यह संदेह निर्मूल है कि हिंदीवाले उर्दू का नाश चाहते हैं। - राजेन्द्र प्रसाद।
कहानियां
कहानियों के अंतर्गत यहां आप हिंदी की नई-पुरानी कहानियां पढ़ पाएंगे जिनमें कथाएं व लोक-कथाएं भी सम्मिलित रहेंगी। पढ़िए मुंशी प्रेमचंद, रबीन्द्रनाथ टैगोर, भीष्म साहनी, मोहन राकेश, चंद्रधर शर्मा गुलेरी, फणीश्वरनाथ रेणु, सुदर्शन, कमलेश्वर, विष्णु प्रभाकर, कृष्णा सोबती, यशपाल, अज्ञेय, निराला, महादेवी वर्मालियो टोल्स्टोय की कहानियां

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गरीब आदमी - वनफूल

दोपहर की चिलचिलाती हुई धूप की उत्कट उपेक्षा करते हुए राघव सरकार शान से माथा ऊंचा किए हुए जल्दी-जल्दी पांव बढ़ाते हुए सड़क पर चले जा रहे थे। खद्दर की पोशाक, पैर में चप्पलें अवश्य थीं, पर हाथ में छाता नहीं; हालांकि वे चप्पलें भी ऐसी थीं और उनमें निकली हुई अनगिनत कीलों से उनके दो पांव इस तरह छिल गए थे कि उनकी उपमा शरशय्या पर लेटे हुए भीष्म पितामह से करना भी राघव सरकार के पांवों का अपमान होता, किन्तु शान से माथा ऊंचा किए हुए राघव सरकार को इसकी परवाह नहीं थी । वे पांव बढ़ाते हुए चले जा रहे थे। उन्होंने अपने चरित्र को बहुत दृढ़ बनाया था, सिद्धांतों पर आधारित मर्यादाशील उनका जीवन था, और इसीलिए हमेशा से राघव सरकार का माथा ऊंचा रहा, कभी झुका नहीं। उन्होंने कभी किसी की कृपा की आकांक्षा नहीं की, कभी किसी दूसरे के कन्धे के सहारे नहीं खड़े हुए, जहां तक हो सका दूसरों की भलाई की, और कभी अपनी कोई प्रार्थना लेकर किसी के दरवाजे नहीं गए। अपना माथा कभी झुकने ने पाए, यही उनकी जीवनव्यापी साधना रही है।
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बहादुर कुत्ता  - देवदत्त द्विवेदी

[अमरीका के एक रेड इंडियन की कहानी]

अमरीका के जंगल में एक साल का एक कुत्ता अपनी माँ के पास बैठा था। उन दोनों के बाल काफी पडे थे। इससे दूर से देखने वाले उन्हें भेड़िया समझ लेते थे। थोड़ी ही देर में कुत्ते ने आदमियों की आवाज सुनी और वह भोंकना ही चाहता था कि इतने में उसकी बूढी माँ की गरदन में एक तीर लगा और वह वहीं जमीन पर गिर गई। कुत्ते को यह बात बहुत बुरी लगी और वह तीर चलाने वाले लोगों की और भूँ-भूँ करता हुआ झपटा। रेड इडियन की टोली में से एक आदमी उस पर भी तीर चलाना चाहता था, कि इतने में एक रेड इंडियन लड़का आगे बढा और बोला, 'तुम्हें इस छोटे से कुत्ते पर तीर चलाते हुए शर्म नहीं आती। रहने दो, मैं इसे पालूँगा।‘ ऐमा कहकर रेड इंडियन लड़का आगे बढ़ा और उमने उस कुत्ते को पकड़ लिया। कुत्ता उस उसे काटना चाहता था परतु लड़के ने इस होशियारी से उसका गला पकड़ रखा था कि वह लड़के को को काट नहीं सका।
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भूख | कहानी - चित्रा मुद्गल

आहट सुन लक्ष्मा ने सूप से गरदन ऊपर उठाई। सावित्री अक्का झोंपड़ी के किवाड़ों से लगी भीतर झांकती दिखी। सूप फटकारना छोड़कर वह उठ खड़ी हुई, ‘‘आ, अंदर कू आ, अक्का।'' उसने साग्रह सावित्री को भीतर बुलाया। फिर झोंपड़ी के एक कोने से टिकी झिरझिरी चटाई कनस्तर के करीब बिछाते हुए उस पर बैठने का आग्रह करती स्वयं सूप के निकट पसर गई।
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जिल्दसाज़ - जगन्नाथ प्रसाद चौबे वनमाली

वह अधेड़ जिल्दसाज़ सबेरे से शाम तक और अँधेरा होने पर दिए की रोशनी में बड़ी रात तक, अपनी छोटी-सी दुकान में अकेला एक फुट लंबी चटाई पर बैठा किताबों की जिल्दें बाँधा करता। उसकी मोटी व भद्दी अँगुलियाँ बड़ी उतावली से अनवरत रंग-बिरंगे कागजों के पन्नों में उलझती रहतीं और उसकी धुंधली आँखें नीचे को झुकी काम में व्यस्त रहतीं।
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कुछ यूँ हुआ उस रात... - प्रगति गुप्ता

उस रात तिलोत्तमा के मोबाइल की बजती घंटी ने गहराते हुए सन्नाटे के साथ-साथ उसके मन की शांति को भी भंग कर दिया। कुछ देर पहले ही उसकी आँख लगी थी। पल भर तो उसे समझ ही नहीं आया कि मोबाईल की घंटी सच में बज रही है या वह कोई सपना देख रही है। उसने उनींदी आँखों से देखा... रात का एक बज चुका था।
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पच्चीस चौका डेढ़ सौ - ओमप्रकाश वाल्मीकि | Om Prakash Valmiki

पहली तनख्वाह के रुपये हाथ में थामे सुदीप अभावों के गहरे अंधकार में रोशनी की उम्मीद से भर गया था। एक ऐसी खुशी उसके जिस्म में दिखाई पड़ रही थी, जिसे पाने के लिए उसने असंख्य कँटीले झाड़-झंखाड़ों के बीच अपनी राह बनाई थी। हथेली में भींचे रुपयों की गर्मी उसकी रग-रग में उतर गई थी। पहली बार उसने इतने रुपये एक साथ देखे थे।
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