज्ञात

क्यों दीन-नाथ मुझपै, तुम्हारी दया नहीं ।
आश्रित तेरा नहीं हूं कि तेरी प्रजा नहीं ।।

मेरे तो नाथ कोई तुम्हारे सिवा नहीं ।
माता नहीं है बन्धु नहीं है पिता नहीं ।।

माना कि मेरे पाप बहुत है पै हे प्रभू ।
कुछ उनसे न्यूनतर तो तुम्हारी दया नहीं।।
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जो कुछ है मेरे दिल में - अनिल कुमार 'अंदाज़'

जो कुछ है मेरे दिल में वो सब जान जाएगा ।
उसको जो मैं मनाऊँ तो वो मान जाएगा ।
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मन में रहे उमंग तो समझो होली है | ग़ज़ल - गिरीश पंकज

मन में रहे उमंग तो समझो होली है
जीवन में हो रंग तो समझो होली है
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हर कोई है मस्ती का हकदार सखा होली में  - डॉ. श्याम सखा श्याम

हर कोई है मस्ती का हकदार सखा होली में
मौसम करता रंगो की बौछार सखा होली में
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कभी पत्थर कभी कांटे कभी ये रातरानी है - डॉ. श्याम सखा श्याम

कभी पत्थर कभी कांटे कभी ये रातरानी है
यही तो जिन्दगानी है,यही तो जिन्दगानी है
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रंगों की मस्ती | गीत - अलका जैन

उड़ने लगे हैं होली की मस्ती के गुब्बारे
धरती से आसमा की ठिठोली के इशारे।
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प्यार भरी बोली | होली हास्य कविता - जैमिनी हरियाणवी | Jaimini Hariyanavi

होली पर हास्य-कवि जैमिनी हरियाणवी की कविता

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द्रोणाचार्य | कविता - डॉ. भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी

तुम्हीं ने-
‘अर्जुन' को सर्वश्रेष्ठ ‘धनुर्धर'
की संज्ञा दी थी
और
‘एकलब्य' का अंगूठा मांगकर
अपनी जीत
सुनिश्चित किया था।
तुम-
आज के परिवेश में भी
ठीक उसी तरह हो
जैसे-
द्वापर में ‘महाभारत' के ‘द्रोण'।।
यह भी सुनिश्चित है कि-
जीत तुम्हारी ही होगी
भले ही तुम
हारने वाले के पक्षधर हो।
तुम-
कलयुगी मानव हो
फिर भी-
सतयुगी घोषणाएँ करते हो।।
नित्य के चीत्कार एवं चिग्घाड़ों को
नहीं सुनते हो।
तुम-
सब कुछ जानते हुए भी
अनजान बने रहते हो।
‘अश्वत्थामा' मारा गया
यह तुम लोगों को
समझा देते हो।
इस कूटनीति के सहारे तुम
जीत जाते हो
वही जीत
जिसके लिए तुमने
‘कौरवों' का साथ
देने की स्वीकृति दी।।
तुम-
इस हार को
अस्वीकार भी कर सकते हो,
लेकिन जीतना
तुम्हारी नियति बन चुकी है,
इसलिए-
हर बार किसी न किसी
कर्ण का कवच
‘कुरूक्षेत्र' में
तुम्हारी रक्षा का प्रमाण
बन जाता है।
...

बलजीत सिंह की दो कविताएं  - बलजीत सिंह

बर्फ का पसीना

सर्द
...

घासीराम के पद  - घासीराम | Ghasiram Ke Pad

कान्हा पिचकारी मत मार मेरे घर सास लडेगी रे।
सास लडेगी रे मेरे घर ननद लडेगी रे।

...

वसन्त आया - सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' | Suryakant Tripathi 'Nirala'

सखि, वसन्त आया ।
भरा हर्ष वन के मन,
नवोत्कर्ष छाया।

किसलय-वसना नव-वय-लतिका
मिली मधुर प्रिय-उर तरु-पतिका,
मधुप-वृन्द बन्दी-
पिक-स्वर नभ सरसाया।

लता-मुकुल-हार-गन्ध-भार भर
बही पवन बन्द मन्द मन्दतर,
जागी नयनों में वन-
यौवन की माया।

आवृत सरसी-उर-सरसिज उठे,
केशर के केश कली के छुटे,
स्वर्ण-शस्य-अञ्चल
पृथ्वी का लहराया।

...

ख़ून की होली जो खेली  - सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' | Suryakant Tripathi 'Nirala'

रँग गये जैसे पलाश;
कुसुम किंशुक के, सुहाए,
कोकनद के पाए प्राण,
ख़ून की होली जो खेली ।
...

बचकर रहना इस दुनिया के लोगों की परछाई से - विजय कुमार सिंघल

बचकर रहना इस दुनिया के लोगों की परछाई से
इस दुनिया के लोग बना लेते हैं परबत राई से।
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जंगल-जंगल ढूँढ रहा है | ग़ज़ल - विजय कुमार सिंघल

जंगल-जंगल ढूँढ रहा है मृग अपनी कस्तूरी को
कितना मुश्किल है तय करना खुद से खुद की दूरी को
...

जो पुल बनाएँगें - अज्ञेय | Ajneya

जो पुल बनाएँगें
वे अनिवार्यत:
पीछे रह जाएँगे
सेनाएँ हो जाएगी पार
मारे जाएँगे रावण
जयी होंगें राम ,
जो निर्माता रहे
इतिहास में
बंदर कहलाएँगे
...

आया मधुऋतु का त्योहार - आनन्द विश्वास (Anand Vishvas)

खेत-खेत में सरसों झूमे, सर-सर बहे बयार,
मस्त पवन के संग-संग आया मधुऋतु का त्योहार।
...

काव्य मंच पर होली - बृजेन्द्र उत्कर्ष

काव्य मंच पर चढ़ी जो होली, कवि सारे हुरियाय गये,
एक मात्र जो कवयित्री थी, उसे देख बौराय गये,

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होली आई - होली आई - हर्ष कुमार

बहुत नाज़ था उसको खुद पर, नहीं आंच उसको आयेगी
नहीं जोर कुछ चला था उसका, जली होलिका होली आई

...

होली की रात | Jaishankar Prasad Holi Night Poetry - जयशंकर प्रसाद | Jaishankar Prasad

बरसते हो तारों के फूल
छिपे तुम नील पटी में कौन?
उड़ रही है सौरभ की धूल
कोकिला कैसे रहती मीन।
...

परिंदे की बेज़ुबानी - डॉ शम्भुनाथ तिवारी

बड़ी ग़मनाक दिल छूती परिंदे की कहानी है!
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