अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।
कथा-कहानी
अंतरजाल पर हिंदी कहानियां व हिंदी साहित्य निशुल्क पढ़ें। कथा-कहानी के अंतर्गत यहां आप हिंदी कहानियां, कथाएं, लोक-कथाएं व लघु-कथाएं पढ़ पाएंगे। पढ़िए मुंशी प्रेमचंद,रबीन्द्रनाथ टैगोर, भीष्म साहनी, मोहन राकेश, चंद्रधर शर्मा गुलेरी, फणीश्वरनाथ रेणु, सुदर्शन, कमलेश्वर, विष्णु प्रभाकर, कृष्णा सोबती, यशपाल, अज्ञेय, निराला, महादेवी वर्मालियो टोल्स्टोय की कहानियां

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प्रहलाद - होलिका की कथा | पौराणिक कथाएं - भारत-दर्शन

होली को लेकर हिरण्यकश्यप और उसकी बहन होलिका की कथा अत्यधिक प्रचलित है।
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होली का उपहार - मुंशी प्रेमचंद | Munshi Premchand

मैकूलाल अमरकान्त के घर शतरंज खेलने आये, तो देखा, वह कहीं बाहर जाने की तैयारी कर रहे हैं। पूछा--कहीं बाहर की तैयारी कर रहे हो क्या भाई? फुरसत हो, तो आओ, आज दो-चार बाजियाँ हो जाएँ।
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भगवान सबका एक है | लोक-कथा - नीरा सक्सेना

पेरिस में इब्राहीम नाम का एक आदमी अपनी बीवी और बच्चों के साथ एक मोंपड़ी में रहता था। वह एक साधारण गृहस्थ था, पर था बड़ा धर्मात्मा और परोपकारी । उसका घर शहर से दस मील दूर था। उसकी झोपड़ी के पास से एक पतलीसी सड़क जाती थी। एक गाँव से दूसरे गाँव को यात्री इसी सड़क से होकर आते-जाते थे।
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सैलाब | लघुकथा - लक्ष्मी शंकर वाजपेयी

पिता की मृत्यु के बाद के सारे कार्य संपन्न हो चुके थे। अब तेरहवीं होनी थी और अगले दिन मुझे नौकरी पर वापस ग्वालियर रवाना हो जाना था.. बस एक ही डर बार बार मुझे बुरी तरह परेशान कर रहा था और उस दृश्य की कल्पना मात्र से सहम उठता था मैं.. और ये दृश्य था मेरी इस बार की विदाई का ..जब दुख का पहाड़ टूट पड़ा हो..हर बार ग्वालियर रवाना होने के वक्त माँ फूटफूटकर रोने लगती थीं.. और मैं दो तीन दिन अवसाद मे रहता था..मोबाइल भी नहीं थे उन दिनों..। यूं भी कोई भी रिश्तेदार आता तो बातचीत के दौरान माँ के आँसू  ज़रूर निकलते।
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कृष्ण-पूतना की कथा | होली की पौराणिक कथाएं - भारत-दर्शन

एक आकाशवाणी हुई कि कंस को मारने वाला गोकुल में जन्म ले चुका है। अत: कंस ने इस दिन गोकुल में जन्म लेने वाले हर शिशु की हत्या कर देने का आदेश दे दिया। इसी आकाशवाणी से भयभीत कंस ने अपने भांजे कृष्ण को भी मारने की योजना बनाई और इसके लिए पूतना नामक राक्षसी का सहारा लिया।
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सोनू की बंदूक - लक्ष्मी शंकर वाजपेयी

सोनू की बंदूक उस तरह की बंदूक नहीं थी जैसी घर घर में बच्चे प्लास्टिक या लोहे की बंदूक से खेलते रहते हैं..। दरअसल सोनू अपनी दोनों हथेलियों को आपस मे गूंथकर दो उंगलियां बंदूक की नाल की तरह सामने रखकर जब ठॉंय करता तो देखने वाला उसकी इस अदा को देखता ही रह जाता..। उसकी इसी प्यारी अदा को देखने के लिए उसके चाचा और दूसरे घरवाले सोनू को जानबूझकर छेड़ते ताकि सोनू अपनी बंदूक से ठायँ करे। जब ठायँ करने पर सामने वाला अपने सीने या पेट पर हाथ रखकर हाय करता या लड़खड़ाता तो सोनू अपनी जीत पर खूब खिलखिलाकर हँसता। सोनू की बंदूक की प्रतिष्ठा अड़ोस पड़ोस और मोहल्ले मे भी पहुंच गयी थी। सोनू चबूतरे पर होता तो मोहल्ले वाले भी उसे छेड़ कर ठॉयँ का मज़ा लेते और लड़खड़ाकर गिरने का नाटक करते। अब सोनू को अपनी बंदूक की मारक क्षमता पर पूरा भरोसा हो गया था।
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शिव पार्वती कथा | होली की पौराणिक कथाएं - भारत-दर्शन

एक अन्य पौराणिक कथा शिव और पार्वती से संबद्ध है। हिमालय पुत्री पार्वती चाहती थीं कि उनका विवाह भगवान शिव से हो जाए पर शिवजी अपनी तपस्या में लीन थे। कामदेव पार्वती की सहायता को आए व उन्होंने अपना पुष्प बाण चलाया। भगवान शिव की तपस्या भंग हो गयी। शिव को बड़ा क्रोध आया और उन्होंने अपनी तीसरी आँख खोल दी। उनके क्रोध की ज्वाला में कामदेव का भस्म हो गए। तदुपरांत शिवजी ने पार्वती को देखा और पार्वती की आराधना सफल हुई। शिवजी ने उन्हें अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार कर लिया।
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सती का बलिदान - डॉ माधवी श्रीवास्तवा | न्यूज़ीलैंड

सती-- प्रजापति दक्ष की छोटी पुत्री सती। दक्ष ने माता आदि शक्ति की कठोर तपस्या के पश्चात वरदान स्वरूप सती को प्राप्त किया था। सती का जन्म शिव से मिलन के लिए ही हुआ था।
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ढुंढा राक्षसी की कथा | होली की पौराणिक कथाएं - भारत-दर्शन

इस कथा के अनुसार भगवान श्रीराम के पूर्वजों के राज्य में एक माली नामक राक्षस की बेटी ढुंढा राक्षसी थी। इस राक्षसी ने भगवान शिव को प्रसन्न के करके तंत्र विद्या का ज्ञान प्राप्त कर लिया था। उसे ऐसा वर प्राप्त था जिससे उसके शरीर पर किसी भी देवता या दानव के शस्त्रास्त्र का कोई मारक प्रभाव नहीं होता था। इस प्रकार भयमुक्त ढुंढा प्रत्येक ग्राम और नगर के बालकों को पीड़ा पहुंचाने लगी।
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पृथ्वीराज चौहान का होली से संबंधित प्रश्न | होली की पौराणिक कथाएं - भारत-दर्शन

एक समय राजा पृथ्वीराज चौहान ने अपने दरबार के राज-कवि चन्द से कहा कि हम लोगों में जो होली के त्योहार का प्रचार है, वह क्या है? हम सभ्य आर्य लोगों में ऐसे अनार्य महोत्सव का प्रचार क्योंकर हुआ कि आबाल-वृद्ध सभी उस दिन पागल-से होकर वीभत्स-रूप धारण करते तथा अनर्गल और कुत्सित वचनों को निर्लज्जता-पूर्वक उच्चारण करते है । यह सुनकर कवि बोला- ''राजन्! इस महोत्सव की उत्पत्ति का विधान होली की पूजा-विधि में पाया जाता है । फाल्गुन मास की पूर्णिमा में होली का पूजन कहा गया है । उसमें लकड़ी और घास-फूस का बड़ा भारी ढेर लगाकर वेद-मंत्रो से विस्तार के साथ होलिका-दहन किया जाता है । इसी दिन हर महीने की पूर्णिमा के हिसाब से इष्टि ( छोटा-सा यज्ञ) भी होता है । इस कारण भद्रा रहित समय मे होलिका-दहन होकर इष्टि यज्ञ भी हो जाता है । पूजन के बाद होली की भस्म शरीर पर लगाई जाती है ।
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वेबिनार | लघुकथा - डॉ. वंदना मुकेश | इंग्लैंड

कोरोना महामारी ने सारी जीवन-शैली ही बदल डाली। विद्याजी को ऊपर से निर्देश मिला है कक्षाएँ ऑनलाइन करवाई जाएँ। चार महीने के लॉकडाउन के बाद कॉलेज खुले और ऊपर से यह आदेश। दो साल बचे हैं उनकी सेवा-निवृत्ति के लेकिन अब ऑनलाईन कक्षाओं और कार्यक्रमों के आयोजन की बात सुनकर उन्हें पसीने छूट गये। जिंदगी भर कक्षा में आमने–सामने पढ़ाया, अब अंत में यह क्या आफत आ खड़ी हुई? अपने विभाग में हर वर्ष वे अनेक कार्यक्रम आयोजित करवाती थीं लेकिन इस वर्ष हिंदी दिवस पर ऑनलाईन कार्यक्रम के फरमान ने उनकी नींद हराम कर दी थी। उनसे तो माउस तक नहीं पकड़ा जाता और यह 'कर्सर’ खुद चूहे की तरह कूद- कूद कर भाग जाता है। भला हो उनके पड़ोसी शर्माजी और उनकी इंजीनियर बेटी प्रीता का। वह लॉकडॉउन के कारण ‘वर्क फ्रॉम होम’ कर रही थी। उसने विद्या जी को काफी बार समझाया लेकिन जब विद्या जी ने हाथ खड़े कर दिये तो उसने विद्याजी के निर्देशानुसार कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार की और तुरंत गूगल मीट पर सभी लोगों को सूचना भेज दी। 
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अंतिम तीन दिन  - दिव्या माथुर

अपने ही घर में माया चूहे सी चुपचाप घुसी और सीधे अपने शयनकक्ष में जाकर बिस्तर पर बैठ गई; स्तब्ध। जीवन में आज पहली बार मानो सोच के घोड़ों की लगाम उसके हाथ से छूट गई थी। आराम का तो सवाल ही नहीं पैदा होता था; अब समय ही कहाँ बचा था कि वह सदा की भाँति सोफे पर बैठकर टेलिविजन पर कोई रहस्यपूर्ण टीवी धारावाहिक देखते हुए चाय की चुस्कियाँ लेती? हर पल कीमती था; तीन दिन के अंदर भला कोई अपने जीवन को कैसे समेट सकता है? पचपन वर्षों के संबंध, जी जान से बनाया यह घर, ये सारा ताम झाम, और बस केवल तीन दिन? मजाक है क्या? वह झल्ला उठी किंतु समय व्यर्थ करने का क्या लाभ? डॉक्टर ने उसे केवल तीन दिन की मोहलत दी थी; ढाई या सीढ़े तीन दिन की क्यों नहीं? उसने तो यह भी नहीं पूछा। माया प्रश्न नहीं पूछती, बस जुट जाती है तन मन धन से किसी भी आयोजन की तैयारी में; युद्ध स्तर पर।
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होली का मज़ाक | यशपाल की कहानी  - यशपाल | Yashpal

'बीबी जी, आप आवेंगी कि हम चाय बना दें!'' किलसिया ने ऊपर की मंज़िल की रसोई से पुकारा।
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उसकी औक़ात - हंसा दीप

चेयर के चयन के परिणाम सामने थे। मिस्टर कार्लोस एक बार फिर विभागाध्यक्ष चुन लिए गए थे पर उनके चेहरे पर वह खुशी नहीं थी। हालाँकि फिर से कुर्सी मिलने में कोई संदेह तो नहीं था फिर भी एक अगर-मगर तो बीच में था ही। किसके मन में क्या चल रहा है, किसके अंदर चल रही सुगबुगाहट कब बाहर आ जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता! बड़े तालाबों की छोटी मछलियों की ताकत का अंदाज़ लगाने के लिए कुछ प्रतिशत संदेह तो हमेशा रहता ही है। खास तौर पर जब कोई बड़ा परिणाम आने वाला हो तब तो कई बार छोटी-छोटी बातें भी अपना हिसाब माँग लेती हैं। ऐसे मौकों पर कोई भी अपने अंदर की भड़ास निकाल दे तो आश्चर्य की कोई बात नहीं।
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छोटा सा शीश महल - अरुणा सब्बरवाल

परेशान थी वह। परेशानियों जैसी परेशानी थी। दिल में एक दर्द जमा बैठा था। पिघलता ही नहीं। आकाश से बर्फ गिरती है। दो-तीन दिन में पिघल जाती है। किंतु कैसी पीड़ा है जिसके फ्रीजिंग प्वाइंट का कुछ पता नहीं। कमबख्त दर्द घुलता ही नहीं। पिघलकर बह क्यों नहीं जाता, पानी की तरह? घुल तो रही थी केवल आशा; रवि की पत्नी।
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तुम्हारी नन्दिनी! - नीलिमा टिक्कु

नन्दिनी! ….हाँ वही थी तीस साल बाद अचानक उसे देखकर मेरे दिल की धड़कने बढ़ गईं थीं। कभी एक-दूसरे के साथ जीने-मरने की कसमें खायीं थीं हमने। हड़बड़ाती सी वह सामने से चली आ रही थी। प्लेन में केवल मेरे बगल वाली सीट ही खाली थी ज़ाहिर सी बात थी वो वहीं बैठती। मैं ज़बरन अख़बार में आँखें गड़ाये बैठा रहा। विंडो सीट पर निशा पसरी हुई थी। कॉलेज में नन्दिनी के साथ अकेले वक्त बिताने की चाह में जिस निशा से पीछा छुड़ाने के लिए मैं कई तरह के झूठ बोला करता था वही निशा मेरी पत्नी बनकर हमेशा के लिए मेरी जिंदगी में आ गयी थी और जिससे बेइंतिहा प्यार करता था वही नन्दिनी अब मेरी कुछ भी नहीं यहाँ तक की उससे मित्रता भी नहीं रही थी। निशा की उपस्थिति में उसके साथ बैठने में भी मैं असहज हो उठा था। ऐसा नहीं था कि निशा मुझ पर जबरन थोप दी गई थी या नन्दिनी से सम्बन्ध विच्छेद मुझे मजबूरी में करना पड़ा। उस वक्त मैंने ये निर्णय बहुत सोच समझ कर लिया था। मैं बेहद साधारण परिवार का इकलौता बेटा था। निशा एक बेहद पुरातनपंथी विचारधारा की लड़की थी इसके विपरीत नन्दिनी खुले दिमाग की मिलनसार लड़की थी। हमारे विचार परस्पर मिलते-जुलते थे। नन्दिनी और मेरे विषय एक से थे इसलिए हम पूरा समय कॉलेज में साथ ही रहते थे। निशा केवल पोलिटिकल साइंस के पीरियड में हमारे साथ होती थी। आरम्भ में निशा जबरन मुझ पर अधिकार जमाने की कोशिश किया करती थी, उसे मेरा और नन्दिनी का साथ फूटी आँख नहीं सहाता था। मैं बेबस सा केवल एक पीरियड के लिए निशा को जैसे-तैसे झेल पाता था। धीरे-धीरे निशा समझ गई थी कि मैं नन्दिनी से ही प्यार करता हूँ, तंग आकर उसने हमसे दूरी बना ली थी। नन्दिनी के पिता आसाम में व्यवसाय करते थे। 
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पृथ्वीराज चौहान का होली पर प्रश्न  - भारत-दर्शन संकलन

एक समय राजा पृथ्वीराज चौहान ने अपने दरबार के राज-कवि चन्द से कहा कि हम लोगों में जो होली के त्योहार का प्रचार है, वह क्या है? हम सभ्य आर्य लोगों में ऐसे अनार्य महोत्सव का प्रचार क्योंकर हुआ कि आबाल-वृद्ध सभी उस दिन पागल-से होकर वीभत्स-रूप धारण करते तथा अनर्गल और कुत्सित वचनों को निर्लज्जता-पूर्वक उच्चारण करते है । यह सुनकर कवि बोला- ''राजन्! इस महोत्सव की उत्पत्ति का विधान होली की पूजा-विधि में पाया जाता है । फाल्गुन मास की पूर्णिमा में होली का पूजन कहा गया है । उसमें लकड़ी और घास-फूस का बड़ा भारी ढेर लगाकर वेद-मंत्रो से विस्तार के साथ होलिका-दहन किया जाता है । इसी दिन हर महीने की पूर्णिमा के हिसाब से इष्टि ( छोटा-सा यज्ञ) भी होता है । इस कारण भद्रा रहित समय मे होलिका-दहन होकर इष्टि यज्ञ भी हो जाता है । पूजन के बाद होली की भस्म शरीर पर लगाई जाती है ।
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खोया हुआ कुछ - कमलेश भारतीय

– सुनो।
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हिस्से का दूध | लघुकथा - मधुदीप

उनींदी आँखों को मलती हुई वह अपने पति के करीब आकर बैठ गई। वह दीवार का सहारा लिए बीड़ी के कश ले रहा था।
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