देशभाषा की उन्नति से ही देशोन्नति होती है। - सुधाकर द्विवेदी।
काव्य
जब ह्रदय अहं की भावना का परित्याग करके विशुद्ध अनुभूति मात्र रह जाता है, तब वह मुक्त हृदय हो जाता है। हृदय की इस मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द विधान करती आई है उसे काव्य कहते हैं। कविता मनुष्य को स्वार्थ सम्बन्धों के संकुचित घेरे से ऊपर उठाती है और शेष सृष्टि से रागात्मक संबंध जोड़ने में सहायक होती है। काव्य की अनेक परिभाषाएं दी गई हैं। ये परिभाषाएं आधुनिक हिंदी काव्य के लिए भी सही सिद्ध होती हैं। काव्य सिद्ध चित्त को अलौकिक आनंदानुभूति कराता है तो हृदय के तार झंकृत हो उठते हैं। काव्य में सत्यं शिवं सुंदरम् की भावना भी निहित होती है। जिस काव्य में यह सब कुछ पाया जाता है वह उत्तम काव्य माना जाता है।

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झिलमिल आई है दीवाली - भारत-दर्शन संकलन

जन-जन ने हैं दीप जलाए
लाखों और हजारों ही
धरती पर आकाश आ गया
सेना लिए सितारों की
छुप गई हर दीपक के नीचे
देखो आज अमावस काली
सुंदर-सुंदर दीपों वाली
झिलमिल आई है दीवाली
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हमने अपने हाथों में | ग़ज़ल -  उदयभानु हंस

हमने अपने हाथों में जब धनुष सँभाला है,
बाँध कर के सागर को रास्ता निकाला है।
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भाई दूज - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

भैया दूज
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एक दीया मस्तिष्क में जलाएं - दीपा शर्मा | फीजी

आजकल हर समय विचारों के झंझावात चलते रहते हैं
सही गलत का नहीं पता कुछ, बस यह यूं ही बढ़ते रहते हैं 
कभी किसी बात में होता चिंतन किसी ने मनन 
यह यूं ही चलता रहा,  समय हर क्षण। 
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काश! मुझे कविता आती - आशीष मिश्रा | इंग्लैंड

काश! मुझे कविता आती
                लिख देता उनको पुस्तक-सा
  प्रेम भरा दोहा लिखता 
                लिख देता उनको मुक्तक-सा।
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राम  - आशीष मिश्रा | इंग्लैंड

  लिखने को कुछ और चला था
                   स्वतः कलम ने राम लिखा
    र पर आ की एक मात्रा
                   म मिल कर निष्काम लिखा
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गिरिधर की कुण्डलिया - गिरिधर कविराय

गुन के गाहक सहस नर, बिन गुन लहै न कोय।
जैसे कागा कोकिला, शब्द सुनै सब कोय॥
शब्द सुनै सब कोय, कोकिला सबै सहावन।
दोऊ को इक रंग, काग सब भए अपावन॥
कह गिरिधर कविराय, सुनो हो ठाकुर मन के।
बिन गुन लहै न कोय, सहस नर ग्राहक गुन के॥
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त्रिलोक सिंह ठकुरेला की मुकरियाँ - त्रिलोक सिंह ठकुरेला

जब भी देखूं, आतप हरता।
मेरे मन में सपने भरता।
जादूगर है, डाले फंदा।
क्या सखि, साजन? ना सखि, चंदा।
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दोस्त एक भी नहीं जहाँ पर  - भगवतीचरण वर्मा

दोस्त एक भी नहीं जहाँ पर, सौ-सौ दुश्मन जान के, 
उस दुनिया में बड़ा कठिन है चलना सीना तान के।
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दीवाली : हिंदी रुबाइयां - उदयभानु हंस | Uday Bhanu Hans

सब ओर ही दीपों का बसेरा देखा,
घनघोर अमावस में सवेरा देखा।
जब डाली अकस्मात नज़र नीचे को,
हर दीप तले मैंने अँधेरा देखा।।
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मुस्कान - डॉ पुष्पा भारद्वाज-वुड | न्यूज़ीलैंड

उन्होंने कहा-- 
तुम्हारी मुस्कान में
एक जादू है।
बहुत ही प्यारी और निश्छल है।
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पैरोडी - कवि चोंच

[रसखान के एक छंद की ‘पैरोडी' ]
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कोरोना हाइकु  - सत्या शर्मा 'कीर्ति'

कोरोना मार
अन्तर्भेदी चीत्कार
सभी लाचार
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कोरोना हाइकु - बासुदेव अग्रवाल नमन

कोरोनासुर
विपदा बन कर
टूटा भू पर।
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कभी दो क़दम.. | ग़ज़ल - गुलाब खंडेलवाल

कभी दो क़दम, कभी दस क़दम, कभी सौ क़दम भी निकल सके
मेरे साथ उठके चले तो वे, मेरे साथ-साथ न चल सके

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गज़ब यह सूवा शहर मेरी रानी  - कमला प्रसाद मिश्र | फीजी | Kamla Prasad Mishra

गली-गली में घूमे नसेड़ी दुनिया यहाँ मस्तानी
गज़ब यह सूवा शहर मेरी रानी।
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भिखारी ठाकुर  - केदारनाथ सिंह | Kedarnath Singh

विषय कुछ और था
शहर कोई और
पर मुड़ गई बात भिखारी ठाकुर की ओर 
और वहाँ सब हैरान थे यह जानकर
कि पीते नहीं थे वे
क्योंकि सिर्फ़ वे नाचते थे
और खेलते थे मंच पर वे सारे खेल
जिन्हें हवा खेलती है पानी से
या जीवन खेलता है
मृत्यु के साथ
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हलीम 'आईना' के दोहे  - हलीम 'आईना'

आज़ादी को लग चुका, घोटालों का रोग।
जिसके जैसे दांत हैं, कर ले वैसा भोग ॥
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तू शब्दों का दास रे जोगी - राहत इन्दौरी

तू शब्दों का दास रे जोगी
तेरा कहाँ विश्वास रे जोगी
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दो क्षणिकाएँ    - मंगलेश डबराल

शब्द
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दो क्षणिकाएँ - नवल बीकानेरी

पाँव के नीचे से 
निकल गई 
एक छोटी सी कीड़ी,
बड़ी-सी बात कहकर 
कि
मारने वाले से 
बचाने वाला बड़ा है। 
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क्यों दीन-नाथ मुझपै | ग़ज़ल - अज्ञात

क्यों दीन-नाथ मुझपै, तुम्हारी दया नहीं ।
आश्रित तेरा नहीं हूं कि तेरी प्रजा नहीं ।।

मेरे तो नाथ कोई तुम्हारे सिवा नहीं ।
माता नहीं है बन्धु नहीं है पिता नहीं ।।

माना कि मेरे पाप बहुत है पै हे प्रभू ।
कुछ उनसे न्यूनतर तो तुम्हारी दया नहीं।।
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ढोल, गंवार... - सुरेंद्र शर्मा

मैंने अपनी पत्नी से कहा --
"संत महात्मा कह गए हैं--
ढोल, गंवार, शुद्र, पशु और नारी
ये सब ताड़न के अधिकारी!"
[इन सभी को पीटना चाहिए!]
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अल्लामा प्रभु की कविताएं - अल्लामा प्रभु

हाय!  हाय शिव
आपने मुझे जन्म क्यों दिया?
क्या आप मेरी जगह उड़ा नहीं सकते थे
कोई वृक्ष या झाड़ी?
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सोने के हिरन  - कन्हैया लाल वाजपेयी

आधा जीवन जब बीत गया
बनवासी सा गाते-रोते
तब पता चला इस दुनियां में
सोने के हिरन नहीं होते।
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मुझको सरकार बनाने दो - अल्हड़ बीकानेरी

जो बुढ्ढे खूसट नेता हैं, उनको खड्डे में जाने दो
बस एक बार, बस एक बार मुझको सरकार बनाने दो।
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आयुर्वेदिक देसी दोहे  - भारत-दर्शन संकलन

रस अनार की कली का, नाक बूंद दो डाल।
खून बहे जो नाक से, बंद होय तत्काल।।
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राम की जल समाधि - भारत भूषण

पश्चिम में ढलका सूर्य उठा वंशज सरयू की रेती से,
हारा-हारा, रीता-रीता, निःशब्द धरा, निःशब्द व्योम,
निःशब्द अधर पर रोम-रोम था टेर रहा सीता-सीता
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दीवाली का सामान - भारत-दर्शन संकलन | Collections

हर इक मकां में जला फिर दिया दिवाली का
हर इक तरफ को उजाला हुआ दिवाली का
सभी के दिन में समां भा गया दिवाली का
किसी के दिल को मजा खुश लगा दिवाली का
अजब बहार का है दिन बना दिवाली का।
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दीवाली के दीप जले - ‘फ़िराक़’ गोरखपुरी

नई हुई फिर रस्म पुरानी दीवाली के दीप जले
शाम सुहानी रात सुहानी दीवाली के दीप जले
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वो बचा रहा है गिरा के जो - निज़ाम-फतेहपुरी

वो बचा रहा है गिरा के जो, वो अज़ीज़ है या रक़ीब है
न समझ सका उसे आज तक, कि वो कौन है जो अजीब है
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